नवगीत:
मस्तक की रेखाएँ …
संजीव
*
मस्तक की रेखाएँ
कहें कौन बाँचेगा?
*
आँखें करतीं सवाल
शत-शत करतीं बवाल।
समाधान बच्चों से
रूठे, इतना मलाल।
शंका को आस्था की
लाठी से दें हकाल।
उत्तर न सूझे तो
बहाने बनायें टाल।
सियासती मन मुआ
मनमानी ठाँसेगा …
*
अधरों पर मुस्काहट
समाधान की आहट।
माथे बिंदिया सूरज
तम हरे लिये चाहत।
काल-कर लिये पोथी
खोजे क्यों मनु सायत?
कल का कर आज अभी
काम, तभी सुधरे गत।
जाल लिये आलस
कोशिश पंछी फाँसेगा…
*
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
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7 टिप्पणियां:
Om Prakash Tiwari omtiwari24@gmail.com [ekavita] :
आदरणीय सलिल जी,
बढ़िया नवगीत है। बधाई।
सादऱ
ओमप्रकाश तिवारी
kamlesh kumar diwan kamleshkumardiwan@gmail.com
ekavita
sanjeev verma ji ka geet dekha achcha hai
Rakesh Khandelwal rakesh518@yahoo.com [ekavita]
लिखा हुआ विधना का लेखा, जाँच सका है कौन ?
प्रश्न सामने जब आता है, छा जाता है मौन
सादर
राकेश
ओमप्रकाश जी, कमलेश जी, राकेश जी उत्साहवर्धन हेतु आभार।
तिमिर भाग्य का दूर कर सके केवल ॐ प्रकाश
कभी प्रगट कमलेश बन हुआ साक्षी है आकाश
रवि-राकेश वही है उसको सलिल नवाता शीश
मस्तक रेख रच-बाँचे वह, जग कहता है ईश
बहुत बढ़िया ...
मस्तक की रेखाएँ
कहें कौन बाँचेगा? आ. सलिल जी नमस्कार
बहुत सुन्दर नवगीत।
kavita ji, shashiji dhanyavad.
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