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शुक्रवार, 22 मई 2015

navgeet: sanjiv

नवगीत:
प्रयासों की अस्थियों पर 
संजीव
*
प्रयासों की अस्थियों पर 
सुसाधन के मांस बिन 
सफलता-चमड़ी शिथिल हो झूलती.
*
सांस का व्यापार 
थमता अनथमा सा
आस हिमगिरि पर
निरंतर जलजला सा. 
अंकुरों को 
पान गुटखा लीलता नित-
मुँह छिपाता नीलकंठी 
फलसफा सा.
ब्रांडेड मँहगी दवाई  
अस्पताली भव्यताएँ 
रोग को मुद्रा-तुला पर तौलती.
प्रयासों की अस्थियों पर 
सुसाधन के मांस बिन 
सफलता-चमड़ी शिथिल हो झूलती.
* 
वीतरागी चिकित्सक को  
रोग से लेना, न देना 
कई दर्जन टेस्ट  
सालों औषधि, राहत न देना. 
त्रास के तूफ़ान में  
बेबस मरीजों को खिलौना-
बना खेले निष्ठुरी  
चाबे चबेना.
आँख पीड़ा-हताशा के   
अनलिखे संवाद 
पल-पल मौन रहकर बोलती.
प्रयासों की अस्थियों पर 
सुसाधन के मांस बिन 
सफलता-चमड़ी शिथिल हो झूलती.
* 

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