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रविवार, 28 जून 2009

तीन गीतिकाएं : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

गीतिका-१

तुमने कब चाहा दिल दरके?

हुए दिवाने जब दिल-दर के।

जिन पर हमने किया भरोसा

वे निकले सौदाई जर के..

राज अक्ल का नहीं यहाँ पर

ताज हुए हैं आशिक सर के।

नाम न चाहें काम करें चुप

वे ही जिंदा रहते मर के।

परवाजों को कौन नापता?

मुन्सिफ हैं सौदाई पर के।

चाँद सी सूरत घूँघट बादल

तृप्ति मिले जब आँचल सरके।

'सलिल' दर्द सह लेता हँसकर

सहन न होते अँसुआ ढरके।



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गीतिका-२

आदमी ही भला मेरा गर करेंगे।

बदी करने से तारे भी डरेंगे.

बिना मतलब मदद कर दे किसी की

दुआ के फूल तुझ पर तब झरेंगे.

कलम थामे, न जो कहते हकीक़त

समय से पहले ही बेबस मरेंगे।

नरमदा नेह की जो नहाते हैं

बिना तारे किसी के ख़ुद तरेंगे।

न रुकते जो 'सलिल' सम सतत बहते

सुनिश्चित मानिये वे जय वरेंगे।


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(अभिनव प्रयोग)

दोहा गीतिका

तुमको मालूम ही नहीं शोलों की तासीर।

तुम क्या जानो ख़्वाब की कैसे हो ताबीर?

बहरे मिलकर सुन रहे गूँगों की तकरीर

बिलख रही जम्हूरियत, सिसक रही है पीर।

दहशतगर्दों की हुई है जबसे तक्सीर

वतनपरस्ती हो गयी ख़तरनाक तक़्सीर

फेंक द्रौपदी ख़ुद रही फाड़-फाड़ निज चीर

भीष्म द्रोण कूर कृष्ण संग, घूरें पांडव वीर।

हिम्मत मत हारें- करें, सब मिलकर तदबीर

प्यार-मुहब्बत ही रहे मज़हब की तफ़सीर।

सपनों को साकार कर, धरकर मन में धीर।

हर बाधा-संकट बने, पानी की प्राचीर।

हिंद और हिंदी करे दुनिया को तन्वीर।

बेहतर से बेहतर बने इन्सां की तस्वीर।

हाय!सियासत रह गयी, सिर्फ़ स्वार्थ-तज़्वीर।

खिदमत भूली, कर रही बातों की तब्ज़ीर।

तरस रहा मन 'सलिल' दे वक़्त एक तब्शीर।

शब्दों के आगे झुके, जालिम की शमशीर।




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गुरुवार, 18 जून 2009

नवगीत: हवा में ठंडक --सलिल

सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ

नवगीत


आचार्य संजीव 'सलिल'


हवा में ठंडक

बहुत है...


काँपता है

गात सारा

ठिठुरता

सूरज बिचारा.

ओस-पाला

नाचते हैं-

हौसलों को

आँकते हैं.

युवा में खुंदक

बहुत है...



गर्मजोशी

चुक न पाए,

पग उठा जो

रुक न पाए.

शेष चिंगारी

अभी भी-

ज्वलित अग्यारी

अभी भी.

दुआ दुःख-भंजक

बहुत है...



हवा

बर्फीली-विषैली,

नफरतों के

साथ फैली.

भेद मत के

सह सकें हँस-

एक मन हो

रह सकें हँस.

स्नेह सुख-वर्धक

बहुत है...



चिमनियों का

धुँआ गंदा

सियासत है

स्वार्थ-फंदा.

उठो! जन-गण

को जगाएँ-

सृजन की

डफली बजाएँ.

चुनौती घातक

बहुत है...


नियामक हम

आत्म के हों,

उपासक

परमात्म के हों.

तिमिर में

भास्कर प्रखर हों-

मौन में

वाणी मुखर हों.

साधना ऊष्मक

बहुत है...


divyanarmada.blogspot.com
divynarmada@gmail.com

श्रृद्धांजलि: अल्हड बीकानेरी - संजीव 'सलिल'

हिन्दी-हास्य जगत को फ़िर से आज बहाना है आँसू।

सूनापन बढ़ गया हास्य में चला गया है कवि धाँसू ।।

ऊपरवाला दुनिया के गम देख हो गया क्या हैरां?


नीचेवालों को ले जाकर दुनिया को करता वीरां।।


शायद उस से माँग-माँगकर हमने उसे रुला डाला ।


अल्हड औ' आदित्य बुलाये उसने कर गड़बड़ झाला।।


इन लोगों से तुम्हीं बचाओ, इन्हें हँसाया-मुझे हँसाओ।


दुनियावालों इन्हें पढो हँस, इनसे सदा प्रेरणा पाओ।।


ज़हर ज़िन्दगी का पीकर भी जैसे ये थे रहे हँसाते।


नीलकंठ बन दर्द मौन पी, क्यों न आज तुम हँसी लुटाते?


भाई अल्हड बीकानेरी के निधन पर दिव्य नर्मदा परिवार शोक में सहभागी है-सं.

बुधवार, 17 जून 2009

poem: plant a tree- Dr. Ram Sharma, Meerut.

PLANT A TREE



Plant a tree,



become tension free,



water it with care,



no pollution will be there,



birds will chirp,



cool breeze will pup,



it provides shadow,



for peace of dove,



gives us lesson of sacrifice,



make us learn to be suffice,



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हिंदी काव्यानुवाद - संजीव 'सलिल'

एक पौधा लगायें


एक पौधा लगायें

तनाव से मुक्ति पायें

सावधानी से पानी दीजिये

प्रदूषण से पिंड छुडा लीजिये।

चिडियाँ चहचहांयेंगी।

शीतल पवन झूला झुलायेगी।

सघन परछाईं छायेगी।

शान्ति की राह दिखाएगी।

हमें पढ़ाएगी बलिदान का पाठ.

और सिखाएगी- 'कैसे हों ठाठ?'

********************

ग़ज़ल: मनु बेतखल्लुस, दिल्ली

बस आदमी से उखडा हुआ आदमी मिले
हमसे कभी तो हँसता हुआ आदमी मिले

इस आदमी की भीड़ में तू भी तलाश कर,
शायद इसी में भटका हुआ आदमी मिले

सब तेजगाम जा रहे हैं जाने किस तरफ़,
कोई कहीं तो ठहरा हुआ आदमी मिले

रौनक भरा ये रात-दिन जगता हुआ शहर
इसमें कहाँ, सुलगता हुआ आदमी मिले

इक जल्दबाज कार लो रिक्शे पे जा चढी
इस पर तो कोई ठिठका हुआ आदमी मिले

बाहर से चहकी दिखती हैं ये मोटरें मगर
इनमें, इन्हीं पे ऐंठा हुआ आदमी मिले.

देखें कहीं, तो हमको भी दिखलाइये ज़रूर
गर आदमी में ढलता हुआ आदमी मिले

*****************************

आरोग्य-आशा: स्व. शान्ति देवी वर्मा के नुस्खे

इस स्तम्भ के अंतर्गत पारंपरिक चिकित्सा-विधि के प्रचलित दिए जा रहे हैं। हमारे बुजुर्ग इन का प्रयोग कर रोगों से निजात पाते रहे हैं।

आपको ऐसे नुस्खे ज्ञात हों तो भेजें।

इनका प्रयोग आप अपने विवेक से करें, परिणाम के प्रति भी आप ही जिम्मेदार होंगे, लेखक या संपादक नहीं।

वायु भगाएँ दूर :



एक चुटकी अजवाइन में नीबू रस की कुछ बूँदें डालकर थोड़े से नमक के साथ मिलकर रगड़ लें।

आधा कप पानी के साथ सेवन करने पर कुछ देर बाद वायु निकलना प्रारम्भ हो जायेगी।

पांडू रोग / पीलिया :

अदरक की पतली-पतली फाँकें नीबू के रस में डूबा दें। इसमें अजवाइन के दाने तथा स्वाद के अनुसार नमक मिला दें. अदरक का रंग लाल होने पर तीन-चार बार सेवन करने पर पांडू रोग में लाभ होगा.



इसका साथ रोज सवेरे तथा शाम को किसी बगीचे या मैदान में जहाँ खूब पेड़-पौधे हों घूमना लाभदायक है। बगीचे में खूब गहरी-गहरी साँसें लें ताकि अधिक से अधिक ओषजन वायु शरीर में पहुँचे।

जोडों का दर्द:



सरसों के तेल में लहसुन तथा अजवाइन दल कर आग पर गरम करें। लहसुन काली पड़ने पर ठंडा कर छान लें और किसी शीशी में भर लें। इसकी मालिश करते समय ठंडी हवा न लगे। धीरे-धीरे दर्द कम होकर आराम मिलेगा।



यह तेल कान के दर्द को भी दूर करेगा. दाद, खारिश, खुजली में इसके उपयोग से लाभ होगा. कब्ज से बचें तथा कढ़ी, चांवल जैसा वायु बढ़ने वाला आहार न लें.


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सोमवार, 15 जून 2009

दोहा-अंजलि: सलिल

हे हरि! तुम आनंद-घन, मैं चातक हूँ नाथ.
प्यास मिटा दो दरश की, तब हो 'सलिल' सनाथ.

दुनिया ने छल-कपट कर, किया 'सलिल' को दूर.
नेह-लगन तुमसे लगी, अब तक था मैं सूर.

आभारी हूँ सभी का, तुम ही सबमें व्याप्त.
दस दिश में तुम दिख रहे, शब्दाक्षर हरि आप्त.

मैं-तुम का अंतर मिटा, छाया देव प्रकाश.
दिव्य-नर्मदा नाद सुन, 'सलिल' हुआ आकाश.

कविता: शोभना चौरे

कविता

शोभना चौरे

तार तार रिश्तों को

आज महसूस किया|

मैंने बार-बार सीने की कोशिश में

अपने हाथों में सुई भी चुभोई|

किन्तु रिश्तों की चादर

और अधिक जर्जर होती गई

क्या उसे फेंक दूँ?

या संदूक में रख दूँ?

सोचती रही भावना शून्य क्या सच है ?

कितनी ही बार का भावना शून्य व्यवहार

मानस पटल पर अंकित हो गया

चादर तार तार जरूर थी पर उसके रंग गहरे थे |

और उन रंगों ने मुझे फ़िर

भावना की गर्माहट दी

और मैं पुनः उन रंगों को पुकारने लगी |

उन पर होने लगी फ़िर से आकर्षित

उस चादर को फ़िर से सहेजा ,

और उसमें खुश्बू भी ढूंढने लगी

और उस खुशबू ने मुझे

ममता का अहसास दे दिया

और मैंने चादर को फ़िर सहलाकर

सहेजकर रख दिया|

रिशतों की महक को महकने के लिए |



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शनिवार, 13 जून 2009

कविता: श्रीमती सरला खरे

अनुरोध

साहित्य तो रत्नात्मक है .
सीमा नहीं क्षितिज पार है .
मेरे तो क्षीण डैने(पंख) है .
छूट गई हूँ सागर में .

" साहित्य के "सा" का ज्ञान नहीं .
नवीन विधाओं से अनभिज्ञ रही .
सह्र्दये सज्जन का द्रवित हो रहा .
पहुँचा दिए करुण शब्द सागर में "

"कुछ साहित्य सेवियों के मन में दर्द था.
मुखर न हो रहा था , मन में था .
मेरे मन में गूँजते थे वो स्वर
कागज में उतरे अश्रु बनकर."

साहित्य को समाज का दर्पण दिखाइए .
अपनी क्षमता को अम्बर तक पहुचाइए .
रचनाये क्षितिज पार पहुंचे , लेखनी को सतत चलाइए

श्री प्राण शर्मा को जन्म दिन की बधाई

प्राण बिन निष्प्राण सी लगती गजल.

प्राण पा सम्प्राण हो सजती गजल.


बहर में कह रहे बातें अनकही-

अलंकारों से सजी रुचती गजल.


गुजारिश है दिन-ब-दिन रहिये जवां

और कहिये रोज ही महती गजल.


जन्मदिन की शत बधाई लीजिये.

दीजिये बिन कुछ कहे कहती गजल.


'सलिल' शैदा आपके फन पर हुआ-

नर्मदा की लहर सी बहती गजल.



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बाल-गीत: लंगडी खेलें... आचार्य संजीव 'सलिल'

बाल गीत: लंगडी -संजीव 'सलिल'
बाल गीत:
आचार्य संजीव 'सलिल'
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
एक पैर लें
जमा जमीं पर।
रखें दूसरा
थोडा ऊपर।
बना संतुलन
निज शरीर का-
आउट कर दें
तुमको छूकर।
एक दिशा में
तुम्हें धकेलें।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
आगे जो भी
दौड़ लगाये।
कोशिश यही
हाथ वह आये।
बचकर दूर न
जाने पाए-
चाहे कितना
भी भरमाये।
हम भी चुप रह
करें झमेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....*
हा-हा-हैया,
ता-ता-थैया।
छू राधा को
किशन कन्हैया।
गिरें धूल में,
रो-उठ-हँसकर,
भूलें- झींकेगी
फिर मैया।
हर पल 'सलिल'
ख़ुशी के मेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*************

गुरुवार, 11 जून 2009

नव-गीत: आचार्य संजीव 'सलिल'

भवनों के जंगल



घनेरे हजारों...



*



कोई घर न मिलता



जहाँ चैन सुख हो।



कोई दर न दिखता



रहित दर्द-दुःख हो।



मन्दिर में हैरां



मनाता है हरि ही



हारा-थका हूँ



हटो रे कतारों...



*



माटी को कुचलो



पर्वत भी खोदो।



जंगल भी काटो-



खुदी नाश बो दो।



मरघट बना जग



तू धूनी रमाना-



न फूलो अहम् से



ओ पंचर गुब्बारों...



*



जो थोथा चना है,



वो बजता घना है।



धोता है, मन



तन तो माटी सना है।



सांसों से आसों का



है क़र्ज़ भारी-



लगा भी दो कन्धा



न हिचको कहारों...




*********************

मंगलवार, 9 जून 2009

दोहा-गीत संजीव 'सलिल'

अभिनव प्रयोग:

दोहा-गीत

-संजीव 'सलिल',संपादक दिव्य नर्मदा

तरु कदम्ब काटे बहुत,
चलो, लगायें एक.
स्नेह-सलिल सिंचन करें,
महकें सुमन अनेक...
*
मन-वृन्दावन में बसे,
कोशिश का घनश्याम.
तन बरसाना राधिका,
पाले कशिश अनाम..
प्रेम-ग्रंथ के पढ़ सकें,
ढाई अक्षर नेक.
तरु कदम्ब काटे बहुत,
चलो, लगायें एक.....
*
कंस प्रदूषण का करें,
मिलकर सब जन अंत.
मुक्त कराएँ उन्हें जो
सत्ता पीड़ित संत..
सुख-दुःख में जागृत रहे-
निर्मल बुद्धि-विवेक.
तरु कदम्ब काटे बहुत,
चलो, लगायें एक.
*
तरु कदम्ब विस्तार है,
संबंधों का मीत.
पुलक सुवासित हरितिमा,
सृजती जीवन-रीत..
ध्वंस-नाश का पथ सकें,
निर्माणों से छेक.
तरु कदम्ब काटे बहुत,
चलो लगायें एक.....
*********************

दो नवगीत - पूर्णिमा बर्मन


http://www.abhivyakti-hindi.org/lekhak/purnimavarman.htm




रखे वैशाख ने पैर

रखे वैशाख ने पैर


बिगुल बजाती,


लगी दौड़ने


तेज़-तेज़


फगुनाहट


खिले गुलमुहर दमक उठी फिर


हरी चुनर पर छींट सिंदूरी!


सिहर उठी फिर छाँह


टपकती पकी निबौरी


झरती मद्धम-मद्धम


जैसे

पंखुरी स्वागत


साथ हवा के लगे डोलने


अमलतास के सोन हिंडोले!


धूप ओढनी चटक


दुपहरी कैसे ओढ़े


धूल उड़ाती


गली-गली


मौसम की आहट!
*****************


अमलतास
डालों से लटके
आँखों में अटके
इस घर का आसपास
गुच्छों में अमलतास
झरते हैं अधरों से जैसे मिठबतियाँ
हिलते है डालों में डाले गलबहियाँ
बिखरे हैं--
आँचल से इस वन के आँचल पर
मुट्ठी में बंद किए सैकड़ों तितलियाँ
बात बात रूठी
साथ साथ झूठी
मद में बहती वतास
फूल फूल सजी हुईं धूल धूल गलियाँ
कानों में लटकाईं घुँघरू सी कलियाँ
झुक झुक कर झाँक रही
धरती को बार बार
हरे हरे गुंबद से ध्वजा पीत फलियाँ
मौसम ने टेरा
लाँघ के मुँडेरा
फैला सब जग उजास
*******************

सोमवार, 8 जून 2009

कवि-नाटककार दिवंगत

सहसा होता विश्वास नहीं...महाशोक


कला जगत व साहित्य जगत के लिए ७ जून २००९ रविवार का दिन अत्यंत दुखद रहा. देश के जाने माने हास्य कवि ओम प्रकाश 'आदित्य' , नीरज पुरी तथा लाड़ सिंह गुज्जर की भोपाल में आयोजित बेतवा महोत्सव से दिल्ली लौटते समय सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गयी. इस हादसे में तीन लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं।

घायलों में ओम व्यास की हालत गंभीर बनी हुई है. दक्षिण दिल्ली के मालवीय नगर में एक स्कूल में अध्यापन का कार्य कर चुके आदित्य को हास्य कविता के क्षेत्र में खासी ख्याति मिली। उनके दो बहुचर्चित काव्य संग्रह 'गोरी बैठे छत्ते पर' और 'इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं' बहुत लोकप्रिय हुए.


जाने माने रंगकर्मी हबीब तनवीर भी इस रविवार नहीं रहे . वे विगत कई दिनों से बीमार चल रहे थे . दिव्य नर्मदा परिवार, परम पिता से दिवंगत आत्माओं को शांति, स्वजनों को यह क्षति सहन करने हेतु धैर्य तथा घायलों के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्रदान करने की कामना करता है.

प्रस्तुत है स्व.ओम प्रकाश'आदित्य' की एक प्रसिद्ध रचना-

इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं।

जिधर देखता हूँ गधे ही गधे हैं॥

गधे हँस रहे, आदमी रो रहा है।

हिन्दोस्तां में ये क्या हो रहा है?

जवानी का आलम गधों के लिए है।

ये रसिया, ये बालम गधों के लिए है॥

ये दिल्ली, ये पालम गधों के लिए है।

ये संसार सालम गधों के लिए है॥

पिलाये जा साकी पिलाये जा डट के।

तू व्हिस्की के मटके पै मटके पै मटके ॥

मैं दुनिया को अब भूलना चाहता हूँ।

गधों की तरह झूमना चाहता हूँ॥

घोडों को मिलती नहीं घास देखो।

गधे खा रहे हैं च्यवनप्राश देखो॥

यहाँ आदमी की कहो कब बनी है?

ये दुनिया गधों के लिए ही बनी है॥

जो गलियों में डोले वो कच्चा गधा है।

जो कोठे पे बोले वो सच्चा गधा है॥

जो खेतों पे दीखे वो फसली गधा है।

जो माइक पे चीखे वो असली गधा है॥

मैं क्या बक गया हूँ?, ये क्या कह गया हूँ?

नशे की पिनक में कहाँ बह गया हूँ?

मुझे माफ़ करना मैं भटका हुआ था।

वो ठर्रा था भीतर जी अटका हुआ था॥



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शनिवार, 6 जून 2009

मालवी कविता - बड़ा की बड़ी भूल

ॐ 
मालवी सलिला :
*
कविता
बड़ा की बड़ी भूल
बालमुकुंद रघुवंशी 'बंसीदा'
*
बड़ा-बड़ा घराणा की,

बड़ी-बड़ी हे पोल।

नी हे कोई में दम,
जी उनकी उडई ले मखोल। 

दूर-दराज की
तो बात कई
बड़ा का सांते रेणेवाला
बी सदा डरे।


कारण यो हे के
हर बड़ा मरनेवालो
चार-छे के सांते
ली ने मरे।

थोड़ी दूर
घिसाणा में बी
हरेक छोटो हुई
जाय चकनाचूर।


ईकई वास्ते
अपणावाला बी,
छोटा से
सदा रेवे दूर।

हूँ तमारे आज
दिवई दूं याद,
सबसे बड़ा की
एक बड़ी भूल।


ऊपरवाला ने
तीख काँटा में,
दिया हे
गुलाब का फूल।
************ 

दोहे ;चन्द्रसेन 'विराट', इंदौर

दोहे ;
चन्द्रसेन 'विराट', इंदौर

जहाँ देखिये आदमी, जहाँ देखिये भीड़।
इसमें हम एकांत का कहाँ बनायें नीड़॥

दैत्य पसारे जा रहा, धीरे-धीरे पाँव।
महानगर के पेट में, समा रहे हैं गाँव॥

महानगर को लग गया, जैसे गति का रोग।
पैदल कुछ, पहियों चढ़े, भाग रहे हैं लोग॥

शहरों में जंगल छिपे, डाकू सभ्य विशुद्ध।
अंगुलिमाल अनेक हैं, एक न गौतम बुद्ध॥

धीरे-धीरे कट गए, हरे पेड़ हर ओर।
बहुमंजिला इमारतें, उग आयीं मुंह जोर॥

चले कुल्हाडी पेड़ पर, कटे मनुज की देह।
रक्त लाल से हो हरा, ऐसा उमडे नेह॥

पेड़ काटने का हुआ, साबित यों आरोप।
वर्षा भी बैरिन बनी, सूरज का भी कोप॥

बस्ती का होता यहाँ, जितना भी विस्तार।
सुरसा के मुंह की तरह, बढ़ जाता बाज़ार॥

महानगर यह गावदी!, कसकर गठरी थाम।
तुझको गठरी के सहित कर देगा नीलाम॥

*********************
*********************

गजल : कैलाशनाथ तिवारी, इंदौर

गजल :
कैलाशनाथ तिवारी, इंदौर

सबका अपना नसीब होता है।
कौन किसका हबीब होता है?

आपको गुल नसीब होते हैं
पर हमें तो सलीब होता है।

कैसे इंसानों की ये बस्ती है,
दोस्त ही यां रकीब होता है।

जो मिटा देता मर्तबा अपना
वो ही उसके करीब होता है।

जिसका मशरफ है माँगते रहना
इंसां वो ही गरीब होता है।

सब ही दौलत कमाने आये हैं।
अब न कोई तबीब होता है.

सीख ले अपने पैरों पे चलना
कौन किसका जरीब होता है।

प्यार जिसने कभी नहीं जाना।
इंसां वो बदनसीब होता है.

गीतों-गज़लों से जिसको प्यार नहीं
वो न सच्चा अदीब होता है.
**********************************

मालवी गीत ललिता रावल, इंदौर

मालवी गीत
ललिता रावल, इन्दौर


फाग घणों पोमायो हे

कली कचनार कन्हेर चटकी,
फाग घणों पोमायो हे।

मउआ ढाक कांस फुल्या,
बसंत्या अगवानी में।

गाँव गली घर अंगणे
पवन्यो बौरायो हे।

आम्बु-जाम्बु मोर पाक्या
रात सुवाली सजई हे।

भोलू की थकान भागी,
रामी रंग पकावे हे।

गोकुल-बिरज धूम मचई ने,
इना मांडवे आयो हे।

नानो बिरजू गुलाल उडावे
साला साली साते हे।

माय सासू होली गावे
जवई ने बखाने हे।

चार दन की आनी-जानी
आनंद मनव बाटी चूटी

'ललि' असी बोरई गई
भरी जमात में गावे हे।

**************************

निमाड़ी कविता सदाशिव कौतुक, इंदौर

निमाड़ी कविता
सदाशिव कौतुक, इंदौर

लड़ई मत लडो रे! भई
लड़ई ने केको भलो करयो?
लड़ई में अल्यांग को मरयो
चाय वल्यांग को मरयो
हात कटs कटsगा पांय नs माथो
हुई जासे लेखरु उघाडा अडात
जो बचsगा वू बी मरेल सी कम नी हुता
तलवार अनs बंदूक नस
कदी कोई को भलो करयो?
मरन वालो मरी गयो
मारन वालो जीवतs जीव मरयो।
********************

बाल गीत: तोता और कैरी - कृष्णवल्लभ पौराणिक, इंदौर



तोता कैरी खाता है
कुतर -कुतर रह जाता है।

टें-टें करता रहे सदा

बच्चों के मन भाता है।

नहीं अकेला आता है।

मित्र साथ में लाता है।

टहनी पर बैठा होता जब

ताजी कैरी खाता है।

झूम-झूम लहराता है

खा-खाकर इठलाता है।

छोड़ अधूरी कैरी को

दूजी पर ललचाता है।


कभी न गाना गाता है

आम वृक्ष से नाता है।

काट कभी कैरी डंठल को
वह दाता बन जाता है।

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उर्दू त्रिपदियाँ : अज़ीज़ अंसारी, इंदौर

उर्दू त्रिपदियाँ : अज़ीज़ अंसारी, इंदौर

कलियाँ जब भी उदास होती हैं
उनकी अफ्सुर्दगी मिटाने को
तितलियाँ आस-पास होती हैं।

सब को इक यार की ज़रूरत है
पेट भरता है रोटियों से मगर
रूह को प्यार की ज़रूरत है।

काम आ दूसरों को मुश्किल में
दूर हो जाएँगे अँधेरे सब
नूर भर जायेगा तेरे दिल में।

गुल को माली सम्हालने वाला
दिल की जो देखभाल करता है
वो है दुनिया को पलने वाला।

आप अपनी नज़र होते हैं
वो जो बंदे को रब से मिलवा दें
बस वही सच्चे पीर होते हैं।
*****************************

शुक्रवार, 5 जून 2009

कृति-चर्चा:

'झुकता है आकाश': पठनीय दोहा संग्रह

(कृति-विवरण: नाम- झुकता है आकाश, विधा- दोहा संग्रह, कृतिकार: प्रभु त्रिवेदी, आकार- डिमाई, आवरण- सजिल्द-बहुरंगी, पृष्ठ- ११८, मूल्य- १५०रु., प्रकाशक- नमन प्रकाशन, दिल्ली, कृतिकार संपर्क- १११ राम-रहीम उपनिवेश, राऊ, इंदौर, दूरभाष- ०७३१-२८५६६४४, चलभाष- ९४२५० ७६९९६, चिटठा- ह्त्त्प://प्रणम्यसाहित्य.ब्लागस्पाट.कॉम, ई डाक- प्रभुत्रिवेदी२१@जीमेल.कॉम)

चर्चाकार: आचार्य संजीव 'सलिल'

विश्व-वाणी हिंदी के सनातन कोष में 'दोहा' एक ऐसा जाज्वल्यमान काव्य-रत्न है जिसकी कहीं किसी से कोई तुलना नहीं हो सकती. बिंदु में सिन्धु को समाहित करने की क्षमता रखनेवाला लह्ग्वाकारी छंदराज दोहा अपनी मर्मस्पर्शिता, क्षिप्रता, बेधकता, संवेदनशीलता, भाव-प्रवणता, सहजता, सरलता, लय-बद्धता, गेयता, लोकप्रियता तथा अर्थवत्ता के एकादश सोपानों पर आरोहित होकर जन-मन का पर्याय बन गया है.

हिंदी के समयजयी पिंगल-शास्त्र के अनूठे छंद 'दोहा; ने चिरकाल से शब्द्ब्रम्ह आराधकों को अपने आकर्षण-पाश में बाँध रखा है. दोहा के दुर्निवार आकर्षण पर मुग्ध संस्कृत, प्राकृत, डिंगल, अपभ्रंश, शौरसेनी, अंगिका, बज्जिका, मागधी, मैथिली, भोजपुरी, बृज, बुन्देली, बघेली, छत्तीसगढ़ी, हरयाणवी, मारवाडी, हाडौती, गुजराती, मालवी, निमाड़ी, मराठी तथा उर्दू के साथ अब बांग्ला, कोंकणी, मलयालम, कन्नड़, तमिल, कठियावाडी, सिरायकी, डोगरी, असमी, अंग्रेजी भी दोहा की विजय पताका थामे हुए हैं.

दो पद, चार चरण, ४८ मात्राओं के संयोजन से आकारित दोहे के २३ विविध प्रकार हैं जो लघु-गुरु मात्राओं की घट-बढ़ पर आधारित हैं. शताधिक बार दोहा ने इतिहास की गति व् दिशा को प्रभावित तथा परिवर्तित कर लोक-कल्याण का पथ प्रशस्त किया है. ऋषि-मुनि, साधु-संत, पीर-ककीर, विप्र-वनिक, स्वामी-सेवक, रजा-प्रजा, बाल-युवा, स्त्री-पुरुष, रागी-विरागी, धनी-निर्धन, मोही-निर्मोही अर्थात समाज का हर वर्ग दोहा को अपनी आत्माभिव्यक्ति का साधन बनाकर धन्यता अनुभव करता रहा है.

दोहकारों की चिर-चैतन्य, जाग्रत-जीवंत संसद में मालवा की माटी की सौंधी सुवास, क्षिप्रा और नर्मदा के सलिल की मिठास, गणगौर के लोक पर्व की मांगल्य भावना, लोक-गीतों का सारल्य, गाँवों का ठहराव, शहरों की आपाधापी, राजनीति की विषाक्तता, जनगण की वितृष्णा और तमाम विसंगतियों के संत्रास में भी जयी होते आशा-आकांक्षा के स्वरों की अनुगूंज को अपने सृजन कर्म के माध्यम से प्रबलतम और प्रखरतम बनाने का प्रणम्य योगदान कर भाई प्रभु ने प्रवेश किया है. राजनीति शास्त्र, हिंदी व् ज्योतिष में दखल रखनेवाले प्रभु जी ने जीवन बीमा अधिकारी के रूप में समाज के विविध वर्गों से तादात्म्य स्थापित कर उनकी मानसिकता, सोच, अपेक्षाओं, आशाओं-हताशाओं से साक्षात् कर अपने मानस में उसी तरह रख लिया जैसे कुशल कुम्हार अच्छी मिट्टी को रख लेता है. समय के पाद-प्रहारों और अनुभवों के कठोर करों ने शब्द, भाव, रस, बिम्ब लय, प्रतीक और सत्य के कथ्य को दोहाकारित कर दिया है जिसके लालित्य पर हम सब मुग्ध हैं.

दैनंदिन जीवन की जटिलताओं, भग्न होते स्वप्नों, दूर होते अपनों और विघटित होते नपनों की व्यथा-कथा कहते दोहे तपते आकाश में पर तौलने की जिजीविषा भी जगाते हैं. गिरकर उठाने की आकाँक्षा, खाली हाथों जाने के परम सत्य को जानते हुए भी साँसों के सफ़र के लिए कुछ पाथेय जुटा लेने की कामना, अपने से पीछेवाले को आगे न जाने देने-बराबरीवाले से आगे निकलने और आगेवाले को पीछे छोड़ने की जिद, पिछले मोड़ पर कुछ नया न घटने के बाद भी अगले मोड़ पर कुछ अघटित घटने का औत्सुक्य, निष्कलुष शैशव की खिलखिलाहट, कमसिन-किशोरों की भावाकुलता, तारुण्य का हुलास, यौवन का उल्लास, प्रौढ़ता का ठहराव और वार्धक्य की यत्किंचित कटु वीतरागिता के विविधवर्णी फूलों को दोहा के गुलदस्ते में सजाये प्रभु जी माँ शारदा के चरणों में अर्पित कर रहे हैं.

'झुकता है आकाश' के ५१ सर्गों में १०-१० दोहा-मणियों को गूँथते हुए दोहाकार ने यह मनोरम छंद-माल तैयार की है. मालवि के ही नहीं सकल हिंदी साहित्य-जगत के गौरव बालकवि बैरागी जी, शिखर दोहाकार-गीतकार-मुक्तककार-गजलकार अग्रज्वत चंद्रसेन 'विराट', बहुआयामी सृजनधर्मी भाई सदाशिव 'कौतुक' आदि के सत्संग का सौभाग्य पा रहे प्रभु जी का आदि दोहा संग्रह संभावनाओं का नया दीपक जला रहा है.

प्रभु जी के रचनाकार की प्रतिबद्धता शाश्वत मूल्यों की सनातनता और आम आदमी की शुभ-संकल्पमयी प्रवृत्ति को उद्घाटित कार्नर के प्रति है. उन्हीं के शब्दों में- ''मैं आश्वस्त हूँ सामाजिक समरसता, सद्भाव व सहिष्णुता के प्रति और इस तथ्य का पक्षधर हूँ की अँधेरा अधिक समय तक नहीं रहता.''

'झुकता है आकाश' का श्री गणेश राजनैतिक विद्रूपता और पाखंड को उद्घाटित करते दोहों से हुई है.

देश रहे बस ध्यान में, मिटें दलों के भेद.
संसद की दीवार पर, लिख दो इसे कुरेद..

जाति-धर्म के नाम पर, घर-घर भड़की आग.
जिसको देखो डस गया, राजनीति का नाग..

लंगडे-लूले मिल गए, कौन बताये खोट?
सुबह-शाम पहुँचा रहे लोकतंत्र को चोट..

देश रहे बस ध्यान में, समय चक्र की क्रूरता, सरे दल रचते रहे, धवल चाँदनी सी सजे, लोकतंत्र के रूप का, राजनीती में अब नहीं , लगा मुखुअता हंस का तथा भूल गए इतिहास को शीर्षक ८ अध्यायों में प्रभु जी ने सामयिक पारिस्थिक वैषम्य को इंगित करते हुए जन तथा जनप्रतिनिधियों दोनों को सचेत करने का कवि धर्म निभाया है.

चुनौतियों से बिना घबराए, सतत प्रयास से जयी होने का संदेश देते हुए दोहाकार प्राची से ऊषा करे, आलोकित आकाश में, पंछी का ये घोंसला शीर्षक अगले अध्यायों में उज्जवल भविष्य का संकेत करते करता है.

कलरव पंछी को दिया, मिली फूल को गंध.
यत्र-तत्र-सर्वत्र हैं, दाता के अनुबंध..

सूरज की पहली किरण, भरती मन-उल्लास.
कली बदलती फूल में, जीवन में विश्वास..

बैठा है चुपचाप क्यों, चेत सके तो चेत.
समय-चक्र रुकता नहीं, ज्यों मुट्ठी में रेत..

विषमताओं को जीतकर जीवन में छाते उल्लास की छटा है होली के हुडदंग में, वसन सभी गीले हुए, मौसम चढा मुंडेर पर, ताजमहल से झाँकता आदि अध्यायों में.

दर्पण में छबि देखकर, रतिका मत्त गयंद.
भीगे तन पर ज्यों लिखे, मादकता के छंद..

सरसों फूली खेत में, खिलता देख पलाश.
दोनों ही के खाव को समझ गया आकाश..

कोयल कूके डाल पर, सरसों फूली खेत.
टेसू खिलकर दे रहा फागुन के संकेत..

मौसम खिला मुंडेर पर, लिखता मोहक छंद.
धुप सुहागिन फागुनी, बाँटे मधु मकरंद..

इन दोहों में दोहाकार ने चाक्षुष बिम्बों को चिरन्तन प्रतीकों में ढालकर दोहों को सार्थकता दी है. सफलता और सुख का आधिक्य विलासिता को जन्म देता है. इसे इंगित करता कवि अगले अध्यायों में भोग के आधिक्य से बचने का संकेत करता है.

प्रेम-ग्रन्थ वो लिख गए, नजर डालकर एक.
पृष्ठ खोलकर प्यार के, हमने पढ़े अनेक..

गाँव की याद में विकल कवि को महानगर नहीं सुहाता-

मन-पंछी भी चाहता, चलें गाँव की ऑर.
पनघट-पनिहारिन जहाँ, और प्रेम की डोर..

ग्रामीण पृष्ठभूमि के इन सरस दोहों में समाये माधुर्य का आनंद लें-

अल्हड अलसी पूछती, सरसों से ये बात.
चकवा-चकवी जागते, क्योंकर सारी रात..

रूप-रंग का छा गया, अबके बरस बसंत.
नतमस्तक सब हो गए, धूनीवाले संत..

मौसम चढा मुंडेर पर, लिखता मोहक छंद.
धूप सुहागिन फागुनी, बांटे मधु मकरंद..

सरसों फूली खेत में, खिलता देख पलाश.
दोनों के ही भाव को, समझ गया आकाश..

प्रभु जी ऐसे दोहों में अपनी प्रवीणता प्रगट कर सके हैं. इनमें सटीक बिम्ब, मर्यादित श्रृंगार, उन्मुक्त कल्पना तथा सरस सृजनात्मकता सहज दृष्टव्य है.

श्रृंगार और भोग के अतिरेक की वर्जना करता कवि दुराचार ने रच लिया, भौतिक सुख ककी छह में, दौलात्वलों के यहाँ, भय हो मन में राम का आदि अध्यायों में संयम का आग्रह करता है. यह सकारात्मक चितन प्रभु जी का वैशिष्ट्य है.

हिंदी के अमर दोहों में नीतिपरक दोहों का अपना स्थान है. प्रभु जी ने इस परंपरा का निर्वहन पूरी प्रवीणता से किया है-

अधिक बोलने से नहीं, हुआ किसी का मान.
वरना तोते आज तक, कहलाते विद्वान्..

देते रहने का सदा, मन में रखिये ध्यान.
देने से घटता नहीं दान-मान-सम्मान..

क्षणजीवी भोगवादी संस्कृति में 'ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत' की चार्वाकपंथी जीवन शैली के प्रति कवि चेतावनी देता है-

सपने में भी माँगता, कर्जा साहूकार.
कभी ख़त्म होता नहीं, ब्याज-त्याज का भार..

धूप-छाँव की तरह आते-जाते सुख-दुःख पर कवि की समदर्शी दृष्टि देखिये-

सुख की बूँदों ने किया, जब अपना सत्कार.
बैरी बनकर आ गया, दुःख पंछी है बार..

इस दोहा संग्रह के उत्तरार्ध में दोहाकार फिर सामयिक समस्याओं, विसंगतियों और विडंबनाओं पर केन्द्रित होता है, मानो एक चक्र पूर्ण हुआ...जहाँ से इति वहीं अंत...इसे जीवन चक्र कहें या प्रकृति चक्र...यह आप पर निर्भर है.

शब्द-सिपाही प्रभु शब्द-शक्ति से सुपरिचित हैं. वे कहते हैं-

खेल बड़ा गंभीर है, शब्दों का श्रीमान.
शब्दों से ही देवता, हो जाते पाषाण..

पर्यावरण की समस्या को कवि ने अपने ढंग से उठाया है-

पनिहारिन का रंज ये, कौन निहारे रूप?
ताल-तालियाँ रिक्त हैं, सूखे हैं नल-कूप..

आम्रकुंज की कोकिला, गुमसुम है भयभीत.
ज्न्गाक में दिनभर चले, आरी का संगीत..

पभु जी ने मानवीय संबंधों को लेकर भी अच्छे दोहे कहे हैं-

घर में तीरथ आपके, क्या काशी-हरिद्वार?
मात-पिता की भावना, का होता सत्कार..

शीतल मंद बयार है, सुख-सागर का रूप.
हरे नीम की छाँव सी, माँ जाड़े की धूप..

बेटी घर की आबरू, आँगन की मुस्कान.
कस्तूरी मृग जिस तरह, जंगल का अभिमान..

मिसरी जैसी घुल सके, खुशियों की बरसात.
हृदयवान के घर बसे, बहिना की सौगात..

भाभी माँ का रूप है, भाई पिता समान.
आँखें अपनी खो रही, इस युग की सन्तान..

उच्चतम न्यायालय ने जीवन में सुख चाहनेवालों को पत्नी के अनुरूप चलने की सलाह अब दी है किन्तु कवि तो इस सत्य को चिर काल से मानते आये हैं स्व. गोपालप्रसाद व्यास तो 'पत्नी को परमेश्वर मानो' का आव्हान कर पत्नीवाद के प्रवर्तक ही बन गए. प्रभु जी भी भार्या-वन्दन की महिमा से परिचित हैं-

पत्नी घर की मालकिन, चाबी उसके पास.
ताले में सब बंद हैं, सुख-दुःख, हास-विलास..

इस संग्रह के दोहों में प्रभु ने भाषिक औदार्यता को अपनाया है. वे जाय, छाय, फ्रीज (फ्रिज), पशु (पशु), नय्या (नैया), आवे (आये), इक (एक), पंगु (पंगु), भय्या (भैया), बतियांय, लगांय, होय, सिखलाय, पांय, गाय(पशु नहीं), लेय, छलकाय, बौराय, पाय, सुनाय, रोय, होय, पे(पर), घबराय, प्रभू (प्रभु), कबिरा, आँय, रख्खा, समझाय,राखिए (रखिये), जाव, सुझाव जैसे शब्द-रूपों के प्रति सदय हैं. संस्कृत, उर्दू, अँग्रेजी बृज आदि के शब्द इन दोहों में हैं किन्तु मालवी-निमाड़ी का स्पर्श न होना विस्मित करता है.

पाकर फूल किताब में, गुल्बदानों के हाथ.
होंठ नहीं जो कह सके, समझ गए वह बात..

में सम चरणों में तुकांत दोष है.

'इज्जत मान-अपमान का' (१४ मात्रा) में मात्राधिक्य है. यह अपवाद स्वरूप है.

'नव वर्ष है नई सदी' का लय-दोष नया वर्ष है नव सदी' करने से दूर हो सकता है.

चन्द्र के दाग सदृश अपवादों को छोड़कर सकल संकलन दोहों के उत्तम रूप को सामने लाता है.

कवि ने जहाँ-जहाँ प्रकृति का मानवीकरण या मानव का प्रकृतिकरण किया है वहाँ-वहाँ दोहों का शिल्प निखरा है. आँगन की मुस्कान, अल्हड अलसी, चित्त चकोर, धूप सुहागिन, हवा निगोड़ी, देह हुई कचनार, प्यासी धरती, सुबह सलोनी, प्रकृति नटी, बेटी कोमल फूल सी, मन पंछी, प्रेम ग्रन्थ, प्रेम पुष्प आदि प्रयोग पाठक के मन को बाँधते हैं.

श्रृंगार, शांत, वात्सल्य, भक्ति, करुण रसों की उपस्थति इस संग्रह में है किन्तु हास्य, वीर, वीभत्स, अद्भुत या भयानक अनुपस्थित हैं. व्यंग भी कहीं-कहीं मुखर हुआ है.

दीवारों के कान, आँगन की लाज, खून बहाना, कोल्हू का बैल जैसे मुहावरों और उलटबांसियों का प्रयोग दोहों को जीवन्तता प्रदान करता है.

कवि ने शब्दालंकारों और अर्थालंकारों दोनों का कुशलता से प्रयोग किया है. कवियों में सर्वाधिक लोकप्रिय अनुप्रास में वृन्त्यानुप्रास तथा लाटानुप्रास नहीं है किन्तु दोहा के छंद-विधान-बंधन के कारण सम तुकान्ती सम चरणान्त में अन्त्यानुप्रास सर्वत्र है. 'दीप धरो उस द्वार पर', 'निकल पड़ा दिनमान', किसका चलता जोर', भारत में बाज़ार' आदि में श्रुत्यानुप्रास, है जबकि 'स्वर्ण कलश कर में लिए' में छेकानुप्रास है.




यमक अलंकार अपवादवत् 'माया ने माया रची' में है. श्लेष अलंकार -'कली बदलती फूल में' में है जहाँ कली तथा बेटी के बढ़ने के दो अर्थ मिलते हैं.

प्रभु जी उपमा तथा रूपक अपेकशाकृत अधिक प्रिय हैं.

पूर्णोपमा - दुल्हिन सी लिपटी रही, बेल प्रेम के साथ, हुए कागजी फूल सम आपस के सम्बन्ध, जल जैसा निर्मल रहे, ऐसा व्यक्ति महान आदि में है, जहाँ उपमेय, उपमान, साधारण धर्म तथा वाचक शब्द सहज दृष्टव्य हैं.

'सोने जैसी रात', मतदाता से मिल रहे जैसे भारत मिलाप, तथा 'पल-पल भरता आह सा' आदि में उपमान लुप्तोपमा है. 'मरहम जैसी बन गयी यह पहली बरसात' तथा 'हवा निगोडी यूं चले ज्यों बिरहा के तीर' में धर्म लुप्तोपमा है. लालच-गैया, प्रेम-प्यार की बेल, खुशियों का मधुमास, यादों के मेहमान,तन-मन का भूचाल, मन-मौर, बर्बादी के किवाड़, मन तेरा आकाश, समय-चक्र आदि में रूपक की छटा है.

'खाली बर्तन हो रहा इस युग का इन्सान', दर्पण में छवि देखकर, खुद है रतिका दंग' तथा 'समाया गवाही दे रहा' आदि में उत्प्रेक्षा है.

प्रभु त्रिवेदी जी के ये दोहे मन को स्पर्श करते है तथा तथ्य-कथ्य को पाठक तक पहुँचा पाते हैं. दोहाकार का सकारात्मक चिंतन उज्जवल भविष्य को संकेतित करता है-

स्वर्ण-कलश कर में लिए निकल पड़ा दिनमान.
दिशा-दिशा सुख बाँटता, यही महा अभियान..

दीप धरो उस द्वार पर, जहाँ अभी अँधियार.
संभव है इस रीत से जगमग हो संसार..


प्रभु जी का यह प्रथम संकलन अपने गुणवत्ता से अगले संकलन की प्रतीक्षा करने के लिये प्रेरित करता है. इस अच्छी कृति के लिए वे बधाई के पात्र हैं.


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गुरुवार, 4 जून 2009

बाल-गीत: पेन्सिल -संजीव 'सलिल'

पेंसिल


पेन्सिल बच्चों को भाती है.

काम कई उनके आती है.

अक्षर-मोती से लिखवाती.

नित्य ज्ञान की बात बताती.

रंग-बिरंगी, पतली-मोटी.



लम्बी-ठिगनी, ऊँची-छोटी.



लिखती कविता, गणित करे.

हँस भाषा-भूगोल पढ़े.

चित्र बनाती बेहद सुंदर.

पाती है शाबासी अक्सर.

बहिना इसकी नर्म रबर.

मिटा-सुधारे गलती हर.

घिसती जाती,कटती जाती.

फ़िर भी आँसू नहीं बहाती.

'सलिल' जलाती दीप ज्ञान का.

जीवन सार्थक नाम-मान का.

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स्वास्थ्य-साधना: स्व. शान्ति देवी वर्मा

इस स्तम्भ के अंतर्गत पारंपरिक चिकित्सा-विधि के प्रचलित दिए जा रहे हैं। हमारे बुजुर्ग इन का प्रयोग कर रोगों से निजात पाते रहे हैं।

आपको ऐसे नुस्खे ज्ञात हों तो भेजें।

इनका प्रयोग आप अपने विवेक से करें, परिणाम के प्रति भी आप ही जिम्मेदार होंगे, लेखक या संपादक नहीं।

बहु उपयोगी औषधि: अमृतधारा



अजवायन का सत् २५ gram, कपूर २५ ग्राम, पिपरमेंट १० ग्राम, इलायची का तेल १० ग्राम, दालचीनी का तेल १० ग्राम, लौंग का तेल १० ग्राम, बादाम का तेल १० ग्राम- एक शीशी में डालकर १०-१५ मिनट हिलाएं। यह मिश्रण अनेक रोगों की राम बाण दावा 'अमृतधारा' है। इसके उपयोग से खाँसी, जुकाम, बदहजमी, पेट-दर्द, कई, दस्त, हैजा, दंत-दर्द, बिच्छू-दंश आदि में तुंरत आराम lहोता है।




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सूक्ति-सलिला: शेक्सपिअर, प्रो. बी.पी.मिश्र'नियाज़' / सलिल

विश्व वाणी हिन्दी के श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार, शिक्षाविद तथा चिन्तक नियाज़ जी द्वारा इस स्तम्भ में विविध आंग्ल साहित्यकारों के साहित्य का मंथन कर प्राप्त सूक्ति रत्न पाठको को भेँट किए जा रहे हैं। संस्कृत में कहा गया है- 'कोषस्तु महीपानाम् कोशाश्च विदुषामपि' अर्थात कोष या तो राजाओं के पास होता है या विद्वानों के।


इन सूक्तियों के हिन्दी अनुवाद मूल की तरह प्रभावी हैं। डॉ. अम्बाशंकर नागर के अनुसार 'अनुवाद के लिए कहा जाता है कि वह प्रामाणिक होता है तो सुंदर नहीं होता, और सुंदर होता है तो प्रामाणिक नहीं किंतु मैं यह विश्वासपूर्वक कह सकता हूँ कि इन सूक्तियों का अनुवाद प्रामाणिक भी है और सुंदर भी।'


'नियाज़' जी कहते हैं- 'साहित्य उतना ही सनातन है जितना कि मानव, देश और काल की सीमायें उसे बाँध नहीं सकतीं। उसके सत्य में एक ऐसी सत्ता के दर्शन होते हैं जिससे अभिभूत होकर न जाने कितने युग-द्रष्टाओं ने अमर स्वरों में उसका गान किया है। प्रांजल विचार संचरण के बिना श्रेष्ठ नव साहित्य का निर्माण असंभव है आंग्ल साहित्य के कुछ श्रेष्ठ रचनाकारों के साहित्य का मंथन कर नियाज़ जी ने प्राप्त सूक्ति रत्न बटोरे हैं जिन्हें वे पाठकों के साथ साँझा कर रहे हैं। अंग्रेजी शब्द का हिन्दी उच्चारण तथा हिन्दी अर्थ छात्रों हेतु उपयोगी होगा।


सूक्तियों का हिन्दी काव्यानुवाद कर रहे हैं आचार्य संजीव 'सलिल' ।


सूक्तियाँ शेक्सपिअर के साहित्य से-
Friend फ्रेंड = मित्र, दोस्त, यार, साथी, सखा।


'He that is thy friend indeed,
He will help thee in need,
If you sorrow, he will weep,
If you wake, he cannot sleep.


मित्र वह है कष्ट में तेरे सहायक जो बने।
दुःख तुझे हो और उसकी आँख में आँसू घने॥
जागता लखकर तुझे जो रात भर तारे गिने ।
कृष्ण के संग जो सुदामा-प्रेम में सचमुच सने


केवल उसको जानिए , अपना सच्चा मीत।
आवश्यकता में करे, मदद- निभाए प्रीत॥


तुझको दुःख में देखकर, रोएँ उसके नैन।
तुझको जागा देख वह, सोये न- हो बेचैन॥



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बुधवार, 3 जून 2009

नर्मदा का जल गंगाजल से भी ज्यादा शुद्ध है।

५ जून विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष..मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा का जल गंगाजल से भी ज्यादा शुद्ध है। इस तथ्य का खुलासा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट में हुआ है। नर्मदा के पानी में घुलित आक्सीजन का स्तर गंगा नदी से काफी ज्यादा है, इस कारण नदियों की ग्रेडिंग में नर्मदा को बी और गंगा को सी ग्रेड दी गई है। बोर्ड विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जल की मासिक सेंपलिंग कर उसका परीक्षण करता है।

इसमे देश भर की विभिन्न नदियों के पानी का भी परीक्षण किया जाता है। परीक्षण के आधार पर नदी जल की ग्रेडिंग होती है। प्राकृतिक स्रोत से प्राप्त जलों में नर्मदा नदी के पानी को सर्वाधिक उच्च गुणवत्तायुक्त पाया गया है।

नर्मदाजल को बी ग्रेड

नर्मदा जल को अधिक शुद्धता के लिए बी ग्रेड दिया गया है। नर्मदा जल की सेंपलिंग प्रदेश के होशंगाबाद, ओंकारेश्वर, महेश्वर, बड़वानी और गुजरात के जड़ेश्वर में की गई। नर्मदाजल में होशंगाबाद में घुलित आक्सीजन की मात्रा 8.8 मिग्रा प्रतिलीटर पाई गई और खंभात की खाड़ी में मिलने से पहले गुजरात के जड़ेश्वर में 7 से 10 मिग्रा प्रतिलीटर पाई गई। इन स्थानों के बीच ओंकारेश्वर में 7.8, महेश्वर में 7.6 और बड़वानी में घुलित आक्सीजन की मात्रा 9.1 मिग्रा प्रतिलीटर पाई गई। एनएमबी कालेज होशंगाबाद में इंडस्ट्रियल केमेस्ट्री के प्रोफेसर ओएन चौबे के अनुसार घुलित आक्सीजन की मात्रा जितनी ज्यादा होती है जल उतना ही अधिक शुद्ध माना जाता है।

गंगाजल को सी ग्रेड

गंगाजल की सेपलिंग उत्तरांचल, रूद्रप्रयाग, हरिद्वार, बुलंदशहर, कानपुर, रायबरेली, इलाहाबाद, बक्सर और अंत में डायमंड हार्बर में की गई। उत्तरांचल में गंगाजल में डिसाल्वड आक्सीजन(घुलित आक्सीजन) की मात्रा 9.8 पाई गई और समुद्र में मिलने से पूर्व डायमंड हार्बर प्वाइंट पर घुलित आक्सीजन का निम्नतम स्तर 5.4 मिग्रा प्रतिलीटर पाया गया। सेंपलों के आधार पर गंगाजल को सी ग्रेड दिया गया है।

गुजरात की साबरमती नदी को सर्वाधिक प्रदूषित पाया गया। इसे डी ग्रेड दिया गया है।

’बिखरे मोती’..पुस्तक समीक्षा

’अहसास की रचनायें’’बिखरे मोती’
समीक्षक: विवेक रंजन श्रीवास्तव

"मुझको ज्ञान नहीं है बिल्कुल छंदो का,
बस मन में अनुराग लिए फिरता हूँ मैं."

ये पंक्तियाँ हैं, सद्यः प्रकाशित काव्य संकलन ’बिखरे मोती’ में प्रकाशित ’आस लिए फिरता हूँ मैं’ से. समीर लाल जो हिन्दी ब्लॉग जगत में ’उड़नतश्तरी नाम से सुविख्यात हैं. एक लब्ध प्रतिष्ठित ब्लॉगर, कवि, विचारक एवं चिंतक हैं. समाज, देश के सारोकार उनकी रचनाओं में स्पष्ट झलकते हैं. अपनी ७१ रचनाओं, जिनमें गीत, गज़लें, छंद मुक्त कवितायें, मुक्तक एवं क्षणिकायें समाहित हैं, के रुप में उन्होंने अपना पहला काव्य संग्रह ’बिखरे मोती’ हिन्दी पाठकों हेतु पुस्तकाकार प्रस्तुत किया है.पिछले दिनों इस कृति का विमोचन जबलपुर में दिव्य नर्मदा के संपादक आचार्य संजीव सलिल जी ने किया था.

कम्प्यूटर की दुनियां के वर्चुएल जगह की तात्कालिक, समूची दुनियां में पहुँच की सुविधा के बावजूद, प्रकाशित पुस्तकों को पढ़ने का आनन्द एवं महत्व अलग ही है. इस दृष्टि से ’बिखरे मोती’ का प्रकाशन हिन्दी साहित्यजगत हेतु उपलब्धि है.

अपने अहसास को शब्दों का रुप देकर हर रोज नई ब्लॉग पोस्ट लिखने वाले समीर जी जब लिखते हैं:

’कुटिल हुई कौटिल्य नीतियाँ,
राज कर रही हैं विष कन्या’

या फिर

’चल उठा तलवार फिर से
ढ़ूंढ़ फिर से कुछ वजह,
इक इमारत धर्म के ही
नाम ढ़ा दी बेवजह’

तब विदेश में रहते हुये भी समीर का मन भारत की राजनीति, यहाँ धर्म के नाम पर होते दंगों फसादों से अपनी पीड़ा, की आहत अभिव्यक्ति करता लगता है.

वे लिखते हैं:

’लिखता हूँ अब बस लिखने को,
लिखने जैसी बात नहीं है.'

या फिर

’हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई,
चिड़ियों ने यह जात न पाई.’

या फिर

’नाम जिसका है खुदा, भगवान भी तो है वही,
भेद करते हो भला क्यूँ, इस जरा से नाम से.’

धर्म के पाखण्ड पर यह समीर की सशक्त कलम के सक्षम प्रहार हैं.
इसी तरह आरक्षण की कुत्सित नीति पर वे लिखते नजर आते हैं:

’दलितों का उद्धार जरुरी, कब ये बात नहीं मानी,
आरक्षण की रीति गलत है, इसमें गरज तुम्हारी है’

एक सर्वथा अलग अंदाज में जब वे मन से, अपने आप से बातें करते हैं, वो लिखते हैं:

’आपका नाम बस लिख दिया,
लीजिये शायरी हो गई.’

कुल मिला कर ’बिखरे मोती’ की कई कई मालायें समीर के जेहन में हैं. उनकी रचनाओं का हर मोती एक दूसरे से बढ़ कर है. प्रत्येक अपने आप में परिपूर्ण, अपनी ही चमक लिये, अपना ही संदेशा लिये, अद्भुत!

सारी रचनायें समग्र रुप से कहें तो अहसास की रचनायें हैं, जिन्हें संप्रेषणीयता के उन्मान पर पहुँच कर समीर ने सार्वजनिक कर हम सब से बांटा है.

पुस्तक पठनीय, पुनर्पठनीय एवं संग्रहणीय है.

बधाई एवं शुभकामनाऐं.
- विवेक रंजन श्रीवास्तव ’विनम्र’OB 11 M P S E B Colony ,Rampur ,
जबलपुर, म.प्र.
ब्लॉग: http://vivekkevyang.blogspot.com/
नोट ...जो कवि लेखक प्रकाशक अपनी पुस्तक की समीक्षा करवाना चाहते हैं , वे पुस्तक की प्रति व आग्रह पत्र भेज सकते हैं ....

मंगलवार, 2 जून 2009

लघुकथा -मुखड़ा देख ले आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

कक्ष का द्वार खोलते ही चोंक पड़े संपादक जी|

गाँधी जी के चित्र के ठीक नीचे विराजमान तीनों बंदर इधर-उधर ताकते हुए मुस्कुरा रहे थे.

आँखें फाड़कर घूरते हुए पहले बंदर के गले में लटकी पट्टी पर लिखा था- 'बुरा ही देखो'|

हाथ में माइक पकड़े दिगज नेता की तरह मुंह फाड़े दूसरे बंदर का कंठहार बनी पट्टी पर अंकित था- 'बुरा ही बोलो'|

'बुरा ही सुनो' की पट्टी दीवार से कान सटाए तीसरे बंदर के गले की शोभा बढ़ा रही थी|

'अरे! क्या हो गया तुम तीनों को?' गले की पट्टियाँ बदलकर मुट्ठी में नोट थामकर मेज के नीचे हाथ क्यों छिपाए हो? संपादक जी ने डपटते हुए पूछा|

'हमने हर दिन आपसे कुछ न कुछ सीखा है| कोई कमी रह गई हो तो बताएं|'

ठगे से खड़े संपादक जी के कानों में गूँज रहा था- 'मुखडा देख ले प्राणी जरा दर्पण में ...'

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परिणय पर्व-वर्ष ग्रथि पर बधाई : मनु-उमा शतायु हों

दिव्य नर्मदा के सुपरिचित गज़लकार और अभिन्न अंग भाई मनु 'बेतखल्लुस' और उमाजी के दांपत्य बंधन की वर्ष ग्रंथि पर सकल दिव्य नर्मदा की ओर से हार्दिक मंगल कामनाएं.

बहुत कम ही किसी से बिन मिले अहसास होता है.
कि अनजाना भी कोई दिल के बिलकुल पास होता है..

नरमदा नेह की जो भी नहाया, तर गया यारों.
खुदी को भूलने पर खुदा का अहसास होता है..

तकल्लुफ क्यों करें, किससे करें, कोई ये बतला दे.
तखल्लुस 'बेतखल्लुस' का हमेशा खास होता है..

मिटा कर द्वैत को, अद्वैत के पथ पर चला चल तू.
'उमा' जिसको चुने- कंकर भी शंकर-रास होता है.

वरण 'मनु' का करे देवी भी, जग में मानवी बनकर.
मिली चंदा से निर्मल चाँदनी, आभास होता है.

सफल हो साधना स्नेहिल, 'सलिल' कर जोड़कर वंदन.
करे, कह- 'हर दिवस तुमको विमल मधुमास होता है.'

न अंतर में तनिक अंतर, पढ़ा है कौन सा मंतर?
हमेशा इसमें उसका-उसमें इसका पास होता है..

मेरी भाषा

मेरी भाषा

विवेक रंजन श्रीवास्तव "विनम्र"
OB 11 , विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर, जबलपुर म.प्र.

मेरी भाषा
हिन्दी नही है
अंग्रेजी या तमिल भी नही .

मेरी भाषा है
पालने में झूलती किलकारियाँ
चिड़ियों की चहचहाहट
झरनों का कलकल नाद
बादलों की ओट से
सूरज की ताँक झाँक .

मेरी भाषा है
मौन की
नेह की भाषा
स्पर्श की
चैन की भाषा
आखों की
मुस्कान की भाषा
ईमान की
इंसान की भाषा

ना त्रिभाषा ....
बस एक ही भाषा
अंजान से
पहचान की भाषा

सोमवार, 1 जून 2009

बिजली बचाने के कुछ टिप्स

बिजली बचाने के कुछ टिप्स
By .. विवेक रंजन श्रीवास्तव
अतिरिक्त अधीक्षण इंजीनियर
जबलपुर

blog http://nomorepowertheft.blogspot.com

1 घर के रंग का कमाल
गर्मी आने को है , इस बार घर की दीवारों व सीलिंग की पुताई के साथ ही घर की छत का फर्श भी जरूर पुतवायें .हो सके तो छत पर सफेद ग्लेज्ड टाइल्स लगवा दें. बाहर की दीवारों पर सफेद , हल्का आसमानी या लाइट येलो कलर करवायें , आप पायेंगे कि ए.सी., कूलर व फैन की जरूरत कम पड़ रही है, घर के तापमान में २ से ३ डिग्री की निश्चित कमी परिलक्षित होगी . भीतर का रंग संयोजन भी हल्का रखें .दिन में तो कमरों की खिड़कियाँ खुली रखने पर नैसर्गिक प्रकाश से ही काम चल जायेगा , रात में भी सी एफ एल की रोशनी पर्याप्त होगी .


2 खेलें बिजली बचत का खेल
आपके घर में कितने सदस्य हैं ?...
सप्ताह के प्रत्येक दिन , किसी न किसी सदस्य को बिजली बचाने की जबाबदारी सौंप दें . सुबह ८.०० बजे मीटर की रीडिंग ले कर लिख लीजीये . अब उस दिन जिस सदस्य की बारी है , उसकी जबाबदारी है कि अगले २४ घंटो में कम से कम बिजली जले . पूरे सप्ताह में जिस भी सदस्य की जबाबदारी में सबसे कम यूनिट खपत होगी , उसे पुरस्कृत किया जावेगा , और जिस सदस्य की जिम्मेदारी के दिन सबसे ज्यादा बिजली जलेगी , पैनाल्टी के रूप में उसे परिवार के सभी सदस्यो को सप्ताहांत में ट्रीट देनी पड़ेगी .आप देखेंगे कि इस युक्ति से बचचे व्यर्थ जलते बिजली के उपकरण तुरंत बंद करने हेतु लगातार प्रयत्नशील रहेंगे . धीरे धीरे उनमें बिजली बचत के संस्कार पड़ जायेंगे . निश्चित ही बिजली बिल में आशातीत कमी आयेगी . आपकी श्रीमती जी अपनी बारी आने पर घर के सारे के सारे बल्ब बदल कर सी एफ एल लगवा देंगी . आप अपनी बारी आने पर आई एस आई मार्क उपकरणों से , दिल्ली मेड पुराने उपकरण बदल देंगे . कुल मिलाकर बिजली बचत पर विशद चर्चा ,व उर्जा बचत का समग्र वातावरण बनेगा , जो आपके व समाज के लिये दीर्घगामी रूप से हितकारी ही होगा .

3 इलेक्ट्रिकल सुपरवाइजर की भूमिका निभायें

इलेक्ट्रिकल सुपरवाइजर की भूमिका निभायें , जरा पूरे घर की बिजली फिटिंग , उपकरणों पर सूक्ष्म नजर डालें . कुछ स्विच , प्लग, होल्डर खराब हो चुके होंगे , कई तारों में जोड़ , कट होंगे , जिन्हें बदलना , सुधारना , कसना जरूरी होगा .स्विच चालू या बंद करते समय स्पार्किंग होना ठीक नहीं है . झूलते तारो का गुच्छा , लूज फिटिंग , बिना पिन प्लग के साकेट में खोंसे गये सीधे तार कभी भी दुर्घटना का कारण बन सकते हैं . नंगे तार, टूटे विद्युत उपकरणो के काम चलाउ उपयोग को धकाते रहने से कभी भी कोई बड़ी अप्रिय घटना घट सकती है . और आपकी लापरवाही , उपेक्षा , या थोड़ी सी बचत बहुत मँहगी पड़ सकती है .आग लग सकती है . करेंट लग सकता है . बिजली से थोड़ा डर कर ही , सुरक्षात्मक तरीके से चलने में ही भलाई है . घर की सारी फिटिंग चैक करिये . जरूरी सुधार करिये .आज बिजली जीवन का इतना आवश्यक अंग बन चुकी है कि बिजली के विषय में घर के सभी सदस्यों को , महिला सदस्यों को भी, प्राथमिक जानकारी होना जरूरी है .
समुचित गुणवत्ता की फिटिंग से न केवल बचत होती है वरन आप व्यर्थ विद्युत व्यवधान की परेशानियों से भी बच सकते हैं .
4 थोड़ा ग्रीस , थोड़ा आइल

आज थोड़ा ग्रीस और थोड़ा आइल लेकर तैयार हो जायें , आप कितने ही ऐसे विद्युत उपकरण उपयोग करते हैं जिनमें घूमने वाले , मूविंग पार्ट्स लगे होते हैं . उपर की ओर देखें ...अपने सीलिंग फैन को ही लें . जाने कबसे , उसकी सफाई नही हुई है ! यहाँ तक कि फैन के ब्लेड्स पर नीचे की ओर भी गर्द की परत जमा हो जाती है .पंखा आवाज करके आपको बता भी रहा है कि उसे तेल चाहिये , पर हम कब से उसे अनसुना कर रहे हैं .घर का वाटर पंप जब तक खराब ही न हो जाये हम उसका मेंटेनेंस फिजूल समझते हैं . कृपया अपनी मशीनों को ओवर लोड होने से बचायें . उनमें एक नियमित अंतराल पर ग्रीसिंग , आयलिंग जरूर करें . जिन उपकरणों में बियरिंग लगी हैं , उनकी बियरिंग किसी कुशल मैकेनिक से चैक करवालें व समय रहते उसे अवश्य बदल दें . जिन उपकरणों में कैपेसिटर लगे हैं , उनके कैपेसिटर समुचित क्षमता के ही हों , ISI प्रमाणित हों , व ठीक ढ़ंग से काम कर रहे हों यह देखते रहें . इन छोटी मोटी रखरखाव की आदतों से न केवल आप बिजली बिल में कमी ला सकते हैं वरन समूचे विद्युत तंत्र के सुचारु संचालन में अपना योगदान दे सकते हैं .
तो देर किस बात की है, आज कुछ समय निकालिये ना ,अपने इन आरामदायी उपकरणों के लिये ....

5 इनर्जी आडीटर के रोल में

आमदनी के आय व्यय का आडिट किया ही जाता है .फिजूल खर्चे पर रोक का प्रयास होता है , गलत व्यय पर प्रश्न चिन्ह खड़े किये जाते हैं .

उर्जा भी तो अपरोक्ष रूप से कीमती धन ही है . आज इनर्जी आडीटर के रोल में आइये .....

क्या आपका विद्युत कनेक्शन वैद्य है ?
कभी आपने विद्युत प्रदाता कंपनी से , बिजली कनेक्शन लेते समय किये गये अनुबंध पर ध्यान दिया है ?
कहीं आप हर बार लेट पेमेंट के चलते व्यर्थ रुपये तो नही दे रहे?

बिजली सब्सिडी पर दी जाती है , अलग अलग उपभोक्ता वर्ग हेतु अलग अलग दरें होती है ,क्या आपका कनेक्शन सही वर्ग में है ? अर्थात घरेलू , व्यवसायिक , कृषि, औद्योगिक या अन्य ... जाँच करे !

कहीं आपके कनेक्शन से किसी अन्य को आपने कोई अवैद्य कनेक्शन तो नहीं दिया है ? प्रायः घर के आस पास लोग छोटे अस्थाई दूकानदारों को या किरायेदारों को स्वतः कनेक्शन दे देते हैं , और इसके लिये उनके मन में अज्ञानता के चलते कोई अपराध बोध ही नहीं होता ! आपको बिजली बेचने का अधिकार नही है .

विभिन्न खपत स्लैब हेतु अलग अलग दर होती है , क्या आपका बिल सही आ रहा है ? क्या कुछ खपत कम करके हम बिल में बड़ी बचत कर सकते हैं ?कहीं खराब मीटर के कारण आपकी लगातार एवरेज बिलिंग ही तो नही हो रही ? मीटर रीडिग और बिल में दर्ज खपत में सामंजस्य है ? आपके कनेक्शन पर यूनिट खपत , फ्लैट रेट , माँग आधारित, या अन्य किस तरह की बिलिंग होरही है , उसे जाने समझें .सही आप्शन चुने .
बड़े उपभोक्ता M.D. controler (अधिकतम माँग नियंत्रक)लगा सकते हैं .

तो कुछ होम वर्क करिये ...

6 फोकस तरह तरह के
बहुतायत में बिजली का प्रयोग प्रकाश के लिये होता है , जाने कितनी उर्जा का अपव्यय रात को दिन में बदलने की नाकाम कोशिश में होता है . बड़े बड़े बंगलों के आसपास व्यर्थ ढ़ेर सी लाइट लगाकर जैसे वैभव का प्रदर्शन किया जाता है . बिजली की जगमगाहट को बाजार की रौनक कहा जाता है .
टेबल लैंप का प्रयोग तो आप सब करते ही हैं ,यह फोकस्ड लाइट का छोटा सा उदाहरण है . जहाँ लाइट चाहिये वहीं परावर्तन द्वारा प्रकाश को एकत्रित कर फोकस से हम रोशनी का अपव्यय बचा सकते हैं .
बंगलो , दूकानो में ढ़ेर से बल्ब लगाने की अपेक्षा बंगले की बाउंडरी पर एक आयताकार फोकस लाइट , बंगले की ओर फोकस कर दो अपोजिट कार्नर्स पर , बंगले की उंचाई के बराबर के खंभों पर , भवन की प्लिंथ को फोकस करते हुये लगा दे , आप पायेंगे कि बिना रोशनी में कमी आये , बंगले की दीवारे तक जगमगा रही हैं , पर बिजली बिल में ७५ प्रतिशत तक की कमी हो गई है .
इसी तरह दूकानदार सड़क के दूसरी ओर की दूकान से अपनी दूकान पर , एवं अपनी दूकान से सामने वाले की दूकान पर फोकस लाइट का उपयोग कर बेहिसाब बिजली बचा सकते हैं , एवं इस बचत का लाभ अपने ग्राहकों को दे सकते हैं .
फोकस भी तरह तरह के आकार , प्रकार , एवं परावर्तक , लैंस आदि के साथ मिलते हैं . जिनका समुचित उपयोग कोई विशेषज्ञ सहज ही बता सकता है .
सोलर कुकर , व अन्य सौर उर्जित उपकरणो में भी फोकस का महत्व सर्वविदित तथा स्वयं स्पष्ट है .आवश्यकता बस इतनी है कि हम फोकस के प्रयोग को बढ़ावा देना शुरू तो करें ..........

7 पूरे के पूरे बल्ब बदल डालें ........

बिना किसी सोच विचार के पूरे के पूरे ट्रेडीशनल बल्ब बदल डालें और उनकी जगह सी एफ एल लगा दें . आने वाले दिनो में बिजली बिल में जो बचत होगी उससे सी एफ एल खरीदने में जो अतिरिक्त व्यय आप करेगे वह सहज ही वसूल हो जायेगा . श्वेत , कूल रोशनी मिलेगी , कमरे का तापमान नही बढ़ेगा .सीएफएल बल्ब परंपरागत बल्ब की तुलना में पाँच गुणा प्रकाश देता है।सीएफएल सामान्य बल्ब से आठ गुणा अधिक टिकाउ होते है।
यदि हम 60 वाट के साधारण बल्ब के स्थान पर, 15 वाट का कॉम्पैक्ट फ्लूरेसेन्ट लाइट बल्ब का उपयोग करते हैं तो हम प्रति घंटा 45 वाट ऊर्जा की बचत कर सकते हैं। इस प्रकार, हम प्रति माह 11 यूनिट बिजली की बचत कर सकते हैं .
हाँ एक बात ध्यान रखें ,जब भी सीएफएल खराब हो जाये तो उसे जमीन में बिना काँच तोड़े गड़ा दें , क्योकि इसमें मरकरी होता है जो वातावरण व स्वास्थ्य के लिये दुष्प्रभावी होता है .
इसी तरह ४० वाट की त्यूबलाइट की जगह उसी फिटिंग में ३६ वाट की ट्यूबराड लगा लें ..बूँद बूँद से घट भरे ...


8 फ्रिज की गास्केट चैक करें, कम्प्रैशर की गर्द साफ करें

आज फ्रिज की गास्केट चैक करें, कम्प्रैशर की गर्द साफ करें , और एअर कंडीशनर की जाली की सफाई करें ..

फ्रिज एसा उपकरण है जो २४ घंटे चलता रहता है . लंबे समय में फ्रिज की गास्केट कड़ी हो जाती है व कट या मुड़ जाती है जिससे अधिक बिजली का सतत व्यय तो होता ही है , कम्प्रैसर पर ज्यादा भार पड़ता है और उसका जीवन कम होता है , अतः समय व आवश्यकता के अनुसार गास्केट का नवीकरण आवश्यक है .
कम्प्रैशर पर बेहिसाब गर्द जमा हो जाती है, जिससे वह अतिरिक्त रूप से गरम होने लगता है . एक निश्चित अंतराल पर कम्प्रैशर की सफाई की जाती रहनी चाहिये .
ए.सी . , सबसे अधिक बिजली खपत करने वाला उपकरण है . इसमें कमरे की ही हवा सर्क्युलेट होती है , अतः कमरे को एअर टाइट रखें . जरा ए.सी. के सामने वाली जाली को हटायें , आप देखेंगे कि सामने की प्लास्टिक ग्रिल के पीछे एक महीन प्लास्टिक नेट लगी है , जो लम्बे समय से सफाई के अभाव में चोक है . इस वजह से ए सी को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ रही है . कृपया इस नेट को बाहर निकाल कर अच्छी तरह धो दें और पुनः यथावत लगा दें . निश्चित ही शीतलन बढ़ जायेगा , बिजली की खपत घट जायेगी .
दरअसल अब तक हमारे यहाँ आफ्टर सेल सर्विस की सुढ़ृड़ प्रणाली विकसित नही हुई है , इस वजह से यह मेंटेनेंस हमें स्वयं करने आवश्यक होते हैं ,जिससे हमारे उपकरण मानक स्थितियों पर चलते रहें .
9 उर्जा की बचत के लिये प्राकृतिक खाद्य पदार्थो के उपयोग को बढ़ावा
आजकल हम दब्बाबंद खाद्य पदार्थों के उपयोग में बड़प्पन समझते हैं . यहाँ तक कि पानी भी पाउच या बोतल का ही पीते हैं . फास्टफुड की आदतें पड़ती जा रही हैं . कभी सोचिये , प्राकृतिक रूप से सुलभ फल , व अन्य खाद्य पदार्थों को प्रोसेस्ड करके उपयोग करने में हम जाने कितनी उर्जा का व्यर्थ अपव्यय कर रहे हैं ? फिर वे चाहे आलू के चिप्स हों या डब्बा बंद मांस , या अन्य पदार्थ ! इस तरह हम खाद्य पदार्थ कि पौष्टिकता ही कम नहीं कर डालते वरन उसे मँहगा बना लेते हैं , और सबसे ज्यादा चिंता का विषय है कि इस प्रक्रिया में ढ़ेर सी उर्जा का अपव्यय कर डालते हैं .
अतः आज से अपने परिवार में , अपने मित्रों में इस बात की नियमित चर्चा कीजीये व प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों के उपयोग को हतोत्साहित कीजीये . बाटल्ड जूस की जगह , ताजा रस पीजिये .. प्राकृतिक खाद्य सामग्री का यथा संभव सीधा उपयोग बढ़ाइये , स्वस्थ भी रहिये और उर्जा भी बचाने में अप्रत्यक्ष रूप से अपना बहुमूल्य योगदान दीजीये ....
10 संतोषम् परमम् सुखम्
आज कुछ दार्शनिक हो जायें . जो पायें संतोष धन सब धन धूरि समान . हम शौकिया तौर पर जब भी बाजार जाते हैं कुछ न कुछ बिना जरूरत का सामान भी खरीद ही लाते हैं . शो पीस , ढ़ेर से कपड़े , संग्रह के लिये गहने , घरेलू सामान ....वगैरह वगैरह .क्या आपने सोचा है कि इस तरह अनुपयोगी सामान की खरीददारी कर आप उर्जा का अपव्यय कर रहे हैं ? प्रत्येक वस्तु के निर्माण पर प्रत्यक्ष , परोक्ष उर्जा व्यय होती ही है . अब यदि उस वस्तु का व्यर्थ संग्रहण या अनुपयोग किया गया तो हुआ
न उर्जा का अपव्यय . उर्जा संरक्षण के विषय में जब हम चेतना के इस स्तर तक जाकर सोचने लगेंगे तब ही सही मायनो में उर्जा बचत के नारे सफल हो सकेंगे . तो उर्जा बचत पर सोचिये , बातें कीजीये और कुछ क्रियान्वयन कीजीये !
11 ओवन , प्रेस , वाशिंग मशीन का एकजाई उपयोग
ओवन , प्रेस , वाशिंग मशीन जैसे उपकणों की क्षमता के अनुरूप कार्य एकत्रित कर लें फिर एक ही बार में मशीन का पूरा आप्टिमम उपयोग करे . देखिये कि कितनी बिजली बची ?
12 खिड़कियों की काँच में ट्राँसपेरेंट फिल्म लगावें
घर की खिड़कियों के कांच में ट्रांस्पेरेंट फिल्म का उपयोग कर ४ल्ट्रावायलेट किरणौ को बाहर ही रोक दें , अनुभव कीजीये कि घर के तापमान में कितना अंतर होता है !
13. फाल्स सीलिंग
यदि घर में वातानुकूलन यंत्रो का उपयपग कर रहे हैं तो फाल्स सीलिंग अवश्य करवाइये , शीतलन का वाल्यूम कम होते ही बिजली का बिल भी कम हो जायेगा .
14 उपकरणों को मुख्य स्विच से बंद करने की आदत ..
आज का समय रिमोट और कार्डलैस कंट्रोल की सुविधा के उपकरणों का है . पर क्या आपने कभी सोचा कि इसके चलते मुख्य स्विच बंद करने की हमारी आदत ही छूट गई है . टी वी रात भर भी मुख्य स्विच से बंद नही किया जाता ... कम्प्यूटर स्टैंडबाई मोड में ही बना रहता है , ब्रड बैँड का मोडेम हमेशा चालू रहने के कारण कितना गरम हो जाता है ? और तो और गीजर तक थर्मोस्टैट से ही कट होकर बंद होता है ......इतना अधिक सुविधा भोगी होना ठीक नही ! उर्जा की बचत की दृष्टि से तो बिल्कुल भी नही ! उपकरणों को मुख्य स्वच से बंद करने की आदत डालें और व्यर्थ जाती बिजली बचायें ..घर से बाहर जाते समय मीटड़ बोर्ड के निकट लगा मेन स्विच बंद कर दुर्घटना की संभावना से बचने की आदत डालें , बिजली भी बचायें .

15 कपड़े धोने के लिये ठंडे पानी का प्रयोग व सुखाने हेतु धूप व हवा ...
कपड़े धोने के लिये गरम पानी का उपयोग , व धुले हुये कपड़े सुखाने के लिये वाशिंग मशीन के ड्रायर का उपयोग बहुतायत में किया जा रहा है . इससे कितनी उर्जा व्यर्थ हो रही है ? यही काम सामान्य थोड़ी सी मेहनत व थोड़ा सा ज्यादा समय लगाकर ठंडे पानी से कपड़े धोकर व उन्हें खुली हवा तथा धूप में सुखाकर भी सुगमता से किया जा सकता है ! और बचाई जा सकती है ढ़ेर सी उर्जा ...
16 सामाजिक दायित्व बोध
देश भर में दुर्गा पूजा का सांस्कृतिक महोत्सव होता है . हम सब ने दुर्गा पूजा के पंडाल घूमें हैं . आपने नोटिस किया ? ज्यादातर पंडालों में सजावट के नाम पर बिजली की चकाचौंध ही है . डीजे का शोर है . थर्मो कूल की कलाकारी है . आंकड़े बताते हैं कि हर शहर कस्बे गाँव में ढ़ेरों दुर्गा उत्सव आयोजन समितियां है , खूब बिजली जल रही है , पर इस सजावट के लिये अस्थाई विद्युत कनेक्शन कितने लिये गये हैँ ? मतलब साफ है बिजली चोरी को हम सबने सामाजिक मान्यता दे रखी है ... ? ...?
पुराना समय याद कीजीये , दादा जी या नाना जी से पूछिये .. पहले जब इतनी बिजली की जगमगाहट नही होती थी ..तब भी दुर्गा पूजा तो होती ही थी . तब कैसे सजाये जाते थे पंडाल ? शायद तब पूजा के विधि विधान , श्रद्धा आस्था अधिक थी . आम के पत्तों की तोरण , पतंग के कागज से सजावट होती थी .सांस्कृतिक आयोजन , कविसम्मेलन , नृत्य आदि उत्सव होते थे .
बिजली की कमी को देखते हुये क्या हमें हमारे समाज और सरकार को एक बार फिर दुर्गा पूजा , मोहर्रम , क्रिसमस, न्यूइयर , गणेशोत्सव आदि आयोजनों में बिजली के फिजूल उपयोग पर , तथा आयोजन में सजावट व आयोजन के स्वरूप पर विचार मंथन नहीं करना चाहिये? ???????

और अब अंत में कुछ माथा पच्ची , मेरा प्रश्न है कि क्या प्रिमियम बिजली वितरण प्रणाली विकसित की जावे ?
आज के बिजली वितरण परिदृश्य में अगले १० ..१५.. . वर्षो तक बिजली की समस्या पूरी तरह हल होती नही दिखती . सुविधा हेतु लोग इनवर्टर , स्वयं के छोटे जनरेटर आदि उपकरण लगाने को मजबूर हैं . बिजली के क्षेत्र में , प्रतियोगित्मक बिजली वितरण हेतु निजिकरण किया जा रहा है . किन्तु जब एकल प्रदाता ही सब जगह नही पहुंच पाया है ,और मांग पर चाह कर भी हर एक को कही भी, कभी भी तुरत बिजली कनेक्शन व अनवरत बिजली सुलभ नही करवा पा रहा है , तो यह कल्पना करना कि बिजली वितरण का क्षेत्र मोनोपाली एण्ड रिस्ट्रिक्टेड ट्रेड प्रैक्टिस एक्ट के अंतर्गत सच्चे स्वरूप में प्रतियोगिता के स्तर पर लाया जा सकेगा , व उपभोक्ता को यह अधिकार होगा कि वह किससे बिजली खरीदे ,अभी सैद्धांतिक सोच है .
. ऐसे समय में वितरण कंपनियों को क्या प्रिमियम बिजली वितरण प्रणाली विकसित करना चाहिये ? जो ज्यादा पैसा देगा उसे अनवरत बिजली तो मिलेगी . पीकिंग अवर्स में सक्षम लोग इस प्रिमियम बिजली वितरण प्रणाली से बिजली खरीद सकेंगे .इससे बिजली चोरी पर नियंत्रण हो सकेगा .

विवेक रंजन श्रीवास्तव
अतिरिक्त अधीक्षण इंजीनियर
OB/11 , MPSEB Colony ,Rampur
जबलपुर
mob. 09425806252