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गुरुवार, 19 मई 2016

doha

 दोहा सलिला 
देव लात के मानते, कब बातों से बात 
जैसा देव उसी तरह, पूजा करिए तात 
*
चरण कमल झुक लात से, मना रहे हैं खैर 
आये आम चुनाव क्या?, पड़ें  पैर के पैर 
​*
पाँव पूजने का नहीं, शेष रहा आनंद 
'लिव इन' के दुष्काल में, भंग हो रहे छंद 
*
पाद-प्रहार न भाई पर, कभी कीजिए भूल 
घर भेदी लंका ढहे, चुभता बनकर शूल 
*
'सलिल न मन में कीजिए, किंचित भी अभिमान 
तीन पगों में नाप भू, हरि दें जीवन-दान 
*

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