मुक्तिका:
प्यार-मुहब्बत नित कीजै..
संजीव 'सलिल'
*
*
अंज़ाम भले मरना ही हो हँस प्यार-मुहब्बत नित कीजै..
रस-निधि पाकर रस-लीन हुए, रस-खान बने जी भर भीजै.
जो गिरता वह ही उठता है, जो गिरे न उठना क्या जाने?
उठकर औरों को उठा, न उठने को कोई कन्धा लीजै..
हो वफ़ा दफा दो दिन में तो भी इसमें कोई हर्ज़ नहीं
यादों का खोल दरीचा, जीवन भर न याद का घट छीजै..
दिल दिलवर या कि ज़माना ही, खुश या नाराज़ हो फ़िक्र न कर.
खुश रह तू अपनी दुनिया में, इस तरह कि जग तुझ पर रीझै..
कब आया कोई संग, गया कब साथ- न यह मीजान लगा.
जितने पल जिसका संग मिला, जी भर खुशियाँ दे-ले जीजै..
अमृत या ज़हर कहो कुछ भी पीनेवाले पी जायेंगे.
आनंद मिले पी बार-बार, ऐसे-इतना पी- मत खीजै..
नित रास रचा- दे धूम मचा, ब्रज से यूं.एस. ए.-यूं. के. तक.
हो खलिश न दिल में तनिक 'सलिल' मधुशाला में छककर पीजै..
***********************************************
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
शनिवार, 31 जुलाई 2010
मुक्तिका: प्यार-मुहब्बत नित कीजै.. संजीव 'सलिल'
चिप्पियाँ Labels:
/samyik hindi kavya,
acharya sanjiv verma salil,
anugeet,
Contemporary Hindi Poetry,
hindee filmon ke madhur geet,
hindi gazal,
india,
jabalpur,
muktika
आचार्य संजीव वर्मा सलिल
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
7 टिप्पणियां:
बेहतरीन मुक्तिका...सलिल जी को बधाई.
कब आया कोई संग, गया कब साथ- न यह मीजान लगा.
जितने पल जिसका संग मिला, जी भर खुशियाँ दे-ले जीजै..
....Bahut khub kaha..badhai.
सलिल जी ने तो समां ही बांध दिया...मुबारक हो.
वाह बहुत ही सुन्दर.
बहुत सुन्दर.......
प्यार-मुहब्बत नित कीजै.. बिना इसके तो दुनिया भी अधूरी है. अच्छी रचना के लिए सलिल जी को बधाई.
सुमन शिखा शहरोज़ की, आकांक्षा हो पूर्ण.
श्वास राधिका आस हो कृष्ण, रास परिपूर्ण.
नेह-नर्मदा स्नान कर, कर रत्नेश निनाद.
'सलिल' प्राण का प्राण से, हो हर पल संवाद..
एक टिप्पणी भेजें