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गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

माहिया गीत: मौसम के कानों में --संजीव 'सलिल'

माहिया गीत   
मौसम के कानों में
संजीव 'सलिल'
*
 
(माहिया:पंजाब का त्रिपदिक मात्रिक छंद है. पदभार 12-10-12, प्रथम-तृतीय पद सम तुकांत, विषम पद तगण+यगण+2 लघु = 221 122 11, सम पद 22 या 21 से आरंभ, एक गुरु के स्थान पर दो गुरु या दो गुरु के स्थान पर एक लघु का प्रयोग किया जाता है, उर्दू पिंगल की तरह हर्फ गिराने की अनुमति, पदारंभ में 21 मात्रा का शब्द वर्जित।)
* 
मौसम के कानों में
कोयलिया बोले,
खेतों-खलिहानों में।
*
आओ! अमराई से
 
आज मिल लो गले, 
भाई और माई से।
*
आमों के दानों में,
गर्मी रस घोले,
बागों-बागानों में---
*
होरी, गारी, फगुआ
गाता है फागुन,
बच्चा, बब्बा, अगुआ।
*
 
प्राणों में, गानों में,
मस्ती है छाई,
दाना-नादानों में---
*

Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



12 टिप्‍पणियां:

deepti gupta @ yahoogroups.com ने कहा…

deepti gupta @ yahoogroups.com

kavyadhara


संजीव जी,
सभी 'माहिये' बहुत सधे हुए और सुर ताल में बंधे हुए है! हमने गुनगुना कर देखे! बस, एक पंक्ति में गाने में हल्का सा अटकाव आ रहा है - मित्र और भाई से।
शेष अति सुरीले !
ढेर सराहना स्वीकारें !
सादर,

Ram Gautam ekavita ने कहा…

Ram Gautam ekavita

आ. आचार्य संजीव जी,

पहली बार ई-कविता पर ये माहिया गीत पढ़ रहा हूँ| आपका बहुत आभारी हूँ|
एक अलग ही रंग का गीत है जो शायद हाइकु से मिलता-जुलता है| मात्राओं का
अंतर लगता है| क्या आप इसे विस्तार में समझा सकेंगे, आपका आभारी रहूंगा|
सादर-गौतम
माहिया गीत- मौसम के कानों में
(पंजाबी त्रिपदिक मात्रिक छंद, पदभार 12-10-12, प्रथम-तृतीय पद सम तुकांत)
मौसम के कानों में
कोयलिया बोले,
खेतो-खलिहानों में---.

Divya Narmada ने कहा…

माननीय!
वन्दे मातरम।
माहिए मुख्यतः पंजाबी, हरियाणवी आदि में कहे गए हैं। यह एक त्रिपदिक लोकगीत है जो सदियों से प्रचलित है। यह एक मात्रिक छंद, है जिसके प्रथा पद (पंक्ति) में 12, द्वितीय पद में 10 तथा तृतीय पद में 12 मात्राएँ होती हैं। प्रथम तथा तृतीय पद सम तुकांत होता है। विषम पद में 221 122 11 = 12 अनुसार पद भर रखने की चलन है किन्तु पंजाबी पर उर्दू पिंगल का प्रभाव होने के कारण बहुधा एक गुरु के स्थान पर दो लघु या दो लघु के स्थान पर एक गुरु तथा हर्फ गिराने या बढ़ाने को दोष नहीं कहा जाता जबकि हिंदी की मात्रा गणना प्रणाली के अनुसार गिनने पर मात्र घट-बढ़ जाती है।

हिंदी में माहिया लिखते समय-

1. पंजाबी में प्रचलित परंपरा का पालन हो या मात्र गणना में गन नियम के अनुसार कडाई बरती जाए?

2. विषम पद (1 - 3) में सम तुकांत को अनिवार्य रखा जाए या 1 - 3, 2 - 3, 1 - 2, 1 - 2 - 3 तथा किसी भी पद में सम तुकांत न होने पर भी रचनाओं को माहिया के विविध प्रकार कहा जाए।

3. क्या हिंदी के मानक छंदों में माहिया और इसी प्रकार विविध अंचलों में प्रचलित अन्य लोक भाषाओँ में प्रचलित छन्दों को उनका रचना विधान निर्धारित कर सम्मिलित किया जाए?

4. क्या माहिया का प्रयोग कर माहिया-गीत, माहिया-मुक्तक, माहिया-गजल, माहिया-खंड काव्य, माहिया-काव्यानुवाद आदि भी लिखे जाने चाहिए?

उक्त प्रश्नों पर इस मंच पर विद्वद्ज्जन विचार कर तय कर सकें तो बेहतर।

हाइकू जापानी त्रिपदिक वार्णिक छंद है जिसके तीन पदों में क्रमशः 5-7-5 अक्षर (वर्ण) होते हैं, मात्राओं का बंधन नहीं होता। मूलतः जापानी हाइकू प्रकृति पर आधरित तथा अपने आपमें पूर्ण होते हैं। तुक बंधन नहीं होता। हिंदी में हाइकू लेखन केवल पद संख्या और वर्ण संख्या संबंधी नियम मानकर लिखे जा रहे हैं। हाइकु-गीत, हाइकु-ग़ज़ल, हाइकु-मुक्तक, हाइकू-खंड काव्य तथा गीता का हाइकू काव्यानुवाद जैसे कार्य हुए हैं।

प्रस्तुत माहिया गीत एक ऐसा ही साहित्यिक प्रयोग है। काव्य प्रेमियों का आशीष मिला तो माहिया-मुक्तक, माहिया-गजल आदि भी प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगा।

Divya Narmada ने कहा…

दादा!
वन्दे!
आपसे माहिया लिखना सीखा। यह प्रथम प्रयास है। त्रुटि- इंगित कर अपने सही मार्ग दर्शन किया। आभार। कोशिश होगी कि सही-सही माहिया लिख सकूं। हिन्दी छंदों की अपनी पुस्तक में इसे सम्मिलित करूंगा। क्या पंजाबी में ऐसे और भी छंद हैं यदि हों तो उनकी भी जानकारी दीजिए।

प्राण शर्मा ने कहा…

प्रिय सलिल जी ,
मेरी धारणा है कि हाइकू से माहिया कहीं अधिक अच्छा है , माहिया में संगीत है तुकांत होने के कारण .
आपके माहिये मुझे बहुत मार्मिक लगे हैं . आप और लिखें और खूब लिखें .

एक बात लिखना मैं भूल गया था . माहिया की दूसरी पंक्ति 2 1 या 2 2 यानि गुरु और लघु या गुरु
और गुरु से शुरू होनी चाहिए . मसलन - ` हाथ लगे मिर्ची या हाथों में आया
पूरा माहिया यूँ होगा -

हर बार नहीं मिलती
भीख भिखारी को
हर द्वार नहीं मिलती
-------------------------
रेशम की डोरी है
क्यों न लगे प्यारी
वो बेहद गोरी है .
----------------------------
तस्वीर बदल डालें
आओ मिल कर हम
तकदीर बदल डालें
--------------------------
उड़ते गिर जाता है
कागज़ का पंछी
कुछ पल ही भाता है
---------------------------
कुछ ऐसा लगा झटका
टूट गया पल में
मिट्टी का इक मटका
----------------------------
हर कतरा पानी है
समझो तो जानो
हर शब्द कहानी है
-----------------------------
आँखों में पानी है
हर इक प्राणी की
इक राम कहानी है

पंजाबी छंद पिंगल छंद पर ही आधारित है . अन्य प्रांतीय लोकगीतों
के छंदों की तरह उसके भी कुछ लोकगीत छंद हैं . देवेन्द्र सत्यार्थी ने लोक गीतों
पर बहुत काम किया था . उनकी किताब ढूंढिए . मुझे कोई और अच्छा छंद मिला
तो लिखूंगा .
शुभ कामनाओं के साथ ,
प्राण शर्मा

Dr.M.C. Gupta द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

Dr.M.C. Gupta द्वारा yahoogroups.com

ekavita


सलिल जी,

सुंदर प्रयोग हैं. सबसे पहला सबसे अच्छा लगा--

मौसम के कानों में
कोयलिया बोले,
खेतो-खलिहानों में---

--ख़लिश

pran sharma ने कहा…

pran sharma

प्रिय सलिल जी ,
आप छा गए हैं. आपके सब के सब माहिये हर तरह से अद्वीतीय हैं. हार्दिक बधाई. यूँ ही लिखते रहिएगा.
शुभ कामनाओं के साथ ,
प्राण शर्मा

Shashi Padha ने कहा…

Shashi Padha

आदरणीय सलिल जी,

गेयता के अनुसार सभी माहिया ठीक हैं । मात्रा भी मैंने देखीं हैं , लेकिन उसके आचार्य तो आप हैं । वो तो आप देख लें । बधाई आपको इन सुन्दर माहिया के लिए । दूसरे में केवल शब्द स्थान बदला है , लय की दृष्टि से । किन्तु इस माहिया का अर्थ स्पष्ट नहीं है ।

सादर,
शशि

sanjiv verma salil ✆ ने कहा…

शशि जी
भाव यह है कि अमराई को देखकर ग्राम्य बाला को माँ और भाई से मिलने की सी अनुभूति है। माँ और भाई न मिल सके तो अमराई में उनकी उपस्थिति कल्पित कर संतोष कर रही है।
इस अंचल में बम्बुलिया लोकगीत गया जाता है:
नरमदा तो ऐसी मिलीं, ऐसी मिलीं, ऐसी मिलीं रे जैसे मिल गए मताई औ' बाप रे---

pran sharma ने कहा…

pran sharma

प्रिय सलिल जी ,
आप जैसे प्रतिभावान को कोई भला क्या सिखाएगा ?
आपको सिखाना सूरज को दीपक दिखाने वाली बात हो जायेगी .
शुभ कामनाओं के साथ ,
प्राण शर्मा

preet arora ने कहा…

preet
आदरणीय सलिल जी
बहुत बहुत धन्यवाद आपने मुझे इस लायक समझा.बहुत खूबसूरत माहिया .दिल को छू गया.मैं इसको अपने पास रख रही हूं ताकि मैं भी माहिया पढ़कर लिखने की कोशिश कर सकूँ :)

dks poet ने कहा…

dks poet

ekavita


बहुत सुंदर माहिया गीत है।
बधाई स्वीकारें आचार्य जी।
सादर

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’