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शनिवार, 4 अप्रैल 2009

छंद सलिला : १ सीखिए likhna रोला.

छंद सलिला : १
आचार्य संजीव 'सलिल'
vishv वाणी हिन्दी का गीति काव्य संस्कृत, अपभ्रंश, प्राकृत दंगल तथा शौरसेनी की विरासत के sath-साथ अरबी-फारसी ka संग मिलने पर रखता-उर्दू के सौख्य , विविध भारतीय भाषाओँ-बोलीओं के साहचर्य से संपन्न-समृद्ध हुआ है। हिन्दी mएन श्रेष्ठ को आत्मसात करने की प्रवृत्ति ने अंगरेजी के सोनेट जैसे छंद के साथ-सजपनी के हाइकु, स्नैर्यु आदि को भी पचा लिया है। वर्तमान में जितना च्वैविध्य हिन्दी गीति काव्य में है ,विश्व की अन्य किसी भाषा में नहीं है। आवश्यकता इस विरासत को आत्मसात करने की क्षमता और सृजन की सामर्थ्य को सतत बढाने की है।
इस लेख माला में हर सप्ताह हम किसी एक छंद का परिचय इस उद्देश्य से कराएँगे की रचनाकार उसे समझ कर उस छंद में कविकर्म प्रारम्भ के कीर्ति अर्जित करें। यह लेखमाला समर्पित है दिव्य नर्मदा अभियान जबलपुर के दिवंगत स्तंभों महामंडलेश्वर स्वामी रामचंद्र दास शास्त्री, धर्मप्राण कवयित्री श्रीमती शान्ति देवी वर्मा, समाजसेवी रामेन्द्र तिवारी तथा श्रीमती रजनी शर्मा को। ---संपादक
रोला को लें जान
इस लेखमाला का श्रीगणेश रोला छंद से किया जा रहा है। रोला एक चतुश्पदीय अर्थात चार पदों (पंक्तियों ) का छंद है। हर पद में दो चरण होते हैं। रोला के ४ पदों तथा ८ चरणों में ११ - १३ पर यति होती है. यह दोहा की १३ - ११ पर यति के पूरी तरह विपरीत होती है ।हर पड़ में सम चरण के अंत में गुरु ( दीर्घ / बड़ी) मात्रा होती है ।
११-१३ की यती सोरठा में भी होती है। सोरठा दो पदीय छंद है जबकि रोला चार पदीय है। ऐसा भी कह सकते हैं के दो सोरठा मिलकर रोला बनता है। आइये, रोला की कुछ भंगिमाएँ देखें-
सब होवें संपन्न, सुमन से हँसें-हँसाये।
दुखमय आहें छोड़, मुदित रह रस बरसायें॥
भारत बने महान, युगों तक सब यश गायें।
अनुशासन में बँधे रहें, कर्त्तव्य निभायें॥
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भाव छोड़ कर, दाम, अधिक जब लेते पाया।
शासन-नियम-त्रिशूल झूल उसके सर आया॥
बहार आया माल, सेठ नि जो था चांपा।
बंद जेल में हुए, दवा बिन मिटा मुटापा॥ --- ओमप्रकाश बरसैंया 'ओमकार'
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नीलाम्बर परिधान हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य-चन्द्र युग-मुकुट, मेखला- रत्नाकर है॥
नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल-तारे मंडल हैं।
बंदी जन खग-वृन्द शेष फन सिहासन है॥
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रोला को लें जान, छंद यह- छंद-प्रभाकर।
करिए हँसकर गान, छंद दोहा- गुण-आगर॥
करें आरती काव्य-देवता की- हिल-मिलकर।
माँ सरस्वती हँसें, सीखिए छंद हुलसकर॥ ---'सलिल'
पाठक रोला लिखकर भेजें तो उन्हें यथावश्यक संशोधनों के साथ प्रकाशित किया जाएगा। प्रश्न आमंत्रित हैं।
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