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सोमवार, 12 जुलाई 2010

मुक्तिका: मन में यही... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
मन में यही...
संजीव 'सलिल'
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मन में यही मलाल है.
इंसान हुआ दलाल है..

लेन-देन ही सभ्यता
ऊँच-नीच जंजाल है

फतवा औ' उपदेश भी
निहित स्वार्थ की चाल है..

फर्ज़ भुला हक माँगता
पढ़ा-लिखा कंगाल है..

राजनीति के वाद्य पर
गाना बिन सुर-ताल है.

बहा पसीना जो मिले
रोटी वही हलाल है..

दिल से दिल क्यों मिल रहे?
सोच मूढ़ बेहाल है..

'सलिल' न भय से मौन है.
सिर्फ तुम्हारा ख्याल है..

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दिव्यनार्मादा.ब्लागस्पाट.कॉम

1 टिप्पणी:

prabhakar pandey 'gopalpuriya ने कहा…

सादर धन्यवाद...इस अनमोल, सामयिक, सटीक एवं विचारणीय रचना के लिए।।।।। सादर आभार।।