मुक्तिका:
नफरत के हाथों में फूल गुलाबी आज थमायेंगे
दहशतगर्दों को गौतम के क़दमों में झुकवायेंगे
नूराकुश्ती कब तक देखें?, मिल सार्थक संवाद करो
जनप्रतिनिधि को जनगण का आदेश यही पहुँचायेंगे
लल्ला हो या लल्ली हो, उनमें कुछ फर्क नहीं करना
हम समानता का दर्शन, मजबूत छोड़कर जायेंगे
संगतराश की भी मूरत हो, कहीं बनायें रस्म नयी
अन्धकार के घर में दीपक, आओ! साथ जलायेंगे
कलरव-कलकल सुनें गुनगुना, 'सलिल' रचें नवगीत मधुर
कुहू-कुहू सुन ग़ज़ल हाइकु सॉनेट रचें-सुनायेंगे
रेंक रंभा टर्राकर कहते, मैंने छंद नवीन गढ़ा
ऐसे पिंगलवीरों के, अवशेष नहीं मिल पायेंगे
___
नफरत के हाथों में फूल गुलाबी आज थमायेंगे
दहशतगर्दों को गौतम के क़दमों में झुकवायेंगे
नूराकुश्ती कब तक देखें?, मिल सार्थक संवाद करो
जनप्रतिनिधि को जनगण का आदेश यही पहुँचायेंगे
लल्ला हो या लल्ली हो, उनमें कुछ फर्क नहीं करना
हम समानता का दर्शन, मजबूत छोड़कर जायेंगे
संगतराश की भी मूरत हो, कहीं बनायें रस्म नयी
अन्धकार के घर में दीपक, आओ! साथ जलायेंगे
कलरव-कलकल सुनें गुनगुना, 'सलिल' रचें नवगीत मधुर
कुहू-कुहू सुन ग़ज़ल हाइकु सॉनेट रचें-सुनायेंगे
रेंक रंभा टर्राकर कहते, मैंने छंद नवीन गढ़ा
ऐसे पिंगलवीरों के, अवशेष नहीं मिल पायेंगे
___
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें