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शुक्रवार, 28 मार्च 2014

awadhi geet: omprakash tiwari

अवधी गीत:

पप्पू के पापा तुहूँ लड़ा

- ओमप्रकाश तिवारी

पप्पू के पापा तुहूँ लड़ा
अबकिन चुनाव मा हुअव खड़ा।

निरहू-घुरहू अस कइव जने
सब दावं इलेक्सन मा जीते,
संसद का समझिन समधियान
सब जने देस का लइ बीते ;
न केहू कै वै भला किहिन
न केहू कै कल्यान किहिन,
सीना फुलाय घूमैं जइसे
वै हुवैं सिकंदर जग जीते।

टुटहा घर बनिगा महल अइस,
हैं छापिन नोटव कड़ा-कड़ा।
पप्पू के पापा -------

न काम किहिन न काज किहिन
सोने के भाव अनाज किहिन,
बभनौटन से तुहंका लड़ाय
अपुना दिल्ली मा राज किहिन ;
वै कहिन जाय निपटाउब हम
दुख-दर्द सकल भयवादी कै,
लेकिन सत्ता की गल्ली मा
वै जाय कोढ़ मा खाज किहिन।

खद्दर कै रंग चढ़ा अस की,
होइ गवा करैला नीम चढ़ा ।
पप्पू के पापा ---------

उनकी थइली मा माल भवा
तौ झूर गलुक्का लाल भवा,
मोटर पै बिजुली लाल जरै
हारन जिउ कै जंजाल भवा ;
सब गांव खड़ंजा का तरसै
वै घर तक रोड बनाय लिहिन,
जे तनिकौ मूड़ उठाय दिहिस
ऊ पिपरे कै बैताल भवा ।

केहू गड़ही मा परा मिला,
केहू पै मोटर जाय चढ़ा ।
पप्पू के पापा --------

मँगनी कै धोती पहिर-पहिर
वै नात-बाँत के जात रहीं,
घर मा यक जून जरै चूल्हा
वै भौंरी-भाँटा खात रहीं  ;
अब नेता कै मेहरि बनि के
गहना से लदी-फँदी घूमै,
सोझे मुँह बात न चीत करैं
नखरा नकचढ़ा अमात नहीं।

काने में झुमकी हीरा कै,
नेकुना पै सब्जा बड़ा-बड़ा ।
पप्पू के पापा -------

उनके लरिका कै सुनौ हाल
किरवा झरि जइहैं काने कै,
वकरे चपरहपन के किस्सा से
रंगा रजिस्टर थाने कै ;
बिटिया-पतुअह घर बंद भईं
पहरा लागै डड़वारे पै,
सगरौ पवस्त ऊबा वहसे
चक्कर काटै देवथान्हे कै ।

है गाँव-देस मा अब चर्चा,
इनके पापन कै भरा घड़ा ।
पप्पू के पापा -------
*
 Om Prakash Tiwari
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