दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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मंगलवार, 27 जुलाई 2010
गीत : राह देखती माँ की गोदी... संजीव 'सलिल' *
गीत :
राह देखती माँ की गोदी...
संजीव 'सलिल'
*
*
राह देखती माँ की गोदी
लाड़ो बिटिया आ जाओ.
प्यासी ममता हेर रही है-
कुछ तो प्यास बुझा जाओ....
*
नटखट-चंचल भोलापन
तेरा जीवन की थाती है.
दीप यहाँ मैं दूर कहीं तू-
लेकिन मेरी बाती है.
दीपक-बाती साथ रहें कुछ पल
तो तम् मिट जायेगा.
अगरु-धूप सा स्मृतियों का
धूम्र सुरभि फैलाएगा.
बहुत हुआ अब मत तरसाओ
घर-अँगना में छा जाओ.
प्यासी ममता हेर रही है-
कुछ तो प्यास बुझा जाओ....
*
परस पुलक से भर देगा
जब तू कैयां में आयेगी.
बीत गयीं जो घड़ियाँ उनकी
फिर-फिर याद दिलायेगी.
सखी-सहेली, कौन कहाँ है?
किसने क्या खोया-पाया?
कौन कष्ट में भी हँसता है?
कौन सुखों में भरमाया?
पुरवाई-पछुआ से मिलकर
खिले जुन्हाई आ जाओ.
प्यासी ममता हेर रही है-
कुछ तो प्यास बुझा जाओ....
चिप्पियाँ Labels:
-Acharya Sanjiv Verma 'Salil',
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आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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8 टिप्पणियां:
sahajta pravah v naveenta ki triveni hai yeh geet acharyasheree
sach kahen to prashansaa ke shabd chhote pad rahen hai
apka
ss mandal
आ० आचार्य जी,
मार्मिक और मन को छू लेने वाला गीत | बधाई !
कमल
सलिल जी,
ऐसे लेखन की प्रशंसा नहीं, केवल पूजा की जा सकती है. इसीसे अपने-पराये [देश, धर्म, संस्कृति, भाषा, कविता-शैली (गीत-ग़ज़ल अंतर)] का फ़र्क ्मालूम पड़ता है.
--ख़लिश
आदरणीय सलिल जी
एक बार पुनः सुन्दर गीत को पढ़ कर भाव विह्वल हो गया।
आपकी निम्न पंक्तियाँ मन को छू गईं-
नटखट-चंचल भोलापन
तेरा जीवन की थाती है.
दीप यहाँ मैं दूर कहीं तू-
लेकिन मेरी बाती है.
बधाई
सन्तोष कुमार सिंह
आदरणीय सलिल जी
एकबार पुनः सुन्दर गीत के लिये बधाई स्वीकारें।
निम्न पंक्तियों ने मुझे भावविह्वल कर दिया -
नटखट-चंचल भोलापन
तेरा जीवन की थाती है.
दीप यहाँ मैं दूर कहीं तू-
लेकिन मेरी बाती है.
सन्तोष कुमार सिंह
priy sanjiv ji
bahut sundar kavita bahut badhai
kusum
सातृ-हृदय की सारी संवेदनाओं के साथ कवि का मन बोल उठा है इस करुण-मधुर गीत में ,सलिल जी ,धन्य हैं आप !
- प्रतिभा
आचार्य सलिल जी, आपका गीत बहुत अच्छा लगा। आप और राकेश जी तो आशु कवि हैं। ईकविता मे आप दोनों से बहुत सीखने को मिलता है।
मानोशी
www.manoshichatterjee.blogspot.com
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