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गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

लघुकथा : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

लघु कथा
ज़हर
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
--'टॉमी को तुंरत अस्पताल ले जाओ।' जैकी बोला।
--'जल्दी करो, फ़ौरन इलाज शुरू होना जरूरी है। थोड़ी सी देर भी घातक हो सकती है।' टाइगर ने कहा।
--'अरे! मुझे हुआ क्या है?, मैं तो बीमार नहीं हूँ फ़िर काहे का इलाज?' टॉमीने पूछा।
--'क्यों अभी कटा नहीं उसे...?' जैकी ने पूछा।
--'काटा तो क्या हुआ?, आदमी को काटना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है।'
--'है तो किसी आदमी को काटता, तूने तो नेता को काट लिया। कमबख्त कह ज़हर चढ़ गया तो भाषण देने, धोखा देने, झूठ बोलने, रिश्वत लेने, घोटाला करने और न जाने कौन-कौन सी बीमारियाँ घेर लेंगी? बहस मत कर, जाकर तुंरत इलाज शुरू करा। जैकी ने आदेश के स्वर में कहा...बाकी कुत्तों ने सहमती जताई और टॉमी चुपचाप सर झुकाए चला गया इलाज कराने।
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