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बुधवार, 15 अप्रैल 2015

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस संबंधी सत्य की खोज:

बर्लिन में पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात के दौरान नेताजी के परपोते सूर्य कुमार बोस।बर्लिन.  नेताजी सुभाषचंद्र बोस के परपोते सूर्य कुमार बोस ने जर्मनी के दौरे पर गये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सोमवार की शाम भारतीय राजदूत विजय गोखले द्वारा दिये गये स्वागत भोज में भेंट कर नेताजी के रहस्यमय ढंग से लापता होने से जुड़ी गोपनीय नस्तियों और जवाहरलाल नेहरू द्वारा बोस परिवार की जासूसी कराये जाने जैसे मसलों को उठाया।

नेताजी की वापसी से खतरे में पड़ जाती नेहरू की गद्दीः सूर्य कुमार बोस

सूर्य कुमार बोस ने कांग्रेस और नेहरू पर आरोप लगाते हुए कहा कि जानबूझकर नेताजी से जुड़ी फाइलों को दबा कर रखा गया । उन्होंने कहा, ''नेहरू को डर था कि नेताजी के वापस आने के बाद उनकी गद्दी जा सकती है, इसलिए मेरे पिता और परिवार के अन्य सदस्यों की विदेश सचिव और राजदूत से जासूसी करायी गयी।'' नेताजी के परिवार के एक अन्य सदस्य चंद्र बोस ने दावा किया, ''पीएम मोदी के पास सारे अधिकार हैं, वह नेताजी की गुमशुदगी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करेंगे तथा पंडित नेहरू द्वारा बोस परिवार की जासूसी मामले की जाँच का भी आश्वासन दिया है।''
'पूरे देश के थे नेताजी, सब करें रहस्य से पर्दा उठाने की मांग' 
पीएम मोदी से मुलाकात के पहले सूर्य कुमार बोस ने कहा, ''सुभाष बोस केवल एक ही परिवार से नहीं जुड़े थे। उन्होंने खुद कहा था कि पूरा देश उनका परिवार है। मैं नहीं समझता कि यह एक ही परिवार का जिम्मा है कि नेताजी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने की माँग करे, यह पूरे देश का जिम्मा है।'' 18 अगस्त 1945 को ताइवान में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को अंतिमबार देखा गया था जिसके बाद से वह लापता हैं।
क्यों पीएम मोदी से मिला बोस परिवार
नेताजी के गायब होने से जुड़ी कई फाइलें हैं, जिन्हें केंद्र सरकार ने आज तक सार्वजनिक नहीं किया है। नेताजी के परिवार के सदस्यों की मांग रही है कि सरकार सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी 160 गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करे। बता दें कि कांग्रेस सरकार की तरह मोदी सरकार भी नेताजी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने से आनाकानी करती रही है। पिछले दिनों ऐसी खबरें आई थीं कि देश का पहला प्रधानमंत्री बनने के बाद जवाहरलाल नेहरू ने दो दशकों तक बोस परिवार की जासूसी कराय थी। इसका खुलासा सीक्रेट लिस्ट से हाल ही में हटायी गयी इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) की दो फाइलों से हुआ है। फाइलों से पता चला है कि 1948 से 1968 के बीच सुभाष चंद्र बोस के परिवार पर निगरानी रखी गयी थी। इन 20 सालों में से 16 साल तक नेहरू देश के पीएम थे और आईबी उन्हीं के अंतर्गत काम करती थी।

ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट (ओएसए) के रिव्यू के लिए केंद्र सरकार ने कमेटी गठित की:
दिल्ली. स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की गुमशुदगी से जुड़े रहस्यों से जल्द मोदी सरकार पर्दा उठा सकती है। इस संबंध ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट (ओएसए) पर पुनर्विचार के लिए केंद्र सरकार ने एक कमेटी गठित की है। इस इंटर-मिनिस्ट्रियल कमेटी का नेतृत्व कैबिनेट सचिव कर रहे हैं जो नेताजी की गुमशुदगी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने की मांग पर विचार करेंगे। कमेटी में रॉ, आईबी, होम मिनिस्ट्री के अलावा पीएमओ के अधिकारी भी हैं।

सरकार की ओर से कमेटी बनाए जाने पर नेताजी के परिवार ने खुशी जताई है। इस संबंध में नेताजी के परपोते चंद्र बोस ने कहा, ''मोदी सरकार की ओर से इतना जल्दी फैसला लिया जाना बहुत ही सकारात्मक है, हमें इतने जल्दी फैसले की उम्मीद नहीं थी।'' बर्लिन में पीएम मोदी से मुलाकात करने वाले नेताजी के परपोते ने कहा कि परिवार गुमशुदगी और नेताजी के जीवन से जुड़े किसी भी तथ्य को स्वीकार करेगा। उन्होंने कहा, ''हो सकता है कि फाइलों से होने वाले खुलासे में नेताजी की बेहतर छवि न सामने आए। उनके बारे में कुछ नकारात्मक भी हो सकता है। सब कुछ संभावना है, लेकिन हमें इसे स्वीकार करना होगा। परिवार नेताजी के बारे में किसी भी खुलासे को स्वीकार करने को तैयार है।'' सूर्य बोस ने कहा था, ''मैंने पीएम मोदी को कुछ बिंदुओं को लिखित दिया है। इसमें परिवार की नेहरू द्वारा जासूसी कराये जाने की बात भी शामिल है। हमारा परिवार चाहता है कि सच सामने आए। मैंने पीएम मोदी को बताया कि भारत इतना मजबूत देश है कि यदि नेताजी से जुड़ा सच सामने आता है और वह किसी देश को मंजूर नहीं होता है तो भी भारत का कुछ नहीं बिगड़ेगा।''