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रविवार, 26 जनवरी 2014

atithi rachna: m. Hasan

अतिथि रचना :
चले गये


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एम. हसन, पाकिस्तान
*
शे'र 
आवाज़ हू-ब-हू तेरे आवज़-ए-पा का था 
देखा निकल के घर से तो झोंका हवा का था 
*
ग़ज़ल 

आये थे चंद दिन के लिये आकर चले गये
खुशियों का एक सपना दिखाकर चले गये
तुझ से ही ज़िन्दगी एक फूलों की सेज थी
क्यों इसको एक फ़साना बनाकर चले गये
कहते थे अब रहेगा न यहाँ ग़मज़दा कोई
इस दिलजले को और जलाकर चले गये
वादा अहसान से किया रहने का उम्र भर
क्यों ज़हर का एक जाम पिलाकर चले गये
*
क्षणिका 
हम भी आपसे 
प्यार कर लेंगे 
ज़रुरत पड़े तो 
जान निसार कर देंगे 
आपका दामन 
खुशियों से भर देंगे 
*

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