अपना धर्म खुद चुनने की आजादी होनी चाहिए
स्रोतः स्व. खुशवंत सिंह, स्थानः नई दिल्ली
प्रस्तुति: गुड्डो दादी
*
खास दिनों पर व्रत रख लेना है। सेक्स से दूर रहना है। कुछ खास किस्म के खाने और पीने से परहेज करना है। उस हाल में मेरा जवाब ठोस ना में होगा। मेरे ख्याल से इन्हें मान लेने या करने से आप बेहतर शख्स नहीं हो सकते।
महान मनोविज्ञानी सिग्मंड फ्रायड ने ठीक ही कहा था, 'जब आदमी धर्म से मुक्त हो जाता है, तब उसके बेहतर जिंदगी जीने की उम्मीदें बढ़ जाती हैं।' महान गैलीलियो ने कई सदी पहले तकरीबन यही कहा था, 'मैं नहीं मानता कि जो भगवान हमें बुद्धि, तर्क और विवेक देता है, वहीं हमें उन्हें भुला देने को कहेगा।' अब्राहन लिंकन का कहना था, 'जब मैं अच्छा काम करता हूं तो मुझे अच्छा लगता है। जब मैं बुरा काम करता हूं तो बुरा लगता है। यही मेरा धर्म है।' कितना सही कहा है लिंकन ने।
हर किसी को अपना धर्म खुद चुनना चाहिए। सिर्फ इसलिए किसी धर्म को नहीं मान लेना चाहिए क्योंकि उसमें उसका जन्म हुआ है। हम नहीं जानते कि कहां से आए हैं? सो, अपनी रचना के लिए भगवान को मान भी सकते हैं और नहीं भी, लेकिन उसे परम मान लेना या करुणामय मान लेने के पीछे कोई सबूत नहीं है। असल में भूकंप, तूफानों और सुनामी में वह अच्छे और बुरे में फर्क नहीं करता। धार्मिक−अधार्मिक और छोटे−बड़े में कोई भेदभाव नहीं करता। आखिर इन सबको हम भगवान का किया ही मानते हैं न। हम धरती पर क्यों आए? इसका जवाब भी तय नहीं है। हम ज्यादा से ज्यादा यह कर सकते हैं कि अपने सबक सीखते रहें। हम कैसे शांति से रह सकें? कैसे अपनी काबलियत का सही इस्तेमाल कर सकें। कैसे सब लोगों के साथ मिलजुल कर रहा जाए। हम सबके लिए कोई बड़ा काम करने की जरूरत नहीं है। काफी लोग इस तरह की जिंदगी जी रहे हैं। मरने के बाद हमारा क्या होता है? उसके लिए बहुत परेशान होने की जरूरत नहीं है। आखिरकार स्वर्ग, नरक और पुनर्जन्म के बारे में कोई सबूत हमारे पास नहीं है। ये सब लोगों ने ही किया है। शायद खुद को ही बरगलाने के लिए।
मनोहर श्याम जोशी
कुमाऊं की पहाडि़यों में अल्मोड़ा के रास्ते में एक गांव पड़ता है सनौलीधार। बस स्टॉप पर ही एक किराना की दुकान है जिसमें डाकघर भी चलता है। वहीं चायवाला है जो गरमागरम चाय, बिस्कुट और पकोड़ा भी दे देता है। उस गांव की खासियत एक स्कूल है। उसकी शुरुआत तो प्राइमरी से हुई थी, लेकिन धीरे−धीरे वह हाईस्कूल हो गया। वहां हेडमास्टर है जो खुद को प्रिंसिपल कहलाना पसंद करता है। अंग्रेजी टीचर है जो प्रोफेसर कहलाना चाहता है। एक अर्ध चीनी लड़की हे कलावती येन। वह नर्सरी क्लास देखती है। एक संगीत की महिला टीचर है और एक मैनेजर है।
इसी गांव में युवा मनोहर श्याम जोशी आते है। कॉलेज से हाल में पढ़ कर निकले और हिंदी के बड़े लेखक बनने की ओर। वह खुराफाती शख्स हैं। अपने साथियों के सेक्स से जुड़े किस्सों को इधर-उधर करने वाले। उनके सबसे बड़े शिकार बनते हैं खष्टीवल्लभ पंत। अंग्रेजी के टीचर हैं। उन्हें प्रोफेसर टटा कहा जाता है। वह 19 साल की कलावती येन के स्वयंभू गार्जिन हो जाते हैं। वही लड़की लेखक को भी बेहद पसंद है। सो, नजदीक रहने के लिए गणित और विज्ञान वगैरह पढ़ाते रहते हैं।
प्रोफेसर टटा और प्रिंसिपल में लड़ाई चलती रहती है। ज्यादातर लड़ाई अंग्रेजी शब्दों मसलन हैंकी पैंकी, होकस−पोकस और कोइटस इंटरोप्टस पर होती है। उन दोनों के बीच-बचाव बेचारी पॉकेट ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी करती है। वहाँ हमेशा अंग्रेजी के लिए अंग्रेजों की तरह काला कोट और पैंट पहननी जरूरी है। वह खुद टाटा की जगह टटा बोलते हैं, लेकिन दूसरों से बिल्कुल सही उच्चारण चाहते हैं।
मनोहर श्याम जोशी मशहूर लेखक और टीवी सीरियल के प्रोड्यूसर थे। उनका व्यंग्य कमाल का था। उसकी मिसाल आप पेंगुइन वाइकिंग से आई 'टटा प्रोफेसर' में देख सकते हैं। इस किताब के लिए उन्हें इरा पांडे के तौर पर बेहतरीन अनुवादक मिली हैं। अपनी मां उपन्यासकार शिवानी पर उनकी किताब 'दिद्दीः माई मदर्स वॉयस' को क्लासिक माना जाता है। कुमाऊंनी बोली को उन्होंने खुब पकड़ा है। शायद इसलिए वह अनुवाद जैसा नहीं लगता। हिंदुस्तानी व्यंग्य की एक मिसाल है यह किताब।
टिप्पणीः यह आलेख स्व. खुशवंत सिंह के पुरालेखों में से एक है- संपादक
स्रोतः स्व. खुशवंत सिंह, स्थानः नई दिल्ली
प्रस्तुति: गुड्डो दादी
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खास दिनों पर व्रत रख लेना है। सेक्स से दूर रहना है। कुछ खास किस्म के खाने और पीने से परहेज करना है। उस हाल में मेरा जवाब ठोस ना में होगा। मेरे ख्याल से इन्हें मान लेने या करने से आप बेहतर शख्स नहीं हो सकते।
महान मनोविज्ञानी सिग्मंड फ्रायड ने ठीक ही कहा था, 'जब आदमी धर्म से मुक्त हो जाता है, तब उसके बेहतर जिंदगी जीने की उम्मीदें बढ़ जाती हैं।' महान गैलीलियो ने कई सदी पहले तकरीबन यही कहा था, 'मैं नहीं मानता कि जो भगवान हमें बुद्धि, तर्क और विवेक देता है, वहीं हमें उन्हें भुला देने को कहेगा।' अब्राहन लिंकन का कहना था, 'जब मैं अच्छा काम करता हूं तो मुझे अच्छा लगता है। जब मैं बुरा काम करता हूं तो बुरा लगता है। यही मेरा धर्म है।' कितना सही कहा है लिंकन ने।
हर किसी को अपना धर्म खुद चुनना चाहिए। सिर्फ इसलिए किसी धर्म को नहीं मान लेना चाहिए क्योंकि उसमें उसका जन्म हुआ है। हम नहीं जानते कि कहां से आए हैं? सो, अपनी रचना के लिए भगवान को मान भी सकते हैं और नहीं भी, लेकिन उसे परम मान लेना या करुणामय मान लेने के पीछे कोई सबूत नहीं है। असल में भूकंप, तूफानों और सुनामी में वह अच्छे और बुरे में फर्क नहीं करता। धार्मिक−अधार्मिक और छोटे−बड़े में कोई भेदभाव नहीं करता। आखिर इन सबको हम भगवान का किया ही मानते हैं न। हम धरती पर क्यों आए? इसका जवाब भी तय नहीं है। हम ज्यादा से ज्यादा यह कर सकते हैं कि अपने सबक सीखते रहें। हम कैसे शांति से रह सकें? कैसे अपनी काबलियत का सही इस्तेमाल कर सकें। कैसे सब लोगों के साथ मिलजुल कर रहा जाए। हम सबके लिए कोई बड़ा काम करने की जरूरत नहीं है। काफी लोग इस तरह की जिंदगी जी रहे हैं। मरने के बाद हमारा क्या होता है? उसके लिए बहुत परेशान होने की जरूरत नहीं है। आखिरकार स्वर्ग, नरक और पुनर्जन्म के बारे में कोई सबूत हमारे पास नहीं है। ये सब लोगों ने ही किया है। शायद खुद को ही बरगलाने के लिए।
मनोहर श्याम जोशी
कुमाऊं की पहाडि़यों में अल्मोड़ा के रास्ते में एक गांव पड़ता है सनौलीधार। बस स्टॉप पर ही एक किराना की दुकान है जिसमें डाकघर भी चलता है। वहीं चायवाला है जो गरमागरम चाय, बिस्कुट और पकोड़ा भी दे देता है। उस गांव की खासियत एक स्कूल है। उसकी शुरुआत तो प्राइमरी से हुई थी, लेकिन धीरे−धीरे वह हाईस्कूल हो गया। वहां हेडमास्टर है जो खुद को प्रिंसिपल कहलाना पसंद करता है। अंग्रेजी टीचर है जो प्रोफेसर कहलाना चाहता है। एक अर्ध चीनी लड़की हे कलावती येन। वह नर्सरी क्लास देखती है। एक संगीत की महिला टीचर है और एक मैनेजर है।
इसी गांव में युवा मनोहर श्याम जोशी आते है। कॉलेज से हाल में पढ़ कर निकले और हिंदी के बड़े लेखक बनने की ओर। वह खुराफाती शख्स हैं। अपने साथियों के सेक्स से जुड़े किस्सों को इधर-उधर करने वाले। उनके सबसे बड़े शिकार बनते हैं खष्टीवल्लभ पंत। अंग्रेजी के टीचर हैं। उन्हें प्रोफेसर टटा कहा जाता है। वह 19 साल की कलावती येन के स्वयंभू गार्जिन हो जाते हैं। वही लड़की लेखक को भी बेहद पसंद है। सो, नजदीक रहने के लिए गणित और विज्ञान वगैरह पढ़ाते रहते हैं।
प्रोफेसर टटा और प्रिंसिपल में लड़ाई चलती रहती है। ज्यादातर लड़ाई अंग्रेजी शब्दों मसलन हैंकी पैंकी, होकस−पोकस और कोइटस इंटरोप्टस पर होती है। उन दोनों के बीच-बचाव बेचारी पॉकेट ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी करती है। वहाँ हमेशा अंग्रेजी के लिए अंग्रेजों की तरह काला कोट और पैंट पहननी जरूरी है। वह खुद टाटा की जगह टटा बोलते हैं, लेकिन दूसरों से बिल्कुल सही उच्चारण चाहते हैं।
मनोहर श्याम जोशी मशहूर लेखक और टीवी सीरियल के प्रोड्यूसर थे। उनका व्यंग्य कमाल का था। उसकी मिसाल आप पेंगुइन वाइकिंग से आई 'टटा प्रोफेसर' में देख सकते हैं। इस किताब के लिए उन्हें इरा पांडे के तौर पर बेहतरीन अनुवादक मिली हैं। अपनी मां उपन्यासकार शिवानी पर उनकी किताब 'दिद्दीः माई मदर्स वॉयस' को क्लासिक माना जाता है। कुमाऊंनी बोली को उन्होंने खुब पकड़ा है। शायद इसलिए वह अनुवाद जैसा नहीं लगता। हिंदुस्तानी व्यंग्य की एक मिसाल है यह किताब।
टिप्पणीः यह आलेख स्व. खुशवंत सिंह के पुरालेखों में से एक है- संपादक
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