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शुक्रवार, 1 अप्रैल 2016

bhujanprayat chhand

  ​​रसानंद दे छंद नर्मदा २३​​:०२-०४-२०१६
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

​दोहा, ​सोरठा, रोला, ​आल्हा, सार​,​ ताटंक, रूपमाला (मदन), चौपाई​, ​हरिगीतिका, उल्लाला​,गीतिका,​घनाक्षरी, बरवै, त्रिभंगी​, सरसी, तथा छप्पय छंदों से साक्षात के पश्चात् अब मिलिए भुजंगप्रयात छन्द ​से.


चार यगण आवृत्ति ही है छंद भुजंगप्रयात
*

​'चतुर्भिमकारे भुजंगप्रयाति' अर्थात भुजंगप्रयात छंद की हर पंक्ति यगण की चार आवृत्तियों से बनती है
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यमाता X ४ या ४ (लघु गुरु गुरु) अथवा निहारा निहारा निहारा  निहारा के समभारीय पंक्तियों से भुजंगप्रयात छंद का पद बनता है
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​मापनी- ​१२२   १२२   १२२   १२२ 


उदाहरण- 



०१. कहूं किन्नरी किन्नरी लै बजावैं 

     सुरी आसुरी बाँसुरी गीत गावैं
​     कहूँ जक्षिनी पक्षिनी लै पढ़ावैं
      नगी कन्यका पन्नगी को नचावैं
​ 

०२. न आँसू, न आहें, न कोई गिला है

​       वही जी रहा हूँ, मुझे जो मिला है

​       कुआँ खोद मैं रोज पानी निकालूँ 

​       जला आग चूल्हे, दिला से उबालूँ 

​मुक्तक -
०३. कहो आज काहे पुकारा मुझे है​?
     छिपी हो कहाँ, क्यों गुहारा मुझे है?​
​      पड़ा था अकेला, सहारा दिया क्यों -
​      न बोला-बताया, निहारा मुझे है
मुक्तिका-
०४. न छूटा तुम्हारा बहाना बनाना
      न छूटा हमारा तुम्हें यूँ बुलाना 

     न भूली तुम्हारी निगाहें, न आहें 
     न भूला फसाना, न भूला तराना 

     नहीं रोक पाया, नहीं टोंक पाया 
     न भा ही सका हूँ, नहीं याद जाना

    न देखो हमें तो न फेरो निगाहें  
    न आ ही सको तो नहीं याद आना 

    न 'संजीव' की हो, नहीं हो परायी 
    न वादा भुलाना, न वादा निभाना 
महाभुजंगप्रयात सवैया- ८ यगण प्रति पंक्ति  
०५. तुम्हें देखिबे की महाचाह बाढ़ी मिलापै विचारे सराहै स्मरै जू 
      रहे बैठि न्यारी घटा देखि कारी बिहारी बिहारी बिहारी ररै जू    -भिखारीदास 

०६. जपो राम-सीता, भजो श्याम-राधा, करो आरती भी, सुने भारती भी 
     रचो झूम दोहा, सवैया विमोहा, कहो कुंडली भी, सुने मंडली भी 
     न जोड़ो न तोड़ो, न मोड़ो न छोड़ो, न फाड़ो न फोड़ो, न मूँछें मरोड़ो 
     बना ना बहाना, रचा जो सुनाना, गले से लगाना, सगा भी बताना 
वागाक्षरी सवैया- उक्त महाभुजङ्गप्रयात की हर पंक्ति में से अंत का एक गुरु कम कर, 
०७. सदा सत्य बोलौ, हिये गाँठ खोलौ, यही  मानवी गात को 
      करौ भक्ति साँची, महा प्रेमराची, बिसारो न त्रैलोक्य के तात को    - भानु 

०८. न आतंक जीते, न पाखण्ड जीते, जयी भारती माँ, हमेशा रहें  
     न रूठें न खीझें, न छोड़ें न भागें, कहानी सदा सत्य ही जो कहें 
     न भूलें-भुलायें, न भागें-भगायें, न लूटें-लुटायें, नदी सा बहें 
     न रोना न सोना, न जादू न टोना, न जोड़ा गँवायें,न  त्यागा गहें 

उर्दू रुक्न 'फ़ऊलुन' के चार बार दोहराव से भुजंगप्रयात छन्द बन सकता है यदि 'लुन' को 'लुं' की तरह प्रयोग किया जाए तथा 'ऊ' को दो लघु न किया जाए
०९. शिकारी  न जाने निशाना लगाना 
      न छोड़े मियाँ वो बहाने बनाना 
      कहे जो न थोड़ा, करे जो न थोड़ा
      न कोई भरोसा, न कोई ठिकाना 
       
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