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शुक्रवार, 21 नवंबर 2014

navgeet:

नवगीत:

अंध श्रद्धा शाप है

आदमी को देवता मत मानिये
आँख पर अपनी न पट्टी बाँधिए
साफ़ मन-दर्पण हमेशा यदि न हो
गैर को निज मसीहा मत मानिए
लक्ष्य अपना आप है

कौन गुरुघंटाल हो किसको पता?
बुद्धि को तजकर नहीं करिए खता
गुरु बनायें तो परखिए भी उसे
बता पाये गुरु नहीं तुझको धता
बुद्धि तजना पाप है 

नीति-मर्यादा सुपावन धर्म है  
आदमी का भाग्य लिखता कर्म है
शर्म आये कुछ न ऐसा कीजिए
जागरण ही ज़िंदगी का मर्म है
देव-प्रिय निष्पाप है

*** 

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