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मंगलवार, 17 जनवरी 2012

दोहा सलिला: समय संग दोहा कहे... --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला
समय संग दोहा कहे...

संजीव 'सलिल'
*
समय संग दोहा कहे, सतत सनातन सत्य.
सच न कह सको मौन हो, पर मत कहो असत्य..
*
समय न बिके बाजार में, कौन लगाये मोल.
नहीं तराजू बन सकी, सके समय को तोल..
*

समय न कुछ असमय करे, रहे सदा निरपेक्ष.
मनुज समय के साथ चल, हो घटना-सापेक्ष..
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समय-समय का फेर है, पतन और उत्थान.
सुख-दुःख में गुणिजन जिएँ,  हर पल एक समान..
*
समय परखता सभी को, हुए बिना भयभीत.
पक्ष न लेता किसी का, यही समय की रीत..
*
साथ समय के जंग में, धैर्य न जाए हार.  
शील सौख्य सहकार सच, करता बेडा पार..
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सतत करे सह-वास मन, तन सीमित सहवास.
मिलन तृप्ति दे, विरह का समय अधूरी प्यास..
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समय साथ दे तो झुको, 'सलिल' मान आभार.
हो विपरीत अगर समय, धारो धैर्य अपार..
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'सलिल' समय की धार में, बहना होकर मुक्त.
पत्थर जड़ हो थम गया, हो तट से संयुक्त..
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समय मीन चंचल-चपल, थिर न रहे पल एक.
निरख रहे ज्ञानी-गुनी, अविचल सहित विवेक..
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साथ समय के जो चले, छले न उसको काल.
आदि अंत में देखता, उन्नत रखकर भाल ..
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