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बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

Book review : mangal bula raha hai

पुस्तक समीक्षा :

मंगल पर जीवन की तलाश % अनुराग

mangal bula raha hai.srinivas laxman
इस माह भारत मंगल अभियान के तहत पहली बार अपना अंतरिक्ष यान मंगल ग्रह की यात्रा पर रवाना कर रहा है। ऐसे में बहुत से सवाल मन में उठते है- भारत यह अभि‍यान क्‍यों शुरू कर रहा है, इस पर कितना खर्च होगा, क्‍या यह धन की बर्बादी है, अभियान के लिए यह समय क्‍यों चुना गया, इसमें कौन-कौन से वैज्ञानिक जुटे हुए हैं, कैसी होगी उन वैज्ञानिकों की जीवन-शैली और कार्य-पद्धति, क्‍या विश्‍व के अन्‍य देश भी इस तरह के अभियान से जुड़े हैं, अब तक के मंगल अभियानों को कितनी सफलता मिली, इनका क्‍या भवि‍ष्‍य है, आदि। इन और ऐसे ही अनेक सवालों के जवाब श्रीनिवास लक्ष्‍मण की पुस्‍तक ‘मंगल बुला रहा है’ में दिए गए हैं। पेशे से पत्रकार श्रीनिवास लक्ष्‍मण ने पत्रकारिता की शुरुआत वैमानिकी केंद्रित विषयों से की और फिर उन्‍होंने अंतरिक्ष अन्‍वेषण का क्षेत्र चुना, जिसमें उनकी सर्वाधिक रुचि है। उन्‍होंने भारत के प्रथम चंद्र अभियान ‘चंद्रयान-1’ के साथ ही श्रीहरिकोटा से अनेक राकेटों के प्रक्षेपण की रिपोर्टिंग की है। उनका एक परिचय यह भी है कि वह सुप्रसिद्ध कार्टूनिस्‍ट आर.के. लक्ष्‍मण के बेटे हैं। मूलत: अंग्रेजी में लिखी इस पुस्‍तक का हिंदी अनुवाद सुप्रसिद्ध विज्ञान लेखक देवेंद्र मेवाड़ी ने किया है। श्रीनिवास लक्ष्‍मण ने मंगल अभियान के सभी पहलुओं और महत्‍व को समझने व समझाने के लिए इस महा-परियोजना से जुड़े कुछ महत्‍वपूर्ण व्‍यक्तियों से बातचीत की और विभिन्‍न अंतरिक्ष केंद्रों में जाकर वहाँ की कार्यपद्धति व तैयारियों को निकट से देखा।
वैज्ञानिक संभावनाएँ व्‍यक्‍त कर रहे हैं कि मंगल ग्रह पर कभी जीवन रहा होगा और आज भी पृथ्‍वी के अनुकूल मानव के रहने की सबसे अधिक संभावनाएँ मंगल पर ही व्‍यक्‍त की जा रही हैं। इसी का परिणाम है कि 1960 से रूस के  पहले मंगल अभियान से लेकर अब तक 40 से भी अधिक अभियानों के तहत मंगल ग्रह के अध्ययन के लिए अंतरिक्ष यान भेजे जा चुके हैं। दुर्भाग्‍यपूर्ण बात है कि इनमें से 25 अभियान असफल रहे। भारत के मंगल अभियान की तैयारी इसरो के उपग्रह केंद्र, बंगलुरु में चल रही है। अब परियोजना अंतिम चरण में है। वैज्ञानिक दिन-रात काम में जुटे हैं।
यह किताब भारत के अं‍तरिक्ष अभियान के इतिहास पर भी प्रकाश डालती है। यह अभियान भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई और भारतीय नाभिकीय कार्यक्रम के जनक होमी भाभा के सपनों को साकार करने का ही एक प्रयास है। कोई ढाँचागत व्‍यवस्‍था न होने के कारण अंतरिक्ष विभाग के इंजीनियरों और वैज्ञानिकों ने थुंबा गाँव के छोटे से चर्च और उसके बिशप के मकान में अंतरिक्ष अनुसंधान का काम शुरू कि‍या था और वहाँ राकेट के हिस्‍सों का निर्माण किया। साउंडिंग राकेट के कल-पुर्जे साइकिलों और कभी-कभी तो बैलगाड़ी में भी लाए गए थे। इस तरह शुरू हुआ भारत का अंतरिक्ष अभियान आज अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर अपनी खास पहचान बना चुका है।
थुंबा से जो प्रथम साउंडिंग राकेट छोड़ा गया था, वह नासा ने दि‍या था और उसका नाम था- नाइकी अपाचे। राकेट छोड़ने की यह घटना 21 नवंबर 1963 को हुई थी। 2013 में जब मंगल अभि‍यान शुरू होगा, तो वह भारतीय अंतरि‍क्ष कार्यक्रम के प्रथम राकेट के प्रक्षेपण की 50वीं वर्षगाँठ का समय होगा।
अभियान से जुड़े कई वैज्ञानिकों के बारे में भी अब तक अनजानी जानकारियाँ किताब में दी गई हैं। इसरो अध्‍यक्ष डॉ. के. राधाकृष्‍णन कर्नाटक शैली के जाने-माने गायक हैं। वह कथकली कलाकार भी हैं और उन्‍होंने इसकी मंच पर प्रस्‍तुतियां भी दी हैं।
इसरो के तिरुअनंतपुरम स्थित भारतीय अंतरिक्ष एवं प्रौद्योगिकी संस्‍थान में डीन अनुसंधान डॉक्‍टर आदिमूर्ति बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। उनके बारे में एक रोचक बात यह है कि उन्‍होंने कार्यालय जाने के लिए कभी गाड़ी का इस्‍तेमाल नहीं किया। वह अपने काम पर साइकिल से जाते रहे। उन्हें साइकिल चलाना पसंद है,  इसलिए कार नहीं रखी।
मंगल तक के इस महत्‍वाकांक्षी अभि‍यान का प्राथमि‍क उद्देश्‍य मंगल ग्रह के वातावरण का और उसके भूगर्भीय अध्‍ययन करना है। यह मंगल पर मीथेन की पहेली को भी हल करने की कोशि‍श करेगा। मीथेन की उपस्‍थि‍त की पहेली के हल से ही पता चल पाएगा कि ‍मंगल पर जीवन मौजूद है या नहीं।
यह जानकर कि‍सी भी भारतीय नागरिक को बड़ा गर्व होगा कि अगर हमारे देश ‍का यह मंगल अभि‍यान सफल रहता है, तो भारत वि‍श्‍व में ऐसा पहला देश होगा, जो सरकार से स्‍वीकृति‍ ‍मि‍लने के मात्र एक वर्ष के भीतर मंगल अभि‍यान को अंजाम दे देगा। अन्‍य देशों को इन तैयारि‍यों के लि‍ए तीन या चार वर्ष का समय लगा है।
हमारी पृथ्वी से चंद्रमा केवल चार लाख कि‍लोमीटर दूर है। पृथ्‍वी से कोई भी सि‍गनल चंद्रमा तक मात्र 1.3 सेकेंड में भेजा जा सकता है, जबकि पृथ्‍वी से मंगल तक 40 करोड़ किलोमीटर दूर सि‍गनल के पहुँचने में 20 मि‍नट का समय लगेगा। इसके अलावा चंद्रयान-1 से संबंधि‍त तैयारि‍याँ करने में चार वर्ष का समय लगा था, जबकि मंगल अभि‍यान का काम वैज्ञानिक मात्र एक साल में पूरा कर रहे हैं।
पृथ्‍वी से मंगल तक पहुँचने में करीब 300 दि‍न लगते हैं। मंगल ग्रह की कक्षा में अंतरिक्ष यान को प्रवेश कराना अभि‍यान की एक पेचीदा, खतरनाक और संशय से भरी महत्‍वपूर्ण अवस्‍था होती है। इस स्‍थि‍ति ‍में पहुँच कर अन्‍य देशों के कई अभि‍यान असफल हो चुके हैं। इसलि‍ए इस अभि‍यान की तैयारि‍यों में जुटे वैज्ञानि‍क बारीक-से-बारीक चीज पर गहरी नजर रखे हुए हैं। वैज्ञानि‍कों का समर्पण इस बात से पता चलता है कि ‍वे चौबीस घंटे तो काम कर ही रहे हैं, साथ ही अपनी साप्‍ताहि‍क छुट्टि‍यों का भी बलि‍दान कर रहे हैं। अभि‍यान संपन्‍न होने पर भारत की प्रौद्योगि‍की व वैज्ञानि‍क दोनों ही क्षेत्रों में साख बढ़ेगी।
जहाँ तक मंगल अभि‍यानों की संभावना का प्रश्‍न है, तो अंतरि‍क्ष अन्‍वेषण क्षमता वाले अनेक राष्‍ट्र 2035 के आसपास मंगल तक समानव उड़ान भेजने का सपना देख रहे हैं। इन प्रयोगों से भवि‍ष्‍य में मंगल ग्रह पर स्‍थायी रूप से मानव बस्‍ति‍याँ बसाई जा सकेंगी।
दस अध्‍यायों में बंटी यह कि‍ताब भारत के साथ ही वि‍श्‍व के अब तक के मंगल अभि‍यानों के बारे में अच्छी जानकारी देती है। साथ ही मंगल के इति‍हास व उससे संबंधि‍त किंवदंति‍यों और मंगल के प्रति दुनि‍या-भर के आकर्षण पर भी प्रकाश डालती है। भरपूर रंगीन चि‍त्रों से सुसज्‍जि‍त और आम बोलचाल की भाषा में लि‍खी यह कि‍ताब वैज्ञानि‍क और रोचक जानकारि‍यों से भरपूर है।
पुस्तकः मंगल बुला रहा है
लेखकः श्रीनिवास लक्ष्मण
अनुवाद : देवेंद्र मेवाड़ी
मूल्यः 175 रुपये
प्रकाशक : वि‍ज्ञान प्रसार
ए-50, इंस्टी्ट्यूशनल एरि‍या, सेक्टर-62 नोएडा-201309, उत्तर प्रदेश

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