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बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

गीत: प्रिये तुम्हारा रूप ... संजीव 'सलिल'

गीत:
प्रिये! तुम्हारा रूप ...
संजीव 'सलिल'
*
प्रिये! तुम्हारा रूप,
झलक जो देखे वह हो भूप।
बंकिम नयन-कटाक्ष
देव की रचना नव्य अनूप।
*
प्रिये! तुम्हारा रूप,
भरे अंजुरी में क्षितिज अनूप।
सौम्य उषा सा शांत
लालिमा सात्विक रूप अरूप।
*
प्रिये! तुम्हारा रूप,
देख तन सोचे कौन अरूप।
रचना इतनी रम्य
रचे जो कैसा दिव्य स्वरूप।
*
प्रिये! तुम्हारा रूप,
कामनाओं का काम्य स्तूप।
शीतल छाँह समेटे
आँचल में ज्यों आये धूप।
*
प्रिये! तुम्हारा रूप,
करे बिम्बित ज्यों नभ को कूप।
श्वेत-श्याम-रतनार
गव्हर-शिख, थिर-चंचला सुरूप।
*  

8 टिप्‍पणियां:

Pratap Singh ने कहा…



आदरणीय आचार्य जी

अहा! कितनी सुन्दर पंक्तियाँ लिखी हैं आपने। मन प्रसन्न हो गया। कोटिश: धन्यवाद!

सादर
प्रताप

kusum sinha ने कहा…

kusum sinha, ekavita


priy sanjiv ji
etni sundar kavita ke liye dher sari badhai sweekar karen

kusum

- mcdewedy@gmail.com ने कहा…

- mcdewedy@gmail.com

"कामनाओं का कमी स्तूप'- बिलकुल ही नयी उपमा है. बहुत बहुत बधाई सलिल जी ।

dks poet ने कहा…

dks poet

आदरणीय आचार्य जी,
इस शानदार गीत के लिए साधुवाद स्वीकारें
सादर

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

Pratap Singh ने कहा…

Pratap Singh

वाह ! वाह ! वाह ! क्या बात है !

बहुत ही मोहक !

आचार्य जी आपकी लेखनी निराली है।

Pratap Singh ने कहा…

Pratap Singh

प्रिये तुम्हारा रूप !
हृदय का मंद हास स्वरुप !
सूर्यमुखी ज्यों विहँस उठे
पा प्रात की कोमल धूप !

प्रिये तुम्हारा रूप !

vijay @ returns.groups.yahoo.com ने कहा…

vijay @ returns.groups.yahoo.com

आ० ’सलिल’ जी,

तुम्हारा रूप,
करे बिम्बित ज्यों नभ को कूप।
सुन्दर अभिव्यक्ति है ।

विजय

Rakesh Khandelwal ने कहा…

Rakesh Khandelwal

भाई,

"उर्वशी " की याद दिला दी .

राकेश