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शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

chitra par kavita: sanjiv

​चित्र पर कविता
संजीव
*


भगा साथियों को दिया, किन्तु न भागा आप
मधुर-मधुर मुस्कान से, हर मैया का ताप
कान खिंचा मुस्का रहा, ब्रिज का माखनचोर
मैया भूली डाँटना, होकर भाव विभोर
*
अग्निहोत्र नभ ने किया, साक्षी देते मेघ
मिलीं लालिमा-कालिमा, गले भूलकर भेद
आया आम चुनाव क्या?, केर-बेर का संग
नित नव गठबंधन करे, खिले नये गुल-रंग
*
फेरे सात लगा लिये, कदम-कदम रख साथ
कर आये मतदान भी, लिए हाथ में हाथ
करते हैं संकल्प यह, जब भी हों मतभेद
साथ बैठ सुलझाएँगे, 'सलिल' न हो मनभेद
*



मुस्कुराती रहो, खिलखिलाती रहो,
पंछियों की तरह गीत गाती रहो
जो तुम्हें भा रहा, है दुआ यह मेरी-
तुम भी उसको सदा खूब भाती रहो
*
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

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