कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 7 अक्तूबर 2014

navgeet:

नवगीत:

दीवाली के
दिए जले
नीचे फैला अँधियारा

जग ने
ऊपर-ऊपर देखा
रखा
रौशनी का ही लेखा
तेल डालकर
दीप-दीप में
भूला
खिंची धुएं की रेखा

अति विलंब कर आया
पल में
चला गया उजियारा

ऋद्धि-सिद्धि, हरि
मुँह लटकाये
गणपति-लछमी
पाँव पुजाये
नीति-अनीति
न देखे दुनिया
नयन मूँदकर 
शीश झुकाये

बेटी-बहू
गैर संग सुन
बिन देखे फटकारा

*

  

कोई टिप्पणी नहीं: