कुल पेज दृश्य

रविवार, 19 अक्तूबर 2014

navgeet:

नवगीत:

कोशिश
करते रहिए, निश्चय 
मंज़िल मिल जाएगी

जिन्हें भरोसा
है अतीत पर
नहीं आज से नाता
ऐसों के
पग नीचे से
आधार सरक ही जाता
कुंवर, जमाई
या माता से
सदा राज कब चलता?
कोष विदेशी
बैंकों का
कब काम कष्ट में आता

हवस
आसुरी वृत्ति तजें
तब आशा फल पायेगी 

जिसने बाजी
जीती उसको
मिली चुनौती भारी
जनसेवा का
समर जीतने की
अब हो तैयारी
सत्ता करती
भ्रष्ट, सदा ही
पथ से भटकाती है
अपने हों
अपनों के दुश्मन
चला शीश पर आरी

सम्हलो
करो सुनिश्चित
फूट न आपस में आएगी

जीत रहे
अंतर्विरोध पर
बाहर शत्रु खड़े हैं
खुद अंधे हों
काना करने
हमें ससैन्य अड़े हैं
हैं हिस्सा
इस महादेश का
फिर से उन्हें मिलाना
महासमर ही
चाहे हमको
बरबस पड़े रचाना

वेणु कृष्ण की
तब गूंजेगी
शांति तभी आएगी

-----------------
       

कोई टिप्पणी नहीं: