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शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

laghukatha:

लघुकथा: संजीव
कानून के रखवाले 
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हमने आरोपी को जमकर सबक सिखाया, उसके कपड़े गीले हो गये, बोलती बंद हो गयी। अब किसी की हिम्मत नहीं होगी हमारा विरोध करने की। हम अपने देश में ऐसा नहीं होने दे सकते। वक्ता अपने कृत्य का बखान करते हुए खुद को महिमामंडित कर रहे थे। 

उनकी बात पूर्ण होते ही एक श्रोता ने पूछा आप तो संविधान और कानून के जानकार होने का दवा करते हैं क्या बता सकेंगे कि संविधान का कौन सा अनुच्छेद या किस कानून की कौन सी कंडिका या धारा किसी नागरिक को अपनी विचारधारा से असहमत अन्य नागरिक को प्रतिबंधित या दंडित करने का धिकार देती है?

क्या आपसे भिन्न विचार धारा के नगरिकों को भी यह अधिकार है कि वे आपको घेरकर आपके साथ ऐसा ही व्यवहार करें?

यह भी बतायें कि अगर नागरिकों को एक-दूसरे को दंड देने का अधिकार है तो न्यायालय किसलिए हैं? क्या इससे कानून-व्यवस्था नष्ट नहीं हो जाएगी? 

वकील होने के नाते आप खुद को कानून का रखवाला कहते हैं क्या कानून को हाथ में लेने के लिये आपको सामान्य नागरिक की तुलना में अधिक कड़ी सजा नहीं मिलना चाहिए?

प्रश्नों की बौछार के बीच निरुत्तर थे कानून के रखवाले।
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