कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 16 जून 2016

vidhata chhand

रसानंद दे छंद नर्मदा ३४ :  विधाता/शुद्धगाRoseछंद  
गुरुवार, १५  जून २०१६  


​दोहा, ​सोरठा, रोला, ​आल्हा, सार​,​ ताटंक, रूपमाला (मदन), चौपाई​, ​हरिगीतिका, उल्लाला​,गीतिका,​घनाक्षरी, बरवै, त्रिभंगी, सरसी, छप्पय, भुजंगप्रयात, कुंडलिनी, सवैया, शोभन या सिंहिका, सुमित्र, सुगीतिका, शंकर, मनहरण (कवित्त/घनाक्षरी), उपेन्द्रवज्रा, इंद्रवज्रा तथा सखी छंदों से साक्षात के पश्चात् मिलिए​ विधाता छन्द ​से
*
छंद लक्षण:  जाति यौगिक, प्रति पद २८ मात्रा, 
                 यति ७-७-७-७ / १४-१४ , ८ वीं - १५ वीं मात्रा लघु। 
विशेष: उर्दू बहर हज़ज सालिम 'मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन' इसी छंद पर आधारित है। 

लक्षण छंद:

    विधाता को / नमन कर ले , प्रयासों को / गगन कर ले 
    रंग नभ पर / सिंधु में जल , साज पर सुर / अचल कर ले 
    सिद्धि-तिथि लघु / नहीं कोई , दिखा कंकर / मिला शंकर  
    न रुक, चल गिर / न डर, उठ बढ़ , सीकरों को / सलिल कर ले   
    
    संकेत: रंग =७, सिंधु = ७, सुर/स्वर = ७, अचल/पर्वत = ७ 
              सिद्धि = ८, तिथि = १५ 
उदाहरण:


१.   न बोलें हम, न बोलो तुम, सुनें कैसे बात मन की?
    न तोलें हम न तोलो तुम , गुनें कैसे जात तन की ?  
    न डोलें हम न डोलो तुम , मिलें कैसे श्वास-वन में?   
    न घोलें हम न घोलो तुम, जियें कैसे प्रेम धुन में? 

    जात = असलियत, पानी केरा बुदबुदा अस मानुस की जात 

२. ज़माने की निगाहों से , न कोई बच सका अब तक

   निगाहों ने कहा अपना , दिखा सपना लिया ठग तक     
   गिले - शिकवे करें किससे? , कहें किसको पराया हम?         
   न कोई है यहाँ अपना , रहें जिससे नुमायाँ हम  

३. है हक़ीक़त कुछ न अपना , खुदा की है ज़िंदगानी          
    बुन रहा तू हसीं सपना , बुजुर्गों की निगहबानी
    सीखता जब तक न तपना , सफलता क्यों हाथ आनी?  
    कोशिशों में खपा खुदको , तब बने तेरी कहानी

४. जिएंगे हम, मरेंगे हम, नहीं है गम, न सोचो तुम 
    जलेंगे हम, बुझेंगे हम, नहीं है तम, न सोचो तुम 
    कहीं हैं हम, कहीं हो तुम, कहीं हैं गम, न सोचो तुम 
    यहीं हैं हम, यहीं हो तुम, नहीं हमदम, न सोचो तुम

- सुनीता काम्बोज

५. दिलों के बीच में उनको खड़ी दीवार करने दो
     हमें बस प्यार आता है, हमें बस प्यार करने दो 
     हमारे चिर मिलन को, यह नहीं अब रोक पाएगा 
     जमाना कर रहा है तो इसे तकरार करने दो

६. समय के साथ थोड़ा सा बदलना भी जरुरी है
    कभी चट्टान बन जाना, पिघलना भी जरुरी है
    नहीं हालात बदलेंगे, हमारे देश के खुद ही 
    घरों से आज थोड़ा सा निकलना भी जरुरी है           
     
                         ********* 

कोई टिप्पणी नहीं: