कुल पेज दृश्य

सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

laghukatha

लघुकथा-
कल का छोकरा 
*
अखबार खोलते ही चौंक पड़ीं वे, वही लग रहा है? ध्यान से देखा हाँ, वही तो है। गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति द्वारा वीरता पुरस्कार प्राप्त बच्चों में उसका चित्र? विवरण पढ़ा तो उनकी आँखें भर आयीं, याद आया पूरा वाकया।

उस दिन सवेरे धूप में बैठी थी कि वह आ गया, कुछ दूर ठिठका खड़ा अपनी बात कहने का साहस नहीं जुटा पा रहा था। 'कुछ कहना है? बोलो' उनके पूछने पर उसने जेब से कागज़ निकाल कर उनकी ओर बढ़ा दिया, देखा तो प्रथम श्रेणी अंकों की अंकसूची थी। पूछा 'तुम्हारी है?' उसने स्वीकृति में गर्दन हिला दी।

'क्या चाहते हो?' पूछा तो बोला 'सहायता'। उसने एक पल सोचा रुपये माँग रहा है, क्या पता झूठा न हो?, अंकसूची इसकी है भी या नहीं?' न जाने कैसे उसे शंका का आभास हो गया, बोला 'मुझे रुपये नहीं चाहिए, पिता की खेती की जमीन सड़क चौड़ी करने में सरकार ने ले ली, शहर आकर रिक्शा चलाते हैं. माँ कई दिनों से बीमार है, नाले के पास झोपड़ी में रहते हैं, सरकारी पाठशाला में पढ़ता है, पिता पढ़ाई का सामान नहीं दिला पा रहे कोई उसे कॉपी, पेन-पेन्सिल आदि दिला दे तो दूसरे बच्चों की किताब से वह पढ़ाई कर लेगा। उसकी आँखों की कातरता ने उन्हें मजबूर कर दिया, अगले दिन बुलाकर लिखाई-पढ़ाई की सामग्री खरीद दी। 

आज समाचार था कि बरसात में नाले में बाढ़ आने पर झोपड़पट्टी के कुछ बच्चे बहने लगे, सभी बड़े काम पर गये थे, चिल्ल्पों मच गयी। एक बच्चे ने हिम्मत कर बाँस आर-पार डाल कर, नाले में उतर कर उसके सहारे बच्चों को बचा लिया। इस प्रयास में २ बार खुद बहते-बहते बचा पर हिम्मत नहीं हांरी। मन प्रसन्न हो गया, पति को अखबार देते हुए वाकया बताकर कहा-  इतना बहादुर तो नहीं लगता था वह कल का छोकरा

*** 

कोई टिप्पणी नहीं: