कुल पेज दृश्य

शनिवार, 9 अगस्त 2014

विश्व बंधुत्व का महापर्व रक्षाबंधन : संजीव

: विश्व बंधुत्व का महापर्व रक्षाबंधन :
संजीव 
*
इस वर्ष इस वर्ष राखी बांधने का शास्त्रोक्त समय (अपरहरण) भद्रा से मुक्त है। रक्षाबंधन अपरान्ह १.३८ बजे से रात्रि ९.११ बजे  तक करें। अपरान्ह १.४५ बजे से ४.२३ बजे तक तथा प्रदोषकाल में संध्या ७.०१ बजे से रात्रि ९.११ बजे तक का समय विशेष शुभ है। भद्रापुच्छकाल प्रातः १०.०८ से ११.०८ भद्रामुख ११.०८ से १२.४८ तथा भद्रा मोक्ष १.३८ तक है। निर्णयसिन्धु के अनुसार:

इदं भद्रायां न कार्यं। भद्रयान द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा 
श्रावणी नृपंति हन्ति ग्रामं दहति फाल्गुनी। इति संग्रहोक्ते 
ततस्त्वे तु रात्रावपि तदन्ते कुर्यादिति निर्णयामृते। 

भद्रा विना चेदपरान्हे तदापरा तत्सवे तु रात्रावप्रीत्यर्थ:

तदनुसार भद्रा में श्रावणी राजा (प्रमुख) का नाश तथा फाल्गुनी ग्राम (गृह) का दहन करती है. लोकश्रुति है कि लंकापति रावण ने भद्रा में अपनी बहिन चंद्रनखा (शूर्पणखा) से राखी बनवाई थी और एक वर्ष के अंदर उसका तथा लंका का नाश हो गया था. अत: भद्रा के पश्चात ही (भले ही रात्रि में) रक्षाबंधन करें। अपरिहार्य परिस्थिति में भद्रापुच्छकाल में रक्षासूत्र बंधन किया जा सकता है  किन्तु भद्रामुख काल में राखी कदापि न बांधें।

रक्षा बंधन के पूूर्व स्नान कर शुभ मुहूर्त में भगवान को राखी समर्पित करें। बहिन भाई-भाभी के मस्तक पर जल सिंचन कर चन्दन, हल्दी, रोली, अक्षत,पुष्प से तिलककर दाहिने हाथ की कलाई में रक्षा बंधन मंत्र- 'येनबद्धो  बलि: राजा दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चालमाचल' पढ़ते हुए राखी बाँधे, मिठाई खिलाये तथा ईश्वर से उनकी विजय की कामना करे। भाई-भाभी बहन-नन्द को यथाशक्ति उपहार (शुभ वस्तुएँ वस्त्र, आभूषण, ग्रन्थ आदि) देकर चरणस्पर्श करें तथा वचन दें कि आजीवन उसके सहायक होकर रक्षा करेंगे।

भारतीय संस्कृति में पर्वो और महोत्सवों का महत्व सर्वविदित है। ऋतु परिवर्तन, उदात्त मूल्य संस्थापन तथा विश्व साहचर्य पर्वों को मनाने के प्रमुख कारक रहे हैं। श्रावणी पूर्णिमा को श्रवण नक्षत्र में प्रात:काल से दो प्रहर छोड़कर मनाया जानेवाला रक्षाबंधन (राखी) पर्व उक्त तीनों दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है।इस दिन स्नान-ध्यानादि से निवृत्त होकर बहिनें भाई के मस्तक पर तिलक कर दाहिनी कलाई पर रक्षा सूत्र बाँधकर, मिष्ठान्न खिलाकर उसकी दीर्घायु तथा विजय की कामना करती हैं और भाई बहिन की रक्षा कर हर स्थिति में साथ निभाने का वचन तथा उपहार देता है।आरम्भ में यह पर्व केवल भाई-बहिन तक सीमित नहीं था। विप्र तथा सेवक अपने यजमान तथा स्वामी को रक्षासूत्र बाँधकर दक्षिणा व संरक्षण प्राप्त करते हैं। 

पौराणिक / ऐतिहासिक गाथाएँ:

स्कंदपुराण, पद्मपुराण तथा श्रीमद्भागवत में वामनावतार प्रसंग के अनुसार दानवेन्द्र राजा बलि का अहंकार मिटाकर उसे जनसेवा के सत्पथ पर लाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन रूप धारणकर भिक्षा में ३ पग धरती मांग कर तीन पगों में तीनों लोकों को नाप लिया तथा बलि  अनुसार उसके मस्तक पर चरणस्पर्श कर उसे रसातल भेज दिया। बलि ने भगवान से सदा अपने समक्ष रहने का वर माँगा। नारद के सुझाये अनुसार इस दिन लक्ष्मी जी ने बलि को रक्षासूत्र बाँधकर भाई माना तथा विष्णु जी को वापिस प्राप्त किया।      

विष्णुपुराण के अनुसार श्रावण पूर्णिमा को भगवान विष्णु ने विद्या-बुद्धि के प्रतीक हयग्रीव का अवतार लेकर भगवान ब्रम्हा के लिए वेदों को पुनः प्राप्त किया था। गुरुपूर्णिमा को प्रारम्भ अमरनाथ यात्रा का समापन श्रवण पूर्णिमा को होता है तथा हिमानी (बर्फानी) शिवलिंग पूर्ण होता है जिसका दिव्य अभिषेक किया जाता है।

भविष्योत्तर पुराण के अनुसार देव-दानव युद्ध में इंद्र की पराजय सन्निकट देख उसकी पत्नी शशिकला (इन्द्राणी) ने तपकर प्राप्त रक्षासूत्र श्रवण पूर्णिमा को इंद्र की कलाई में बाँधकर उसे इतना शक्तिशाली बना दिया की वह विजय प्राप्त कर सका।

गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं- 'मयि सर्वमिदं प्रोक्तं सूत्रे मणिगणा इव' अर्थात जिस प्रकार सूत्र बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर माला के रूप में एक बनाये रखता है उसी तरह रक्षासूत्र लोगों को जोड़े रखता है।  प्रसंगानुसार विश्व में जब-जब नैतिक मूल्यों पर संकट आता है भगवान शिव प्रजापिता ब्रम्हा द्वारा पवित्र धागे भेजते हैं जिन्हें बाँधकर बहिने भाइयों को दुःख-पीड़ा से मुक्ति दिलाती हैं।भगवान कृष्ण ने महाभारत युद्ध में विजय हेतु युधिष्ठिर को सेना सहित रक्षाबंधन पर्व मनाने का निर्देश दिया था। 

संप्राप्ते श्रावणस्यान्ते पौर्णमास्या दिने-दये
स्नानंकुर्वीत मतिमान श्रुति-स्मृति विधानतः 
उपाकरमोदिकं प्रोक्तमृषीणां चैव तर्पणं 
शूद्राणां मंत्ररहितं स्नानं दानं प्रशस्यते 
उपाकर्माणि कर्तव्य मृषीणां चैव पूजनं  
ततोsपरान्हसमये रक्षापोटलिकां शुभां 
कारयेदक्षतेशस्तैः सिद्धार्थेर्हेमभूषितैः।  इति 

अत्रोपाकर्मान्तरस्य पूर्णातिथावार्थिकास्योनुवादो न तु विधिः 
गौरवात प्रयोगविधिभेदेन क्रमायोगाच्छुद्रादौ तदयोगाच्च 
तेन परेद्युरूपाकरणेsपि पूर्वेद्युरपरान्हे तत्करणं सिद्धं   

राष्ट्रीय पर्व:

उत्तरांचल में इसे श्रावणी कहा जाता है तथा यजुर्वेदी विप्रों का उपकर्म (उत्सर्जन, स्नान, ऋषितर्पण आदि के पश्चात नवीन यज्ञोपवीत धारण किया जाता है.) राजस्थान में रामराखी (लालडोरे पर पीले फुंदने लगा सूत्र) भगवान को, चूड़ाराखी (भाभियों को चूड़ी में) या लांबा (भाई की कलाई में) बांधने की प्रथा है. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि में बहनें शुभ मुहूर्त में भाई-भाभी को तिलक लगाकर राखी बांधकर मिठाई खिलाती तथा उपहार प्राप्त कर आशीष देती हैं. महाराष्ट्र में इसे नारियल पूर्णिमा कहा जाता है. इस दिन समुद्र, नदी तालाब आदि में स्नान कर जनेऊ बदलकर वरुणदेव को श्रीफल (नारियल) अर्पित किया जाता है. उड़ीसा, तमिलनाडु व् केरल में यह अवनिअवित्तम कहा जाता है. जलस्रोत में स्नानकर  यज्ञोपवीत परिवर्तन व ऋषि का तर्पण किया जाता है. 
रक्षा बंधन पर बहिन को पाती:
*
बहिन! शुभ आशीष तेरा, भाग्य का मंगल तिलक
भाई वंदन कर रहा, श्री चरण का हर्षित-पुलक

भगिनियाँ शुचि मातृ-छाया, स्नेहमय कर हैं वरद
वृष्टि देवाशीष की, करतीं सतत- जीवन सुखद

स्नेह से कर भाई की रक्षा उसे उपकारतीं
आरती से विघ्न करतीं दूर, फिर मनुहारतीं

कभी दीदी, कभी जीजी, कभी वीरा है बहिन
कभी सिस्टर, भगिनी करती सदा ममता ही वहन

शक्ति-शारद-रमा की तुझमें त्रिवेणी है अगम
'सलिल' को भव-मुक्ति का साधन हुई बहिना सुगम

थामकर कर द्वयों में दो कुलों को तू बाँधती
स्नेह-सिंचन श्वास के संग आस नित नव राँधती

निकट हो दूर, देखी या अदेखी हो बहिन
भाग्य है वह भाई का, श्री चरण में शत-शत नमन 
---------------------------------------------------------
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

कोई टिप्पणी नहीं: