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बुधवार, 21 जनवरी 2015

navgeet: -sanjiv

अभिनव प्रयोग:
नवगीत :
संजीव 
मिलती काय न ऊँचीवारी 
कुरसी हमखों गुइयाँ 
हमखों बिसरत नहीं बिसारे
अपनी मन्नत प्यारी 
जुलुस, विशाल भीड़ जयकारा 
सुविधा-संसद न्यारी 
मिल जाती, मन की कै लेते 
रिश्वत ले-दे भैया 
पैलां लेऊँ कमीशन भारी
बेंच खदानें सारी  
पाछूं घपले-घोटाले सौ 
रकम बिदेस भिजा री 
होटल फैक्ट्री टाउनशिप 
कब्जा लौं कुआ तलैया 
कौनौ सैगो हमरो नैयाँ 
का काऊ सेन काने?
अपनी दस पीढ़ी खें लाने
हमें जोड़ रख जानें 
बना लई सोने की लंका 
ठेंगे पे राम-रमैया 
.   
(बुंदेली लोककवि ईसुरी की चौकड़िया फागों की लय पर आधारित, प्रति पद १६-१२ x ४ पंक्तियाँ, महाभागवत छंद )

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