नवगीत:
दीवाली के
दिए जले
नीचे फैला अँधियारा
जग ने
ऊपर-ऊपर देखा
रखा
रौशनी का ही लेखा
तेल डालकर
दीप-दीप में
भूला
खिंची धुएं की रेखा
अति विलंब कर आया
पल में
चला गया उजियारा
ऋद्धि-सिद्धि, हरि
मुँह लटकाये
गणपति-लछमी
पाँव पुजाये
नीति-अनीति
न देखे दुनिया
नयन मूँदकर
शीश झुकाये
बेटी-बहू
गैर संग सुन
बिन देखे फटकारा
*
दीवाली के
दिए जले
नीचे फैला अँधियारा
जग ने
ऊपर-ऊपर देखा
रखा
रौशनी का ही लेखा
तेल डालकर
दीप-दीप में
भूला
खिंची धुएं की रेखा
अति विलंब कर आया
पल में
चला गया उजियारा
ऋद्धि-सिद्धि, हरि
मुँह लटकाये
गणपति-लछमी
पाँव पुजाये
नीति-अनीति
न देखे दुनिया
नयन मूँदकर
शीश झुकाये
बेटी-बहू
गैर संग सुन
बिन देखे फटकारा
*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें