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सोमवार, 30 मई 2016

मुक्तिका muktika

एक रचना 
शुष्क मौसम, संदेशे मधुर रस भरे
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शुष्क मौसम, संदेशे मधुर रस भरे, नेटदूतित मिले मन मगन हो गया 
बैठ अमराई में कूक सुन कोकिली, दशहरी आम कच्चा भी मन भा गया 
कार्बाइड पके नाम थुकवा रहे, रूप - रस - गंध नकली मगर बिक रहे 
तर गये पा तरावट शिकंजी को पी,  घोल पाती पुदीना मजा आ गया 
काट अमिया, लगा नोन सेंधा - मिरच, चाट-चटखारकर आँख झट मुँद गयी 
लीचियों की कसम, फालसे की शपथ, बेल शर्बत लखनवी प्रथम आ गया 
जय अमरनाथ की बोल झट पी गये, द्वार निर्मल का फिर खटखटाने लगे 
रूह अफ्जा की जयकार कर तृप्ति पा, मधुकरी गीत बिसरा न, याद आ गया  
श्याम श्रीवास्तवी मूँछ मिल खीर से, खोजती रह गयी कब सुजाता मिले?
शांत तरबूज पा हो गया मन मुदित, ओज घुल काव्य में हो मनोजी गया 
आजा माज़ा मिटा द्वैत अद्वैत वर, रोहिताश्वी न सत्कार तू छोड़ना 
मोड़ना न मुख देख खरबूज को, क्या हुआ पानी मुख में अगर आ गया 
लाड़ लस्सी से कर आड़ हो या न हो, जूस पी ले मुसम्बी नहीं चूकना 
भेंटने का न अवसर कोई चूकना, लू - लपट को पटकनी दे पन्हा गया  
बोई हरदोई में मित्रता की कलम, लखनऊ में फलूदा से यारी हुई 
आ सके फिर चलाचल 'सलिल' इसलिए, नर्मदा तीर तेरा नगर आ गया 
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[लखनऊ प्रवास- अमरनाथ- कवि, समीक्षक,  निर्मल- निर्मल शुक्ल नवगीतकार, संपादक उत्तरायण,  मधुकरी मधुकर अष्ठाना नवगीतकार, श्याम श्रीवास्तव कवि, शांत- देवकीनंदन 'शांत' कवि, मनोजी- मनोज श्रीवास्तव कवि, रोहिताश्वी- डॉ. रोहिताश्व अष्ठाना होंदी ग़ज़ल पर प्रथम शोधकर्ता, बाल साहित्यकार हरदोई]

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