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मंगलवार, 1 मार्च 2011

मुक्तिका : बड़े नेता... -- संजीव 'सलिल'



मुक्तिका:

बड़े नेता...

संजीव 'सलिल'
*
बड़े नेता.
सड़े नेता. .


मरघटों में
गड़े नेता..

स्वहित हेतु
अड़े नेता..

जड़, बिना जड़
जड़े नेता..

साध्य सत्ता. 
अड़े नेता..

जड़, बिना जड़
जड़े नेता..

साध्य सत्ता.                                                                 
लड़े नेता..

पग-तलों में                                             
पड़े नेता..

भुला हर सच
खड़े नेता..

पत्थरों से
 कड़े नेता..

बिना पेंदी
घड़े नेता..
सड़े फल हैं
झड़े नेता..                                                                       

दल, कहीं हैं
धड़े नेता..

*********

9 टिप्‍पणियां:

शार्दुला ने कहा…

shar_j_n
ekavita

1.3.2011, १०:२९ पूर्वाह्न



वाह आचार्य जी,
बड़े नेता.
सड़े नेता. . ........सही

मरघटों में
गड़े नेता.. .....काश!


स्वहित हेतु
अड़े नेता.. ....... हाय हाय!

जड़, बिना जड़
जड़े नेता.. ..... ये बहुत बोलती सी पंक्तियाँ,नमन स्वीकारें!


साध्य सत्ता.
लड़े नेता.. ... हार जाएं !!

पग-तलों में
पड़े नेता.. ... मुह की खाएं !!

भुला हर सच
खड़े नेता.. ... क्यों है ऐसा?

पत्थरों से
कड़े नेता.... जी!


बिना पेंदी
घड़े नेता.. .. :)

सड़े फल हैं
झड़े नेता.. ... काश !

दल, कहीं हैं
धड़े नेता.. ... इसका अर्थ?
सादर शार्दुला

Divya Narmada ने कहा…

आत्मीय शार्दुला जी!

आपको रचना रुची तो मेरा लेखनकर्म सफल हो गया. ऐसे सुधी पाठक कम ही मिलते हैं. आपने हर पंक्ति को व्याख्यायित कर आजकल दुर्लभ गुणग्राहकता का परिचय दिया है. आभार.


दल, कहीं हैं
धड़े नेता.. ... इसका अर्थ?

आशय यह कि नेता का अपना व्यक्तित्व या आधार नहीं है, कहीं दल के नाम पर जिन्दा है तो कहीं दल के भीतर एक धड़े (भाग या समूह) की तरह.

- dkspoet@yahoo.com ने कहा…

छोटे बहर की सार्थक ग़ज़ल के लिए बधाई।

कृपया, यह शे’र देखें लय में कुछ दिक्कत आ रही है।


स्वहित हेतु
अड़े नेता..

सादर

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

Divya Narmada ने कहा…

माननीय धर्मेन्द्र जी!
वन्दे मातरम.
लय में अटकाव प्रतीत हो रहा है तो कोई विकल्प सुझाने की कृपा करिए.

sn Sharma ✆ ekavita ने कहा…

नेता का सटीक सच , साधुवाद
कमल

- mcdewedy@gmail.com ने कहा…

naveen shailee mem likhane hetu badhai .
Mahesh Chandra Dwivedee

vivek mishr 'tahir' ने कहा…

Aacharya Ji..

Jawaab nahi aapki 'muktikaaon' ka.

do-do shabdon mein hi netaaon ke upar itna teekha vyang.

waah-waah.

Ravi Kumar Giri 'Guruji' ने कहा…

sir ji

aap mahan ho

( paiso ke liye pade neta ,
desh ko kalankit kade neta )

बेनामी ने कहा…

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