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मंगलवार, 26 अगस्त 2014

doha salila: sanjiv

दोहा सलिला:
संजीव
*
शशि की स्नेहिल ज्योत्सना, करे प्राण संचार 
सलिल-तरंगें निनादित, हो ज्योतित जलधार
*
पूनम शीतल चाँदनी, ले जग का मन मोह 
नहीं अमावस सह सके, श्यामल हो कर द्रोह 
*
नाज़ उठाने की नहीं, सीमा कोई मीत 
नभ सी अपरम्पार है, मानव मन की प्रीत 
अधिक न कम देना मुझे, सोना हे दातार!
बस उतना ही चाहिए, चले जगत व्यापार
*
करे गगन को सुशोभित, गहन तिमिर के जूझ 
नत रवीन्द्र सम्मुख जगत, थको न श्रम हो बूझ 
*
पायल की झंकार सुन, मन मयूर ले नाच 
समय पुरोहित हँस रहे, प्रणय पत्रिका बाँच 
*
प्रात रवि किरण देख उठ, जग जाएगा भाग 
कीर्ति-माल मुस्कान से, घर हो पुण्य प्रयाग 

4 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 27/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बहुत बढ़िया

sanjiv ने कहा…

ysh dhanyawad.

sanjiv ने कहा…

यश न सुमन का न्यून है, महका सु-मन कपूर
शूल भूल के चुभें तो, सलिल न करना दूर