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गुरुवार, 30 अक्तूबर 2014

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नवगीत:

हर चेहरा है
एक सवाल

शंकाकुल मन
राहत चाहे
कहीं न मिलती.
शूल चुभें शत
आशा की नव
कली न खिलती

प्रश्न सभी
देते हैं टाल

क्या कसूर,
क्यों व्याधि घेरती,
बेबस करती?
तन-मन-धन को
हानि अपरिमित
पहुँचा छलती

आत्म मनोबल
बनता ढाल

मँहगा बहुत
दवाई-इलाज
दिवाला निकले
कोशिश करें
सम्हलने की पर
पग फिर फिसले

किसे बताएं
दिल का हाल?

***
संजीवनी अस्पताल, रायपुर
२९-१०-२०१४ 

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