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बुधवार, 30 जुलाई 2014

ईद

एक मुक्तक
संजीव
*
कोशिशें करते रहो, बात बन ही जायेगी
जिन्दगी आज नहीं, कल तो मुस्कुरायेगी
हारते जो नहीं गिरने से, वो ही चल पाते-
मंजिलें आज नहीं कल तो रास आयेंगी.
***
दो द्विपदियाँ
जात मजहब धर्म बोली, चाँद अपनी कह जरा
पुज रहा तू ईद में भी, संग करवा चौथ के.
*
चाँद तनहा है ईद हो कैसे? चाँदनी उसकी मीत हो कैसे??
मेघ छाये घने दहेजों के, रेप पर उसकी जीत हो कैसे??
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