एक कुंडलिनी - दो कवि
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है मंदिर घर आपका / मेरे चारों धाम ।
मुझको इस घर से मिले/ जीवन के आयाम ।। - मिथलेश
जीवन के आयाम, नाप लूँ गति-यति के सँग
दसों दिशाओं में प्रयास का बिखरे तब रँग
मिले सफलता कहाँ, कभी कब कहिये सत्वर
शब्द-ब्रम्ह को पूज रहे, वह मंदिर है घर - संजीव
*
लोहा भी सोना हुआ, पारस हो जब पास
पाएँगे हम मंज़िलें, मन में है विश्वास - मिथलेश
मन में है विश्वास, आस हर पूरी होगी
हों सच्चे इंसान, नहीं भगवान न योगी
रचें कुंडली रोला के पहले रख दोहा
मोम रहे मन 'सलिल' भले ही तन हो लोहा - संजीव
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जीवन के आयाम, नाप लूँ गति-यति के सँग
दसों दिशाओं में प्रयास का बिखरे तब रँग
मिले सफलता कहाँ, कभी कब कहिये सत्वर
शब्द-ब्रम्ह को पूज रहे, वह मंदिर है घर - संजीव
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लोहा भी सोना हुआ, पारस हो जब पास
पाएँगे हम मंज़िलें, मन में है विश्वास - मिथलेश
मन में है विश्वास, आस हर पूरी होगी
हों सच्चे इंसान, नहीं भगवान न योगी
रचें कुंडली रोला के पहले रख दोहा
मोम रहे मन 'सलिल' भले ही तन हो लोहा - संजीव
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