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सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

प्रकृति-पुरूष का मेल ही,'सलिल' सनातन सत्य।
शिवा और शिव पूजकर,हमने तजा असत्य।

योनि-लिंग हैं सृजन के,माध्यम सबको ज्ञात।
आत्म और परमात्म का,नाता क्यों अज्ञात?

गूढ़ सहज ही व्यक्त हो,शिष्ट सुलभ शालीन।
शिव पूजन निर्मल करे,चित्त- न रहे मलीन।

नर-नारी, बालक-युवा,वृद्ध पूजते साथ।
सृष्टि मूल को नवाते, 'सलिल' सभी मिल माथ।

आचार्य संजीव 'सलिल' sanjivsalil.blogspot.comsanjivsalil.blog.co.indivyanarmada.blogspot.com

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