कुल पेज दृश्य

रविवार, 29 मार्च 2009

लेख

वर्तमान शिक्षा में नवाचार

अनुपमा सूर्यवंशी, छिंदवाडा

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शिक्षा का अर्थ सिर्फ़ संस्कारवान बनाना या ज्ञान विकसित करना ही नहीं है, अपितु बालक के ज्ञान को नवीन तकनीकों के साथ परिपूर्ण करना भी है। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु शिक्षा में नवाचार (इनोवेशन ) की महती आवश्यकता है।
नवाचार अर्थात उन प्रविधियों का समायोजन जो सर्वान्गीण विकास में योगदान दे। वर्तमान समय में अत्यधिक प्रतिस्पर्धा के कारण हर बालक का सम्पूर्ण बौद्धिक विकास होंना चाहिए।
नवाचार में नवीन पद्धतियों अर्थात दृश्य-श्रव्य सामग्री (मल्टीमीडिया रिच लर्निंग टैक्निक) जैसे प्रोजेक्टर, कंप्यूटर, टेली-कोंफ्रेंसिंग तथा सैटेलाइट आदि का प्रयोग प्रमुखता से किया जाता है।
आज-कल विज्ञानं तथा प्रौद्योगिकी में इतना विकास हो चुका है कि विद्यालय गए बिना भी पूरी शिक्षा ग्रहण की जा सकती है। दूरस्थ शिक्षा की इस अवधारणा को इंदिरा गाँधी मुक्त विश्व विद्यालय, भोज विश्व विद्यालय आदि ने सम्भव कर दिखाया है।
शैक्षणिक अथवा किताबी शिक्षा के विश्व विद्यालय स्टार तक हो चुके इस विकास को अब तकनीकी प्राविधि तक भी ले जाना जरूरी है। इस लक्ष्य की प्राप्ति में शिक्षक की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। प्रविधियों के उचित समन्वय में दक्ष तथा प्रबंधन में कुशल शिक्षक ही विद्यार्थियों में नए ज्ञान के अंकुर आरोपित कर सकता है। पुरानों में समयानुकूल विद्या प्राप्ति को मनुष्य का तीसरा नेत्र कहा गया है- 'ज्ञानं मनुजस्य तृतीय नेत्रं"। ज्ञान को अनंत तथा असीम भी कहा गया है- 'स्काई इज द लिमिट।'
बालक का केवल बौद्धिक विकास करना ही ज्ञान नहीं हो सकता। ज्ञान तो वह है जो बौद्दिक विकास के साथ-साथ चारित्रिक, नैतिक, सामाजिक, शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक विकास भी करे।

*********************

कोई टिप्पणी नहीं: