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रविवार, 21 अक्तूबर 2012

दोहा दुनिया: नदिया जैसी रात -शशि पाधा

दोहा दुनिया:



नदिया जैसी रात 

शशि पाधा
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नीले नभ से ढल रही, नदिया जैसी रात
ओढ़ी नीली ओढनी, चाँदी शोभित गात

श्यामल अलकें खोल दीं, तारक मुक्ताहार
माथे सोहे चन्द्रिमा, चाँद गया मन हार
   
सागर दर्पण झांकती, अधरों पे मित हास     
लहरें हँसती डोलतीं, नयनों में परिहास

छमछम झांझर बोलती, धीमी सी पदचाप
पात-पात पर रागिनी, डाली-डाली थाप  

मंद-मंद बहती पवन, मंद्र लहर संगीत 
रजनीगंधा ढूँढती, तारों में मनमीत

ओट घटा के चाँद था, रात न आए चैन
नभ तारों में ढूँढते, विरहन के दो नैन  

चंचल चितवन चातकी, श्याम सलोनी रात
चंदा देखें एकटक, दोनों बैठी साथ 

श्वेत कमलिनी झील में, रात सो गई संग
लहरों में घुल मिल गए, नीलम-हीरा रंग

भोर पलों में सूर्य ने, मानी अपनी भूल
धरती झोली भर दिए, पारिजात के फूल

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