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मंगलवार, 21 जून 2016

navgeet - ram re

नवगीत 
राम रे!
*
राम रे! 
कैसो निरदै काल?
*
भोर-साँझ लौ गोड़ तोड़ रए 
कामचोर बे कैते। 
पसरे रैत ब्यास गादी पै 
भगतन संग लपेटे। 
काम पुजारी गीता बाँचें 
गोपी नचें निढाल-
आँधर ठोंके ताल  
राम रे! 
बारो डाल पुआल। 
राम रे! 
कैसो निरदै काल?
*
भट्टी देह, न देत दबाई
पैलउ माँगें पैसा। 
अस्पताल मा घुसे कसाई 
थाने अरना भैंसा। 
करिया कोट कचैरी घेरे 
बकरा करें हलाल-
बेचें न्याय दलाल 
राम रे !
लूट बजा रए गाल। 
राम रे! 
कैसो निरदै काल?
*
झिमिर-झिमिर-झम बूँदें टपकें 
रिस रओ छप्पर-छानी। 
दागी कर दई रौताइन की 
किन नें धुतिया धानी?
अँचरा ढाँके, सिसके-कलपे 
ठोंके आपन भाल 
राम रे !
जीना भओ मुहाल। 
राम रे! 
कैसो निरदै काल?
***

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