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शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

chhand salila: shashivdna chhand -sanjiv

छंद सलिला:

शशिवदना छंद
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, एकावली, कीर्ति, घनाक्षरी, छवि, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, मधुभार ,माला, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सुगति, सुजान, हंसी)
*
संजीव
*
यह दस मात्रिक छंद है.

उदाहरण:

१. शशिवदना चपला
   कमलाक्षी अचला
   मृगनयनी मुखरा  
   मीनाक्षी मृदुला

२. कर्मदा वर्मदा धर्मदा नर्मदा
   शर्मदा मर्मदा हर्म्यदा नर्मदा
   शक्तिदा भक्तिदा मुक्तिदा नर्मदा
   गीतदा प्रीतदा मीतदा नर्मदा

३. गुनगुनाना सदा
   मुस्कुराना सदा
   झिलमिलाना सदा
   खिलखिलाना सदा
   गीत गाना सदा
   प्रीत पाना सदा
   मुश्किलों को 'सलिल'
   जीत जाना सदा

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chhand salila: ekawali chhand -sanjiv

छंद सलिला:   
एकावली छंद
संजीव
*
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, एकावली, कीर्ति, घनाक्षरी, छवि, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, मधुभार ,माला, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शाला, शिव, शुभगति, सार, सुगति, सुजान, हंसी)
*
दस मात्रिक एकावली छंद के हर चरण में ५-५ मात्राओं पर यति होती है.

उदाहरण :

१. नहीं सर झुकाना, नहीं पथ भुलाना
   गिरे को  उठाना, गले से लगाना
   न तन को सजाना, न मन को भुलाना
   न खुद को लुभाना, न धन ही जुटाना

२. हरि भजन कीजिए, नित नमन कीजिए
    निज वतन पूजिए, फ़र्ज़ मत भूलिए
    मरुथली भूमियों को,  चमन कीजिए
   भाव से भीगिए, भक्ति पर रीझिए

३. कर प्रीत, गढ़ रीत / लें जीत मन मीत
    नव गीत नव नीत, मन हार मन जीत
  
    **********

गुरुवार, 30 जनवरी 2014

saraswati vandana 1


​​
​​सरस्वती वंदना 1 
संजीव
*
हे हंसवाहिनी! ज्ञान दायिनी!!
अम्ब विमल मति दे

*
नंदन कानन हो यह धरती
पाप-ताप जीवन का हरती
हरियाली विकसे …
*
बहे नीर अमृत सा पावन
मलयज शीतल, शुद्ध सुहावन
अरुण निरख विहँसे
*
कंकर से शंकर गढ़ पायें
हिमगिरि के ऊपर चढ़ पायें
वह बल-विक्रम दे …
​*​
​​
​हरा-भरा हो सावन-फागुन
रान्य ललित त्रैलोक्य लुभावन
सुख-समृद्धि सरसे …
*
नेह-प्रेम से राष्ट्र सँवारें
सदा समन्वय मंत्र उचारें
'सलिल' विमल प्रवहे  …
*​

Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
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facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

chhand salila: leela chhand -sanjiv

छंद सलिला:   
लीला छंद
संजीव
*
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, कीर्ति, घनाक्षरी, छवि, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, मधुभार,माला, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शाला, शिव, शुभगति, सार, सुगति, सुजान, हंसी)
 लीला द्वादश मात्रिक छंद है. इसमें चरणान्त में जगण होता है. 
उदाहरण:
१. लीला किसकी पुनीत, गत-आगत-आज मीत 
   बारह आदित्य  प्रीत,करें धरा से अभीत 
   लघु-गुरु-लघु दिग्दिगंत, जन्म-मृत्यु-जन्म तंत 
   जग गण जनतंत्र-कंत, शासक हो 'सलिल' संत 
२. चाहा था लोक तंत्र, पाया है लोभ तंत्र
   नष्ट करो कोक तंत्र, हों न कहीं शोक तंत्र 
   जन-हित मत रोक तंत्र, है कुतंत्र हो सुतंत्र 
   जन-हित जब बने मंत्र, तब ही हो प्रजा तंत्र
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chhand salila: tandav chhand -sanjiv

छंद सलिला :
ताण्डव छंद
संजीव
*
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, कीर्ति, घनाक्षरी, छवि, ताण्डव, तोमर, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, मधुभार,माला, वाणी, शक्तिपूजा, शाला, शिव, शुभगति, सार, सुगति, सुजान, हंसी)
तांडव रौद्र कुल का बारह मात्रीय छंद है जिसके हर चरण के आदि-अंत में लघु वर्ण अनिवार्य है.

उदाहरण:

१. भर जाता भव में रव, शिव करते जब ताण्डव
   शिवा रहित शिव हों शव, आदि -अंत लघु अभिनव
   बारह आदित्य मॉस राशि वर्ण 'सलिल' खास
   अधरों पर रखें हास, अनथक करिए प्रयास

२. नाश करें प्रलयंकर, भय हरते अभ्यंकर
   बसते कंकर शंकर, जगत्पिता बाधा हर
   महादेव हर हर हर, नाश-सृजन अविनश्वर 
   त्रिपुरारी उमानाथ, 'सलिल' सके अब भव तर

३. जग चाहे रहे वाम, कठिनाई सह तमाम
   कभी नहीं करें डाह, कभी नहीं भरें आह
   मन न तजे कभी चाह, तन न तजे तनिक राह
   जी भरकर करें काम, तभी भला करें राम

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मंगलवार, 28 जनवरी 2014

chhand salila: madhubhar chhand -sanjiv



छंद सलिला:
छंद सलिला:   
मधुभार छंद
संजीव
*
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, कीर्ति, घनाक्षरी, छवि, तोमर, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, मधुभार,माला, वाणी, शक्तिपूजा, शाला, शिव, शुभगति, सार, सुगति, सुजान, हंसी)
मधुभार अष्टमात्रिक छंद है. इसमें ३ -५ मात्राओं पर यति और चरणान्त में जगण होता है. 
उदाहरण:
१. सहे मधुभार / सुमन गह सार 
   त्रिदल अरु पाँच / अष्ट छवि साँच
२. सुनो न हिडिम्ब / चलो अविलंब 
   बनो मत खंब / सदय अब अंब
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laghu katha: seekh -sanjiv

लघु कथा:

सीख

आचार्य संजीव ‘सलिल’

भारत माता ने अपने घर में जन-कल्याण का जानदार आँगन बनाया. उसमें शिक्षा की शीतल हवा, स्वास्थ्य का निर्मल नीर, निर्भरता की उर्वर मिट्टी, उन्नति का आकाश, दृढ़ता के पर्वत, आस्था की सलिला, उदारता का समुद्र तथा आत्मीयता की अग्नि का स्पर्श पाकर जीवन के पौधे में प्रेम के पुष्प महक रहे थे.

सिर पर सफ़ेद टोपी लगाये एक बच्चा आया, रंग-बिरंगे पुष्प देखकर ललचाया. पुष्प पर सत्ता की तितली बैठी देखकर उसका मन ललचाया, तितली को पकड़ने के लिए हाथ बढाया, तितली उड़ गयी. बच्चा तितली के पीछे दौड़ा, गिरा, रोते हुए रह गया खडा.

कुछ देर बाद भगवा वस्त्रधारी दूसरा बच्चा खाकी पैंटवाले मित्र के साथ आया. सरोवर में खिला कमल का पुष्प उसके मन को भाया, मन ललचाया, बिना सोचे कदम बढाया, किनारे लगी काई पर पैर फिसला, गिरा, भीगा और सिर झुकाये वापिस लौट गया.

तभी चक्र घुमाता तीसरा बच्चा अनुशासन को तोड़ता, शोर मचाता घर में घुसा और हाथ में हँसिया-हथौडा थामे चौथा बच्चा उससे जा भिड़ा. दोनों टकराये, गिरे, कांटें चुभे और वे चोटें सहलाते सिसकने लगे.

हाथी की तरह मोटे, अक्ल के छोटे, कुछ बच्चे एक साथ धमाल मचाते आये, औरों की अनदेखी कर जहाँ मन हुआ वहीं जगह घेरकर हाथ-पैर फैलाये. धक्का-मुक्की में फूल ही नहीं पौधे भी उखाड़ लाये.

कुछ देर बाद भारत माता घर में आयीं, कमरे की दुर्दशा देखकर चुप नहीं रह पायीं, दुःख के साथ बोलीं- मत दो झूठी  सफायी, मत कहो कि घर की यह दुर्दशा तुमने नहीं तितली ने बनायी. काश तुम तितली को भुला पाते, काँटों को समय रहते देख पाते, मिल-जुल कर रह पाते, ख़ुद अपने लिये लड़ने की जगह औरों के लिये कुछ कर पाते तो आदमी बन जाते.

muktak: sanjiv

Sanjiv Verma 'salil'  
*
मुक्तक:
अंधेरों को चीरकर तुमकोउजाला मिलेगा 
सत्य-शिव-सुंदर वरो, मन में शिवाला मिलेगा 
सूर्य सी मेहनत करो बिन दाम सुबहो-शाम तुम-
तभी तो अमरत्व का तुमको निवाला मिलेगा 

andheron ko cheerkar nikalo uajala milega / 
satya shiv sundar varo man men shivala milega / 
surya si mehnat karo bin daam subho-shaam tum
tabhee amaratva ka tumako nivala milega.
*
बिटिया बोले तो बचपन को याद करो 
जब चुप तो खुद से ही संवाद करो
जब नाचे तो झूम उठो आनंद मना 
कभी न रोए प्रभु से यह फरियाद करो 

bitiya bole to bachpan ko yad karo / 
jab chup ho to khud se hee samvad karo / 
jab nache to jhoom utho anand mana / 
kabhee n roye prabhu se yah fariyaad karo.
*
नये हाथों को सहारा दें सदा
शुक्रिया मिलकर खुदा का हो अदा
नईं राहों पर चलें जो पग नये
मंज़िलें होंगी 'सलिल' उन पर फ़िदा

naye hathon ko sahara den sda/
shukriya milkar khuda ka ho ada/
nyi rahon par chale jo pag nye/
manzilen hongi 'salil' un par fida

*
salil.sanjiv@gmail.com / divyanarmada.blogspot.in

सोमवार, 27 जनवरी 2014

kriti charcha: khamma-ashok jamnani -sanjiv

कृति चर्चा: 
मरुभूमि के लोकजीवन की जीवंत गाथा "खम्मा"
चर्चाकार: संजीव वर्मा 'सलिल'
*
[कृति विवरण: खम्मा, उपन्यास, अशोक जमनानी, आकार डिमाई, आवरण बहुरंगी सजिल्द, पृष्ठ १३७, मूल्य ३०० रु., श्री रंग प्रकाशन होशंगाबाद]  
*
                राजस्थान की मरुभूमि से सन्नाटे को चीरकर दिगंत तक लोकजीवन की अनुभूतियों को अपने हृदवेधी स्वरों से पहुँचाते माँगणियारों के संघर्ष, लुप्त होती विरासत को बचाये रखने की जिजीविषा, छले जाने के बाद भी न छलने का जीवट जैसे  जीवनमूल्यों पर केंद्रित "खम्मा" युवा तथा चर्चित उपन्यासकार अशोक जमनानी की पाँचवी कृति है. को अहम्, बूढ़ी डायरी, व्यासगादी तथा छपाक से हिंदी साहत्य जगत में परिचित ही नहीं प्रतिष्ठित भी हो चुके अशोक जमनानी खम्मा में माँगणियार बींझा के आत्म सम्मान, कलाप्रेम, अनगढ़ प्रतिभा, भटकाव, कलाकारों के पारस्परिक लगाव-सहयोग, तथाकथित सभ्य पर्यटकों द्वारा शोषण, पारिवारिक ताने-बाने और जमीन के प्रति समर्पण की सनातनता को शब्दांकित कर सके हैं. 

                "जो कलाकार की बनी लुगाई, उसने पूरी उम्र अकेले बिताई" जैसे संवाद के माध्यम से कथा-प्रवाह को संकेतित करता उपन्यासकार ढोला-मारू की धरती में अन्तर्व्याप्त कमायचे और खड़ताल के मंद्र सप्तकी स्वरों के साथ 'घणी खम्मा हुकुम' की परंपरा के आगे सर झुकाने से इंकार कर सर उठाकर जीने की ललक पालनेवाले कथानायक बींझा की तड़प का साक्षी बनता-बनाता है. 

अकथ कहानी प्रेम की, किणसूं कही न जाय 
गूंगा को सुपना भया, सुमर-सुमर पछताय 

                मोहब्बत की अकथ कहानी को शब्दों में पिरोते अशोक, राहुल सांकृत्यायन और विजय दान देथा के पाठकों गाम्भीर्य और गहनता की दुनिया से गति और विस्तार के आयाम में ले जाते हैं. उपन्यास के कथासूत्र में काव्य पंक्तियाँ गेंदे के हार में गुलाब पुष्पों की तरह गूँथी गयी हैं. 

                बेकलू (विकल रेत) की तरह अपने वज़ूद की वज़ह तलाशता बींझा अपने मित्र सूरज और अपनी  संघर्षरत सुरंगी का सहारा पाकर अपने मधुर गायन से पर्यटकों को रिझाकर आजीविका कमाने की राह पर चल पड़ता है. पर्यटकों के साथ धन के सामानांतर उन्मुक्त अमर्यादित जीवनमूल्यों के तूफ़ान (क्रिस्टीना के मोहपाश में) बींझा का फँसना, क्रिस्टीना का अपने पति-बच्चों के पास लौटना, भींजा की पत्नी सोरठ द्वारा कुछ न कहेजाने पर भी बींझा की भटकन को जान जाना और उसे अनदेखा करते हुए भी क्षमा न कर कहना " आपने इन दिनों मुझे मारा नहीं पर घाव देते रहे… अब मेरी रूह सूख गयी है…  आप कुछ भी कहो लेकिन मैं आपको माफ़ नहीं कर पा रही हूँ… क्यों माफ़ करूँ आपको?' यह स्वर नगरीय स्त्री विमर्श की मरीचिका से दूर ग्रामीण भारत के उस नारी का है जो अपने परिवार की धुरी है. इस सचेत नारी को पति द्वारा पीटेजाने पर भी उसके प्यार की अनुभूति होती है, उसे शिकायत तब होती है जब पति उसकी अनदेखी कर अन्य स्त्री के बाहुपाश में जाता है. तब भी वह अपने कर्तव्य की अनदेखी नहीं करती और गृहस्वामिनी बनी रहकर अंततः पति को अपने निकट आने के लिये विवश कर पाती है. 

                उपन्यास के घटनाक्रम में परिवेशानुसार राजस्थानी शब्दों, मुहावरों, उद्धरणों और काव्यांशों का बखूबी प्रयोग कथावस्तु को रोचकता ही नहीं पूर्णता भी प्रदान करता है किन्तु बींझा-सोरठ संवादों की शैली, लहजा और शब्द देशज न होकर शहरी होना खटकता है. सम्भवतः ऐसा पाठकों की सुविधा हेतु किया गया हो किन्तु इससे प्रसंगों की जीवंतता और स्वाभाविकता प्रभावित हुई है. 

                कथांत में सुखांती चलचित्र की तरह हुकुम का अपनी साली से विवाह, उनके बेटे सुरह का प्रेमिका प्राची की मृत्यु को भुलाकर प्रतीची से जुड़ना और बींझा को विदेश यात्रा  का सुयोग पा जाना 'शो मस्त गो ऑन' या 'जीवन चलने का नाम' की उक्ति अनुसार तो ठीक है किन्तु पारम्परिक भारतीय जीवन मूल्यों के विपरीत है. विवाहयोग्य पुत्र के विवाह के पूर्व हुकुम द्वारा साली से विवाह अस्वाभाविक प्रतीत होता है. 

                सारतः, कथावस्तु, शिल्प, भाषा, शैली, कहन और चरित्र-चित्रण के निकष पर अशोक जमनानी की यह कृति पाठक को बाँधती है. राजस्थानी परिवेश और संस्कृति से अनभिज्ञ पाठक के लिये यह कृति औत्सुक्य का द्वार खोलती है तो जानकार के लिये स्मृतियों का दरीचा.... यह उपन्यास पाठक में अशोक के अगले उपन्यास की प्रतीक्षा करने का भाव भी जगाता है. 
********
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रविवार, 26 जनवरी 2014

virasat: jay jayati bharat bharati - pt. narendra sharma


पं. नरेंद्र शर्मा की कालजयी रचना 
*
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
स्वागतम
स्वागतम शुभ स्बागतम
आनंद मंगल मंगलम
नित प्रियम भारत भारतम

नित्य निरंतरता नवता
मानवता समता ममता
सारथि साथ मनोरथ का
जो अनिवार नहीं थमता
संकल्प अविजित अभिमतम

आनंद मंगल मंगलम
नित प्रियम भारत भारतम

कुसुमित नई कामनाएँ
सुरभित नई साधनाएँ
मैत्री मति कीडांगन में
प्रमुदित बन्धु भावनाएँ
शाश्वत सुविकसित इति शुभम

आनंद मंगल मंगलम
नित प्रियम भारत भारतम
 
 
Lavanya Shah की फ़ोटो.
 
 
 
 
 
  
 

सौजन्य लावण्या शाह 
*
जय जयति भारत भारती

जय जयति भारत भारती!
अकलंक श्वेत सरोज पर वह
ज्योति देह विराजती!
नभ नील वीणा स्वरमयी
रविचंद्र दो ज्योतिर्कलश
है गूँज गंगा ज्ञान की
अनुगूँज में शाश्वत सुयश

हर बार हर झंकार में
आलोक नृत्य निखारती
जय जयति भारत भारती!

हो देश की भू उर्वरा
हर शब्द ज्योतिर्कण बने
वरदान दो माँ भारती
जो अग्नि भी चंदन बने

शत नयन दीपक बाल
भारत भूमि करती आरती
जय जयति भारत भारती!

-

atithi rachna: m. Hasan

अतिथि रचना :
चले गये


*
एम. हसन, पाकिस्तान
*
शे'र 
आवाज़ हू-ब-हू तेरे आवज़-ए-पा का था 
देखा निकल के घर से तो झोंका हवा का था 
*
ग़ज़ल 

आये थे चंद दिन के लिये आकर चले गये
खुशियों का एक सपना दिखाकर चले गये
तुझ से ही ज़िन्दगी एक फूलों की सेज थी
क्यों इसको एक फ़साना बनाकर चले गये
कहते थे अब रहेगा न यहाँ ग़मज़दा कोई
इस दिलजले को और जलाकर चले गये
वादा अहसान से किया रहने का उम्र भर
क्यों ज़हर का एक जाम पिलाकर चले गये
*
क्षणिका 
हम भी आपसे 
प्यार कर लेंगे 
ज़रुरत पड़े तो 
जान निसार कर देंगे 
आपका दामन 
खुशियों से भर देंगे 
*

deshbhakti kavita: gopal prasad vyas

राष्ट्रीय कविता:
वह खून कहो किस मतलब का
श्री गोपाल प्रसाद व्यास जी

*
वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें उबाल का नाम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का
आ सके देश के काम नहीं।

वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें जीवन, न रवानी है!
जो परवश होकर बहता है,
वह खून नहीं, पानी है!

उस दिन लोगों ने सही-सही
खून की कीमत पहचानी थी।
जिस दिन सुभाष ने बर्मा में
मॉंगी उनसे कुरबानी थी।

बोले, “स्वतंत्रता की खातिर
बलिदान तुम्हें करना होगा।
तुम बहुत जी चुके जग में,
लेकिन आगे मरना होगा।

आज़ादी के चरणें में जो,
जयमाल चढ़ाई जाएगी।
वह सुनो, तुम्हारे शीशों के
फूलों से गूँथी जाएगी।

आजादी का संग्राम कहीं
पैसे पर खेला जाता है?
यह शीश कटाने का सौदा
नंगे सर झेला जाता है”

यूँ कहते-कहते वक्ता की
आंखों में खून उतर आया!
मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा
दमकी उनकी रक्तिम काया!

आजानु-बाहु ऊँची करके,
वे बोले, “रक्त मुझे देना।
इसके बदले भारत की
आज़ादी तुम मुझसे लेना।”

हो गई सभा में उथल-पुथल,
सीने में दिल न समाते थे।
स्वर इनकलाब के नारों के
कोसों तक छाए जाते थे।

“हम देंगे-देंगे खून”
शब्द बस यही सुनाई देते थे।
रण में जाने को युवक खड़े
तैयार दिखाई देते थे।

बोले सुभाष, “इस तरह नहीं,
बातों से मतलब सरता है।
लो, यह कागज़, है कौन यहॉं
आकर हस्ताक्षर करता है?

इसको भरनेवाले जन को
सर्वस्व-समर्पण काना है।
अपना तन-मन-धन-जन-जीवन
माता को अर्पण करना है।

पर यह साधारण पत्र नहीं,
आज़ादी का परवाना है।
इस पर तुमको अपने तन का
कुछ उज्जवल रक्त गिराना है!

वह आगे आए जिसके तन में
खून भारतीय बहता हो।
वह आगे आए जो अपने को
हिंदुस्तानी कहता हो!

वह आगे आए, जो इस पर
खूनी हस्ताक्षर करता हो!
मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए
जो इसको हँसकर लेता हो!”

सारी जनता हुंकार उठी-
हम आते हैं, हम आते हैं!
माता के चरणों में यह लो,
हम अपना रक्त चढाते हैं!

साहस से बढ़े युबक उस दिन,
देखा, बढ़ते ही आते थे!
चाकू-छुरी कटारियों से,
वे अपना रक्त गिराते थे!

फिर उस रक्त की स्याही में,
वे अपनी कलम डुबाते थे!
आज़ादी के परवाने पर
हस्ताक्षर करते जाते थे!

उस दिन तारों ने देखा था
हिंदुस्तानी विश्वास नया।
जब लिक्खा महा रणवीरों ने
ख़ूँ से अपना इतिहास नया।

-

chhand salila: shiv chhand -sanjiv


छंद सलिला:
शिव छंद
संजीव
*
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, कीर्ति, घनाक्षरी, छवि, तोमर, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, माला, वाणी, शक्तिपूजा, शाला, शिव, शुभगति, सार, सुगति, सुजान, हंसी)
*
एकादश रुद्रों के आधार पर ग्यारह मात्राओं के छन्दों को 'रूद्र' परिवार का छंद कहा गया है. शिव छंद भी रूद्र परिवार का छंद है जिसमें ११ मात्राएँ होती हैं. तीसरी, छठंवीं तथा नवमी मात्रा लघु होना आवश्यक है. शिव छंद की मात्रा बाँट ३-३-३-३-२ होती है.
छोटे-छोटे चरण तथा दो चरणों की समान तुक शिव छंद को गति तथा लालित्य से समृद्ध करती है. शिखरिणी की सलिल धर की तरंगों के सतत प्रवाह और नरंतर आघात की सी प्रतीति कराना शिव छंद का वैशिष्ट्य है.
शिव छंद में अनिवार्य तीसरी, छठंवीं तथा नवमी लघु मात्रा के पहले या बाद में २-२ मात्राएँ होती हैं. ये एक गुरु या दो लघु हो सकती हैं. नवमी मात्रा के साथ चरणान्त में दो लघु जुड़ने पर नगण, एक गुरु जुड़ने पर आठवीं मात्र लघु होने पर सगण तथा गुरु होने पर रगण होता है.
सामान्यतः दो पंक्तियों के शिव छंद की हर एक पंक्ति में २ चरण होते हैं तथा दो पंक्तियों में चरण साम्यता आवश्यक नहीं होती। अतः छंद के चार चरणों में लघु, गुरु, लघु-गुरु या गुरु-लघु के आधार पर ४ उपभेद हो सकते हैं.
उदाहरण:
१. चरणान्त लघु:
   हम कहीं रहें सनम, हो कभी न आँख नम
   दूरियाँ न कर सकें, दूर- हों समीप हम
२. चरणान्त गुरु:
   आप साथ हों सदा, मोहती रहे अदा
   एक मैं नहीं रहूँ, भाग्य भी रहे फ़िदा
३. चरणान्त लघु-गुरु:
   शिव-शिवा रहें सदय, जग तभी रहे अभय
   पूत भक्ति भावना, पूर्ण शक्ति कामना
४. चरणान्त गुरु लघु:
   हाथ-हाथ में लिये, बाँध मुष्टि लब सिये
   उन्नत सर-माथ रख, चाह-राह निज परख
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26 january 2014: neena sharma


२६ जनवरी २०१४
नीना शर्मा

गणतन्त्र दिवस (भारत)गणतन्त्र दिवस भारत का एक राष्ट्रीय पर्व जो प्रति वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है। इसी दिन सन १९५० को भारत का संविधान लागू किया गया था।
इतिहास...सन 1929 के दिसंबर में लाहौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुआ जिसमें प्रस्ताव पारित कर इस बात की घोषणा की गई कि यदि अंग्रेज सरकार 26 जनवरी, 1930 तक भारत को उपनिवेश का पद (डोमीनियन स्टेटस) नहीं प्रदान करेगी तो भारत अपने को पूर्ण स्वतंत्र घोषित कर देगा। 26 जनवरी, 1930 तक जब अंग्रेज सरकार ने कुछ नहीं किया तब कांग्रेस ने उस दिन भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के निश्चय की घोषणा की और अपना सक्रिय आंदोलन आरंभ किया। उस दिन से 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने तक 26 जनवरी स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा। तदनंतर स्वतंत्रता प्राप्ति के वास्तविक दिन 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में स्वीकार किया गया। 26 जनवरी का महत्व बनाए रखने के लिए विधान निर्मात्री सभा (कांस्टीट्यूएंट असेंबली) द्वारा स्वीकृत संविधान में भारत के गणतंत्र स्वरूप को मान्यता प्रदान की गई।
गणतंत्र दिवस समारोह...

गणतंत्र दिवस समारोह 26 जनवरी को भारत के राष्ट्रपति द्वारा भारतीय राष्ट्र ध्वज को फहराया जाता हैं और इसके बाद सामूहिक रूप में खड़े होकर राष्ट्रगान गाया जाता है। गणतंत्र दिवस पूरे देश में विशेष रूप से राजधानी दिल्ली में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है | इस अवसर के महत्व को चिह्नित करने के लिए हर साल एक भव्य परेड इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन (राष्ट्रपति के निवास) तक राजपथ पर राजधानी, नई दिल्ली में आयोजित किया जाता है| इस भव्य परेड में भारतीय सेना के विभिन्न रेजिमेंट ,वायुसेना, नौसेना आदि सभी भाग लेते हैं| इस समारोह में भाग लेने के लिए देश के सभी हिस्सों से राष्ट्रीय कडेट कोर व विभिन्न विद्यालयों से बच्चे आते हैं , समारोह में भाग लेना एक सम्मान की बात होती है |परेड प्रारंभ करते हुए प्रधानमंत्री अमर जवान ज्योति (सैनिकों के लिए एक स्मारक) जो राजपथ के एक छोर पर इंडिया गेट पर स्थित है पर पुष्प माला डालते हैं| इसके बाद शहीद सैनिकों की स्मृति में दो मिनट मौन रखा जाता है | यह देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए लड़े युद्ध व स्वतंत्रता आंदोलन में देश के लिए बलिदान देने वाले शहीदों के बलिदान का एक स्मारक है | इसके बाद प्रधानमंत्री, अन्य व्यक्तियों के साथ राजपथ पर स्थित मंच तक आते हैं, राष्ट्रपति बाद में अवसर के मुख्य अतिथि के साथ आते हैं |

परेड में विभिन्न राज्यों से चलित शानदार प्रदर्शिनी भी होती है ,प्रदर्शिनी में हर राज्य के लोगों की विशेषता, उनके लोक गीत व कला का दृश्यचित्र प्रस्तुत किया जाता है| हर प्रदर्शिनी भारत की विविधता व सांस्कृतिक समृद्धि प्रदर्शित करती है | परेड और जलूस राष्ट्रीय टेलीविजन पर प्रसारित होता है और देश के हर कोने में करोड़ों दर्शकों के द्वारा देखा जाता है|

भारत के राष्ट्रपति व प्रधान मंत्री द्वारा दिया गये भाषण को सुनने के लाखो कि भीड़ लाल किले पर एकत्रित होती है।
ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 26वॉ दिन है। साल मे अभी और 339 दिन बाकी है .

भारत में गणतन्त्र दिवस
ऑस्ट्रेलिया में ऑस्ट्रेलिया दिवस
प्रमुख घटनाएँ:
१७८८- ऑस्ट्रेलिया ब्रिटेन का उपनिवेश बना।
1905- दुनिया का सबसे बड़ा हीरा ..क्यूलियन.. दक्षिण अफ्रीका के प्रिटोरिया में मिला। इसका वजन 3106 कैरेट था।
1924- पेट्रोग्राद (सेंट पीट्सबर्ग) का नाम बदलकर लेनिनग्राद कर दिया गया।
1930- भारत में पहली बार स्वराज दिवस मनाया गया।
1931- सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान ब्रिटिश सरकार से बातचीत के लिए महात्मा गांधी रिहा किये गए।
1950-
भारत एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित हुआ और भारत का संविधान लागू हुआ।
स्वतंत्र भारत के पहले और अंतिम गवर्नर जनरल चक्रवर्ति राजगोपालाचारी ने अपने पद से त्यागपत्र दिया और डा. राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति बने।
उत्तर प्रदेश के सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ के शेरों को राष्ट्रीय प्रतीक की मान्यता मिली।
वर्ष 1937 में गठित भारतीय संघीय न्यायालय का नाम सर्वोच्च न्यायालय कर दिया गया
भारत का युद्ध पोत एचएमआईएस दिल्ली आईएनएस दिल्ली के रूप में बदल दिया गया।
1972- युध्द में शहीद सैनिकों की याद में दिल्ली के इंडिया गेट पर अमर जवान योति स्थापित।
१९८० - इसरायल और मिस्र के बीच राजनयिक संबंध फ़िर से बहाल ।
1981- पूर्वोत्तर भारत में हवाई यातायात सुगम बनाने को ध्यान में रखते हुए हवाई सेवा ..वायुदूत.. शुरू।
1982- पर्यटकों को विलासितापूर्ण रेल यात्रा का आनंद दिलाने के लिए भारतीय रेल ने ..पैलेस आन व्हील्स सेवा शुरू की।
1994- रोमानिया ने उत्तर अटलांटिक संधि संगठन .नाटो. के साथ सैन्य सहयोग समझौते पर दस्तखत किए।
1996- अमरीकी सीनेट ने रूस के साथ परमाणु हथियार और मिसाइल की होड़ कम करने संबंधी समझौते स्टार्ट..2 को मंजूरी दी।
2001- गुजरात के भुज में 7.7 तीव्रता का भीषण भूकंप। इस भूकंप में लाखों लोग मारे गए थे।
2003- अमरीका की मार्टिना नवरातिलोवा टेनिस का ग्रैंड स्लैम खिताब जीतने वाली सबसे उम्रदराज खिलाड़ी बनी।
2006- फिलीस्तीन में विपक्षी हमास ने लंबे समय से सत्तारुढ़ संगठन फतह को चुनाव में शिकस्त दी।
2010-
फ्रांस की संसद के 32 सांसदों के पैनल द्वारा छह महीने तक विचार-विमर्श के बाद तैयार संसद की एक रिपोर्ट में मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले बुर्के को फ्रांसीसी मूल्यों के खिलाफ बताया गया और स्कूल, अस्पताल, सार्वजनिक परिवहन सेवाओं और सरकारी दफ्तरों में बुर्के के प्रयोग पर पूर्णतः पाबंदी लगाने की शिफारिश की।
भारत ने मीरपुर में बांग्लादेश से दूसरा टेस्ट 10 विकेट से जीतते हुए सीरीज़ पर 2-0 से कब्जा कर लिया।
भारत की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने पद्म पुरस्कार पाने वाली 130 व्यक्तियों के नामों की घोषणा की। इनमें रंगमंच जगत की किंवदंति इब्राहिम अल्काजी और जोहरा सहगल, मशहूर अदाकार रेखा और आमिर खान, ऑस्कर विजेता ए़ आर रहमान और रसूल पोकुटटी, फार्मूला़ रेसर नारायण कार्तिकेयन, क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग, बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल और क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर के गुरु रमाकांत आचरेकर शामिल हैं।

शनिवार, 25 जनवरी 2014

gantantra divas -sanjiv

ध्वजा तिरंगी...

संजीव 'सलिल'
*
ध्वजा तिरंगी मात्र न झंडा
जन गण का अभिमान है.
कभी न किंचित झुकने देंगे,
बस इतना अरमान है...
*
वीर शहीदों के वारिस हम,
जान हथेली पर लेकर
बलिदानों का पन्थ गहेंगे,
राष्ट्र-शत्रु की बलि देकर.
सारे जग को दिखला देंगे
भारत देश महान है...
*
रिश्वत-दुराचार दानव को,
अनुशासन से मारेंगे.
पौधारोपण, जल-संरक्षण,
जीवन नया निखारेंगे.
श्रम-कौशल को मिले प्रतिष्ठा,
कण-कण में भगवान है...
*
हिंदी ही होगी जग-वाणी,
यह अपना संकल्प है.
'सलिल' योग्यता अवसर पाए,
दूजा नहीं विकल्प है.
सारी दुनिया कहे हर्ष से,
भारत स्वर्ग समान है...
****

gantantra divas par... rakesh khandelwal

गणतंत्र दिवस पर  विशेष रचना




राकेश खंडेलवाल

भोजपत्रों पर लिखीं गणतंत्र की कितनी कथायें
आप कहिये ! हम उन्हें इक इक पढ़ें या भूल जायें
 
आ गये परछाइयों के अनुसरण में कक्ष चौंसठ
पांव चलते, वर्ष पर शतरंज के खानों सरीखे
हर बरस देता रहा है मात, शह बोले बिना ही
जो रहा इतिहास अब तक, वो भविष्यत आज दीखे
 
एक टूटे तानपूरे को कहो कब तक बजायें
आप कहिये ! हम उन्हें इक इक पढ़ें या भूल जायें
 
रंग विरसे में मिले थे जो सुनहरे औ’ रुपहरे
हो चुके हैं राज्गृह की साज में सब खर्च सारे
अल्पना का एक गेरू और खड़िया हाथ में ले
काटते हैं ज़िन्दगी को एक भ्रम के ही सहारे
 
कल नई आशा फ़लेगी ? स्वप्न कितने दिन सजायें
आप कहिये ! हम उन्हें इक इक पढ़ें या भूल जायें
 
घाटियों के पार, वादा था किरन के देश वाला
झुक चुकी है अब कमर भी,दुर्गमों को पार करते
पर सभी वादे रहे हैं मरुथली इक कल्पना से
रोपने से पूर्व इस वन में रहे हैं पात झरते
 
बेसुरे स्वर एक ही धुन और कितना गुनगुनायें
आप कहिये ! हम उन्हें इक इक पढ़ें या भूल जायें
 
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chhand salila: tomar chhand -sanjiv

छंद सलिला:
बारहमात्रीय छंद
संजीव
*

(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रा वज्रा, उपेन्द्र वज्रा, कीर्ति, घनाक्षरी,
छवि, तोमर, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, माला, वाणी, शक्तिपूजा, शाला, शुभगति, सार, सुगति, सुजान, हंसी)
*
बारह मात्रीय छंदों के २३३ भेद या प्रकार हैं जिनमें से तोमर, तांडव, लीला तथा नित अधिक लोकप्रिय हैं.

*
तोमर छंद
बारह मात्रा, अंत में गुरु लघु 
बारह सुमात्रिक छंद, तोमर सृजे आनंद 
गुरु-लघु रखे पद-अंत, सुर-नर पुजित ज्यों संत 
आदित्य बारह मास, हरकर तिमिर संत्रास  
भू को बना दे स्वर्ग, ईर्ष्या करे सुर वर्ग 
कलकल बहे जल धार, हर श्रांति-क्लांति अपार 
कलरव करें खगवृंद, रवि-रश्मि ताप अमंद 
सहयोग सुख सद्भाव, का हो न तनिक अभाव
हो लोक सेवक तंत्र, जनतंत्र का यह मंत्र
****
सalil.sanjiv@

शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

hasya salila: pyaar -sanjiv

हास्य सलिला:
प्यार
संजीव
*
चौराहे पर खड़े हुए थे लालू हो ग़मगीन
कालू पूछे: 'का हुआ?, काहे लागत दीन??
' का बतलाऊँ टिहरी भउजी का परताप?
चाह करूँ वरदान की, बे देतीं अभिशाप'
'वर तुम, वधु बे किस तरह फिर देंगी वरदान?
बतलाओ कहे किया भउजी का गुणगान?'
लालू बोले: 'रूप का मैंने किया बखान'
फिर बोला: 'प्रिय! प्यार का प्यासा हूँ मैं कhoob.'
मेरे मुँह पर डालकर पानी बोलीं: 'डूब"
'दांत निपोर मजाक कह लेते तुम आनंद
निकट न आ ठेंगा दिखा बे करती हैं तंग'

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गुरुवार, 23 जनवरी 2014

chhand salila: aheer chhand -sanjiv

छंद सलिला:
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्र वज्रा, उपेन्द्र वज्रा, कीर्ति, घनाक्षरी, छवि, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, माला, वाणी, शक्तिपूजा, शाला, सार, सुगति/शुभगति, सुजान, हंसी)

ग्यारह मात्रिक रौद्र छंद
ग्यारह मात्राओं से बननेवाले रौद्र छंद में विविध वर्णवृत्त संयोजन से १४४ प्रकार के छंद रचे जा सकते हैं.

अहीर छंद

अहीर ग्यारह मात्राओं का छंद है जिसके अंत में जगण (१२१) वर्ण वृत्त होता है.

उदाहरण:

१. सुर नर संत फ़क़ीर, कहें न कौन अहीर
   आत्म ग्वाल तन धेनु, हो प्रयास मन-वेणु
   प्रकृति-पुरुष कर संग, रचते सृष्टि अनंग
   ग्यारह हों जब एक, पायें बुद्धि-विवेक

२. करे सतत निज काम, कर्ता मौन अनाम
   'सलिल' दैव यदि वाम, रखना साहस थाम
   सुबह दोपहर शाम, रचना रचें ललाम
   कर्म करें अविराम, गहें सुखद परिणाम

३. पूजें ग्यारह रूद्र, मन में रखकर भक्ति
   हो जल-बिंदु समुद्र, दे अनंत शुभ शक्ति
   लघु-गुरु-लघु वर अंत,  रचिए छंद अहीर
   छंद कहे कवि-संत, जैसे बहे समीर

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बुधवार, 22 जनवरी 2014

hasya salila: aurat bhee le lo -sanjiv

हास्य सलिला:
औरत भी ले लो.…
संजीव
*
लाली जी से हो गए जब लालू जी तंग
जा मुशायरे में किया 'सलिल' रंग में भंग
' ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो'
सुन भर आह कहा: 'मेरी औरत भी ले लो'
मैंने झेली बहुत मुसीबत तुम भी झेलो
लिये-दिए बिन बस शब्दों के खेल न खेलो
सुन हुड़दंगा मच गया, ताली सीटी शोर
श्रोता चीखे: 'लालू जी वंस मोर, वंस मोर'

आगबबूला हो गयीं लाली सुन संवाद
गरजीं: 'लल्ली के डुकर! कर लो नानी याद
अबकी लड़े चुनाव तो तुम्हें न दूँगी वोट
सबसे बोलीं नियत में आई तुमरी खोट
मुझसे पंगा लिया है नहीं रहेगी खैर
तुमको मँहगा पड़ेगा मुझसे लेना बैर
सिट्टी-पिट्टी गुम हुई लालू भूले स्वांग
चरण पकड़ माफी मँगी तुम राइट मैं रोंग

_________________________

dohe: ambareesh shrivastav

--इं० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

आधुनिक दोहे

अल्प वस्त्र में अधखुले, अति आकर्षक अंग.
चंचल मन को मारिये, व्यर्थ करे यह तंग..

आमंत्रण दें द्रौपदी, चीर मचाये शोर.
लूट रहे अब लाज को, कलि के नन्दकिशोर.

'स्वीटी' 'डार्लिंग' कर्णप्रिय, अप्रिय 'बहनजी' शब्द.
'मैडम' 'मिस' मन मोहते, अम्बरीष निःशब्द..

अनशन ही अपनाइए, दे इच्छित आकार.
सत्ता की सीढ़ी बने, पावन भ्रष्टाचार..

क्षत-विक्षत यदि रीतियाँ, शर्मिन्दा क्यों आर्य.
'डेटिंग' पर मिस यदि गयीं, अक्षत हो कौमार्य..

भ्रष्टाचारी जो बने, उन पर कहाँ नकेल.
मर्माहत माँ भारती, संत चले अब जेल..

कितना हुआ विकास है, देखें एक मिसाल.
गिरता जाता रूपया, डालर करे कमाल..

सन सैतालिस सा सजन, यह चौदह का साल.
क्या-क्या होना है अभी, उठने लगा सवाल..

सपना देखा साधु ने, दिया अनोखा मंत्र.
छिपी सुरंगें छोड़कर, सोना खोदे तंत्र..

मंदबुद्धि वह है कहाँ, मत कह रंगा सियार.
माँ की उस पर है कृपा ठहरा राजकुमार..

कपट गुंडई लूट छल, किडनैपिंग औ रेप.
सत्ता से उपहार में, मिलती ऐसी खेप ..

या अंग्रेजी में छपे, या फिर उर्दू कार्ड.
देवनागरी त्याज्य है, भाई साहब लार्ड..

कैसा यह दुर्भाग्य है, मूल कर दिया लुप्त.
हिन्दी-हिन्दी जाप हो, हुई संस्कृत सुप्त..

पढ़े विदेशी संस्कृत, भारतीय हों बोर.
देवनागरी छोड़कर, अंग्रेजी का जोर..

खाया चारा कोयला, प्यार चढ़ा परवान.
करें दलाली मित्रवर, बहुत भला ईमान..

दो-दो बोगी भूनकर, बदले में ली जान.
वाह-वाह इंसानियत, देख लिया ईमान..

जिसे बालिका जानकर, दिया गर्भ में मार.
वही पूछती प्रश्न अब, कैसे हो उद्धार..

जनहित में दंगे हुए, सम्यक हुआ प्रयास.
अभी मिलेगा मुफ्त में, सुख सुविधा आवास..

साझा सारी सूचना, करें देश से प्यार.
जागरूक हों नागरिक, उपयोगी 'आधार'..

शहरों में सम्पन्नता, सारे गाँव गरीब.
मनरेगा में भी लुटे, कैसा हाय नसीब??

देख दुर्दशा देश की, चिंतित मत हों यार.
नमो-नमो जप आप लें, निश्चित बेड़ा पार..

kavitt: chand bardaaee

कवित्त
तन तेज तरनि ज्यों घनह ओप

http://www.hindubooks.org/sudheer_birodkar/hindu_history/prithvi3.jpg  
रचनाकार: चंदबरदाई
प्रस्तुति: गुड्डो दादी
*
तन तेज तरनि ज्यों घनह ओप .
प्रगटी किरनि धरि अग्नि कोप .
चन्दन सुलेप कस्तूर चित्र .
नभ कमल प्रगटी जनु किरन मित्र.
जनु अग्निं नग छवि तन विसाल .
रसना कि बैठी जनु भ्रमर व्याल .
मर्दन कपूर छबि अंग हंति .
सिर रची जानि बिभूति पंति .
कज्जल सुरेष रच नेन संति .
सूत उरग कमल जनु कोर पंति.
चंदन सुचित्र रूचि भाल रेष.
रजगन प्रकास तें अरुन भेष .
रोचन लिलाट सुभ मुदित मोद .
रवि बैठी अरुन जनु आनि गोद.
धूसरस भूर बनि बार सीस.
छबि बनी मुकुट जनु जटा ईस.
धमकन्त धरनि इत लत घात.
इक श्वास उड़त उपवनह पात.
विश्शीय चरित ए चंद भट्ट .
हर्षित हुलास मन में अघट्ट (

*
हिंदी कुञ्ज से अनुसरण )

geet: gumsum kyon..? -shashikant geete

एक गीत
शशिकांत गीते
*
गुमसुम क्यों बैठे हो
मन कोरी लाग लिए,
बाँसों के वन गाते
अंतर में आग लिए.

अंतर में आग, चपल
दृ्ष्टि हो काग- सी
जिन्दगी रहे न महज
सागर के झाग- सी
संयम हो बंध नहीं
दामन में दाग लिए.

मौसम कब रोक सका
कोयल का कूकना
ऋतुओं की सीख नहीं
अपने से चूकना
नदियाँ भी राह तकें
मधुर- मधुर राग लिए.

उतनी ही सृष्टि नहीं
जितनी हम सोच रहे
स्लेट लिखे शब्दों को
पोते से पोंछ रहे
हल करते जीवन, ऋण,
जोड़, गुणा, भाग लिए.

मंगलवार, 21 जनवरी 2014



छंद सलिला:
दस मात्रिक दैशिक छंद:
संजीव
*
दस दिशाओं के आधार पर दस मात्रिक छंदों को दैशिक छंद कहा जाता है. विविध मात्रा बाँट से ८९ प्रकार के दैशिक छंद रचे जा सकते हैं.

(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रा वज्रा, उपेन्द्र वज्रा, कीर्ति, घनाक्षरी, छवि, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, माला, वाणी, शक्तिपूजा, शाला, सार, सुगति/शुभगति, सुजान, हंसी,)
दस मात्रिक दीप छंद

*
दस मात्रक दीप छंद के चरणान्त में ३ लघु १ गुरु १ लघु अर्थात एक नगण गुरु-लघु या लघु सगण लघु या २ लघु १ जगण की मात्रा बाँट होती है.
उदाहरण:
१. दीप दस नित बाल, दे कुचल तम-व्याल
   स्वप्न नित नव पाल, ले 'सलिल' करताल
   हो न तनिक मलाल, विनत रख निज भाल
   दे विकल पल टाल, ले पहन कर-माल

२. हो सड़क-पग-धूल, नाव-नद-नभ कूल
   साथ रख हर बार, जीत- पर मत हार
   अनवरत बढ़ यार, आस कर पतवार
   रख सुदृढ़ निज मूल, फहर नभ पर झूल

३. जहाँ खरपतवार, करो जड़ पर वार
   खड़ी फसल निहार, लुटा जग पर प्यार
   धरा-गगन बहार, सलामत सरकार
   हुआ सजन निसार, भुलाकर सब रार
   =========================== 

shatpadee: sanjiv

​​
षट्पदी :
संजीव 
*
सु मन कु मन से दूर रह, रचता मनहर काव्य
झाड़ू मन हर कर कहे,  निर्मलता संभाव्य
निर्मलता संभाव्य, सुमन से बगिया शोभित
पा सुगंध सब जग, होता है बरबस मोहित
कहे 'सलिल' श्रम सीकर से जो करे आचमन
उसकी जीवन बगिया में हों सुमन ही सुमन

facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

शनिवार, 18 जनवरी 2014

chhand salila: sujan chhand -sanjiv

छंद सलिला:
सुजान छंद
संजीव
*
द्विपदीय मात्रिक सुजान छंद में चौदह तथा नौ मात्राओं पर यति तथा पदांत में गुरु-लघु का विधान होता है.

चौदह-नौ यति रख रचें, कविगण छंद सुजान
हो पदांत लघु-गुरु 'सलिल', रचना रस की खान

उदाहरण :

१. चौदह-नौ पर यति सुजान / में'सलिल'-प्रवाह
   गुरु-लघु से पद-अंत करे, कवि पाये वाह

२. डर न मुझको किसी का भी / है दयालु ईश
   देश-हित हँसकर 'सलिल' कर / अर्पित निज शीश

३. कोयल कूके बागों में / पनघट पर शोर
   मोर नचे अमराई में / खेतों में भोर

            * * *

शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

chhand salila: nidhi chhand -sanjiv


छंद सलिला:
निधि छंद
संजीव
*
निधि नौ मात्रिक छंद है जिसमें चरणान्त में लघु मात्रा होती है. पद (पंक्ति) में चरण संख्या एक या अधिक हो सकती है.
उदाहरण :
१. तजिए न नौ निधि
   भजिए किसी विधि
   चुप मन लगाकर-
   गहिए 'सलिल' सिधि
२. रहें दैव सदय, करें कष्ट विलय
   मिले आज अमिय, बहे सलिल मलय
   मिटें असुर अजय, रहें मनुज अभय
   रचें छंद मधुर, मिटे सब अविनय
३. आओ विनायक!, हर सिद्धि दायक
   करदो कृपा अब, हर लो विपद सब
   सुख-चैन दाता, मोदक ग्रहण कर
   खुश हों विधाता, हर लो अनय अब 
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hasya kavita chay coffee -sanjiv


हास्य सलिला:
चाय-कॉफी
संजीव
*
लाली का आदेश था: 'जल्दी लाओ कॉफ़ी
देर हुई तो नहीं मिलेगी ए लालू जी! माफ़ी'
लालू बोले: 'मैडम! हमको है तुमरी परवाह
का बतलायें अधिक सोनिया जी से तुमरी चाह
चाय बनायी गरम-गरम पी लें, होगा आभार'
लाली डपटे: 'तनिक नहीं है तुममें अक्कल यार
चाय पिला मोड़ों-मोड़िन को, कॉफी तुरत बनाओ
कहे दुर्गत करवाते हो? अपनी जान बचाओ
लोटा भर भी पियो मगर चैया होती नाकाफ़ी
चम्मच भर भी मिले मगर कॉफ़ी होती है काफ़ी'
*
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गुरुवार, 16 जनवरी 2014

kavya salila: cheeta -sanjiv

कविता:
चीता
संजीव
*
कौन कहता है कि
चीता मर गया है?
हिंस्र वृत्ति
जहाँ देखो बढ़ रही है.
धूर्तता
किस्से नये
नित गढ़ रही है.
शक्ति के नाखून पैने
चोट असहायों पर करते
स्वाद लेकर रक्त पीते
मारकर औरों को जीते
और तुम?
और तुम कहते हो
चीता मर गया है.
नहीं,
वह तो
आदमी की
नस्ल में घर कर गया है.
झूठ कहते हो कि
चीता मर गया है.
=============

 kavita.vachaknavee@gmail.comSubject: {हिंदी-विमर्श:6634} सियोल मेट्रो में टैगोर की कविताएँ
To: hindi-bharat@yahoogroups.com


सियोल के एक मित्र से प्राप्त सूचना - 
स्मार्टफोन और टैबलेट में घुसी पड़ी कोरियन पब्लिक को साहित्य की ओर आकर्षित करने के लिए सरकार ने
​​
सियोल मेट्रो में टैगोर की कविताएँ लगाई हैं. भारत की सरकारें भी कुछ सीखें तो अच्छा हो.
__._,_.___

chaintan: ashok jamnani


काहे री बानी तू कुम्हलानी


Ashok Jamnani
- अशोक जमनानी
पिछले दिनों कहानी-पाठ के लिए दिल्ली जाना हुआ तो वहाँ कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रभाकर श्रोत्रिय की कही बात ने देर तक सोचने के लिए विवश कर दिया। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में हमारी तीन सौ चालीस बोलियां हमेशा के लिए विलुप्त हो गईं और केवल तीन सौ चालीस बोलियां विलुप्त नहीं हुईं असल में उनके साथ-साथ तीन सौ चालीस संस्कृतियां भी विलुप्त हो गईं।एक देश जो अपने वैविध्य के सौंदर्य से पूरी दुनियां को चमत्कृत करता रहा हो और जब वो किसी तथाकथित समृद्धि का कोई बाना पहने, उसके साथ ही वो अपनी वाणी को दारिद्र्य देकर स्वयं को सदा-सदा के लिए श्री विहीन भी कर ले तो उसकी समृद्धि का यह दुशाला देह पर नहीं बल्कि अर्थी पर पड़े दुशाले की तरह ही लगता है।

संस्कृति इस देश की देह में प्राण की तरह बसती है और भाषाओं एवं बोलियों का वैविध्य इस प्राण को केवल तत्त्व मात्र नहीं रहने देता वरन इस तत्त्व को सगुण भी बनाता है। इस तत्त्व की महिमा ऐसी कि महल से लेकर झोपड़ी तक और संसद से लेकर सड़क तक वाणी का साम्राज्य रहता है और सामर्थ्य ऐसी कि कोई कबीर निर्गुण बखानता है तो उसे भी बानी का बाना ओढ़ना ही पड़ता है।क्या छूटा है इन भाषाओं से, इन बोलियों से … कुछ भी तो नहीं। फिर ऐसा क्या हो गया कि प्राणों के प्राण सूखने लगे ! भारत की समृद्ध भाषाएँ और बोलियां असमय ही प्राण विहीन होने लगीं !! कोस-कोस में बदलता पानी और बीस कोस में बदलती बानी अब बदलते नहीं बल्कि सूखे कंकाल बने मरघट के घट जा बैठे हैं!!!फ़िर वही उदारीकरण का गिरेबान पकड़कर, दोष का ठीकरा उसके माथे फोड़कर चाहूं तो बात ख़त्म कर दूँ, पर करूंगा नहीं। सोचता हूँ अपने गिरेबान में भी झांककर देख लूँ।

मैं जहाँ रहता हूँ उस मोहल्ले का नाम है-इतवारा बाज़ार। कभी इतवार का साप्ताहिक हाट घर के बाहर तक लगता था। कस्बा ज़रा छोटा था पर संस्कृति की समृद्धि बहुत बड़ी थी। वैसे भी बुंदेलखण्ड, निमाड़ , मालवा और भोपाल रियासत की सीमाओं ने मेरे क़स्बे को केवल स्पर्श ही नहीं किया है बल्कि अपनी भाषा-बोली के अंश भी इस कस्बे की भाषा में घोल दिए। इसलिए यहाँ की भाषा का वैविध्य भी अद्भुत था। फ़िर देखते ही देखते कस्बा बड़ा हो गया। इतवारा बाज़ार एक दिन लगने वाला हाट नहीं रहा बल्कि पक्की दुकानों की कतार अब घर तक आती है और सजी हुई दुकानों में जो संवाद है उसमें न तो बुंदेलखण्ड, न निमाड़ , न मालवा और न ही भोपाल रियासत का सुर गमकता है। उसमें तो बस एक रस होती अंग्रेज़ी घुसी खड़ी बोली का वर्चस्व है। कभी मैं इसे सभ्य समाज की भाषा समझाता था पर अब लगता है कि ये बाज़ारू बाना देह के लिए तो ठीक है पर न तो ये दिल तक पहुँचता है और न शेष अंतः करण को स्पर्श कर पाता है। और बात अगर यहाँ तक भी नहीं पहुँचती है तो घूंघट के पट खोलने का तो स्वप्न भी कौन देखे ?

कभी घर के बाहर तक आते इतवारी हाट में देहाती भाषा में बोलते लोगों के साथ वैसी ही भाषा में संवाद करता था। फ़िर पता नहीं कब असभ्य हो गया और तथाकथित सभ्य भाषा बोलने लगा। शायद उन विलुप्त हो गईं तीन सौ चालीस बोलियों में मेरे कस्बे की बोली भी होगी क्योंकि अब वो सुनाई देना बंद हो गयी है और केवल बोली नहीं मिटी बल्कि हाट की संस्कृति जबसे बाज़ार के रंग में रंगी है तो कितनी भद्दी और कैसी कुरंगी हो गयी है। दिल्ली में प्रभाकर श्रोत्रिय को सुन रहा था तो याद करने की कोशिश कर रहा था कि अपनी बोली जब बिछड़ी थी तो वो बरस कौन-सा था।पर अब ऐसी गैर ज़रूरी बातें कहाँ याद रहती हैं।

एक कबीर थे उन्होंने नलिनी से पूछा था - काहे री नलिनी तू कुम्हलानी ? तेरे तो नीचे सरोवर का पानी था !सोचता हूँ लुप्त हो चुकी तीन सौ चालीस बोलियों में से किसी एक से तो पूछूं कि काहे री बानी तू कुम्हलानी ? तेरे साथ तो ये महान हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तानी थे। पर सच कहूं तो पूछने में ख़तरा भी बहुत है। कहीं इस कुम्हलायी बानी के निर्जीव होंठों पर मेरी अंग्रेजी निष्ठ हिंदी को निहारकर कोई व्यंग्य स्मित उभरी तो बताइये मैं कहाँ मुंह छुपाऊंगा ?????

Hindi vimarsh: gujrati quotes & books in hotel - jawahar karnavat

हिंदी विमर्श:

अहमदाबाद में स्वभाषा प्रेम

होटल में गुजराती के उद्धरण व् पुस्तकें
Jawahar Karnavat की प्रोफाइल फोटो

-जवाहर कर्नावट, मुम्बई 075063 78525
 
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Hindi in abroad: Dr. Kavita Vachaknavee


हिंदी-विमर्श: 
सियोल मेट्रो में टैगोर की कविताएँ

डॉ. कविता वाचक्नवी
सियोल के एक मित्र से प्राप्त सूचना - 
स्मार्टफोन और टैबलेट में घुसी पड़ी कोरियन पब्लिक को साहित्य की ओर आकर्षित करने के लिए सरकार ने
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सियोल मेट्रो में टैगोर की कविताएँ लगाई हैं. भारत की सरकारें भी कुछ सीखें तो अच्छा हो.
 
__._,_.___From:  

बुधवार, 15 जनवरी 2014

hasya kavita: challenge -sanjiv

हास्य सलिला:
चैलेन्ज
संजीव
*
लाली ने चैलेन्ज दिया: 'ए जी लल्लू के पप्पा!
पल भर को गुस्साऊं अगले पल गुस्से से कुप्पा
बोलो ऐसे बोल बोलकर क्या तुम दिखला सकते?
सफल हुए तो पैर दबाने से छुट्टी पा सकते'
अक्ल लगाकर लालू बोले: 'हे प्राणों से प्यारी!'
लाली मुस्का, गुर्राई सुन: 'मेरी मति गयी मारी
ब्याही तुमको जीभ न देखी जो है तेज दोधारी'
रूठीं तुम, मैं सुखी हुआ, ए लल्ली की महतारी!
पैर दबाने से छुट्टी पा मैं सचमुच आभारी'
लाली गरजी: 'कपड़ा, बर्तन करो न जाओ बाहर
बाई आयी नहीं, काम निबटाओ हे नर नाहर!
***

hasya kavita: lalu-lali comedy show

हास्य कविता:
लालू -लाली कॉमेडी शो
संजीव
*
लालू से लाली हँस बोली: 'सुबह-सुबह सच सुन लो
भाग जगे जो मुझ सी बीबी पायी सपने बुन लो
अलादीन का ले चराग खोजो तो भी हारोगे
मुझ सी बीबी मिल न सकेगी, मुझ पर जां वारोगे'
लालू बोले: ' गलती की है एक बार सच मनो
दोबारा दोहराऊंगा मैं कभी नहीं सच जानो'
लालू-लाली की खिचखिच सुन बच्चे फिर मुस्काये
इनका कॉमेडी शो असली से ज्यादा मन भाये

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शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

chhand salila: gang chhand -sanjiv

छंद सलिला:
नौ मात्रिक छंद गंग
संजीव
*
संजीव
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रा वज्रा, उपेन्द्र वज्रा, कीर्ति, घनाक्षरी, प्रेमा, वाणी, शक्तिपूजा, सार, माला, शाला, हंसी, दोधक, सुजान, छवि)

*
९ वसुओं के आधार पर नौ मात्राओं के छंदों को वासव छंद कहा गया है. नवधा भक्ति,  नौ रस, नौ अंक, अनु गृह, नौ निधियाँ भी नौ मात्राओं से जोड़ी जा सकती हैं. नौ मात्राओं के ५५ छंदों को ५ वर्गों में विभाजित किया जा सकता है.
१. ९ लघु मात्राओं के छंद                  १
२. ७ लघु + १ गुरु मात्राओं के छंद       ७
३. ५ लघु + २ गुरु मात्राओं के छंद     २१
४. ३ लघु + ३ गुरु मात्राओं के छंद     २०
५. १ लघु + ४ गुरु मात्राओं के छंद      ५

नौ मात्रिक छंद गंग
नौ मात्रिक गंग छंद के अंत में २ गुरु मात्राएँ होती हैं.
उदाहरण:
१. हो गंग माता / भव-मुक्ति-दाता
   हर दुःख हमारे / जीवन सँवारो
   संसार चाहे / खुशियाँ हजारों
   उतर आसमां से / आओ सितारों
   जन्नत जमीं पे, नभ से उतारो
   शिव-भक्ति दो माँ / भाव-कष्ट-त्राता
२. दिन-रात जागो / सीमा बचाओ
   अरि घात में है / मिलकर भगाओ
   तोपें चलाओ / बम भी गिराओ
​   ​
​सेना लड़ेगी / सब साथ आओ ​


​३. बचपन हमेशा / चाहे कहानी ​

​   है साथ लेकिन / दादी न नानी ​

​   हो ज़िंदगानी / कैसे सुहानी ​

​   सुने न किस्से, न / बातें बनानी

   *****​

गुरुवार, 9 जनवरी 2014

hasya salila: yaad -sanjiv

हास्य सलिला:
याद
संजीव 'सलिल'
*
कालू से लालू कहें, 'दोस्त! हुआ हैरान.
घरवाली धमका रही, रोज खा रही जान.
पीना-खाना छोड़ दो, वरना दूँगी छोड़.
जाऊंगी मैं मायके, रिश्ता तुमसे तोड़'
कालू बोला: 'यार! हो, किस्मतवाले खूब.
पिया करोगे याद में, भाभी जी की डूब..
बहुत भली हैं जा रहीं, कर तुमको आजाद.
मेरी भी जाए कभी प्रभु से है फरियाद..'
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ye hai bharat:

सबसे न्यारा भारत देश


kavita: geedh -sanjiv

काव्य सलिला:
गीध
संजीव
*
जब स्वार्थ-साधन,
लोभ-लालच,
सत्ता और सुविधा तक
सीमित रह जाए
नाक की सीध
तब समझ लो आदमी
इंसान नहीं रह गया
बन गया है गीध.

***

chhand salila: chhavi chhand -sanjiv

छंद सलिला:
अष्ट मात्रिक छवि छंद
संजीव
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रा वज्रा, उपेन्द्र वज्रा, कीर्ति, घनाक्षरी, प्रेमा, वाणी, शक्तिपूजा, सार, माला, शाला, हंसी, दोधक, सुजान)
*
अष्ट मात्रिक छन्दों को ८ वसुओं के आधार पर 'वासव छंद' कहा गया है. इस छंदों के ३४ भेद सम्भव हैं जिनकी मात्रा बाँट निम्न अनुसार होगी:
अ. ८ लघु: (१) १. ११११११११,
आ. ६ लघु १ गुरु: (७) २. ११११११२ ३. १११११२१, ४. ११११२११, ५. १११२१११, ६. ११२११११, ७. १२१११११, ८. २११११११,
इ. ४ लघु २ गुरु: (१५) ९. ११११२२, १०. १११२१२, ११. १११२२१, १२, ११२१२१, १३. ११२२११, १४, १२१२११, १५. १२२१११,  १६. २१२१११, १७. २२११११, १८. ११२११२,, १९. १२११२१, २०. २११२११, २२. १२१११२, २३. २१११२१,
ई. २ लघु ३ गुरु: (१०) २४. ११२२२, २५. १२१२२, २६. १२२१२, २७. १२२२१, २८. २१२२१, २९. २२१२१, ३०. २२२११, ३१. २११२२, ३२. २२११२, ३३. २१२१२
उ. ४ गुरु: (१) २२२२
विविध चरणों में इन भेदों का प्रयोग कर और अनेक उप प्रकार हो सकते हैं.
उदाहरण:
१. करुणानिधान! सुनिए पुकार, / रख दास-मान, भव से उबार
२. कर ले सितार, दें छेड़ तार / नित तानसेन, सुध-बुध बिसार
३. जब लोकतंत्र, हो लोभतंत्र / बन कोकतंत्र, हो शोकतंत्र
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