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रविवार, 5 अप्रैल 2009

विश्व काव्य सलिला : भागवत प्रसाद मिश्रा 'नियाज' '

: विश्व काव्य सलिला - १ :


भागवत प्रसाद मिश्रा 'नियाज'


कविता का उत्स अनुभूतियों और भावनाओं से होता है। मनुष्य ही नही पशु-पक्षी भी सुख-दुःख, हर्ष-विषद आदि की अनुभूति और अभिव्यक्ति करते हैं। समूचे विश्व में मानवों की एकता साहित्य में तथा फ़ुट रणनीति में व्यक्त होता है। श्रेष्ठ-ज्येष्ठ रचनाकार एवं शिक्षक प्रो। भागवत प्रसाद मिश्रा 'नियाज़' ने दिव्य नर्मदा पर विशेष स्नेहाशीष वृष्टि कर अपने द्वारा हिदी में अनुवादित अन्य भाषाओँ और देशों के कवियों की कविताओं को प्रकाशित करने की अनुमति दी है। हर रविवार को पाठक एक रचना का ले सकेंगे। नियाज़ जी १८ भाषाओँ के ३१ देशों के ७६ कवियों की १११ रचनाओं का हिन्दी काव्यानुवाद 'विश्व कविता : कल और आज शीर्षक कृति में कर चुके हैं। दिव्य नर्मदा के संपादक संजीव 'सलिल' के संपादन में प्रो. मिश्र के व्यक्तित्व-कृतित्व पर 'समयजयी साहित्य शिल्पी प्रो. भागवत प्रसाद मिश्रा 'नियाज़' : व्यक्तित्व एवं कृतित्व' शीर्षक ग्रन्थ प्रकाशित व चर्चित हो चुका है। --संपादक


कवि - डब्ल्यू. बी. यीट्स, देश - आयार्लैंड्स, कविता - वील हिन्दी काव्यानुवाद - चक्र


शीतकाल में हम वसंत को सदा बुलाते।


जब वसंत आता निदाघ के गीत सुनाते।


ग्रीष्म आगमन हुआ, झाडियाँ झूम रही हैं।


शीतकाल है श्रेष्ठ यहीं अनुगूंज रही है।


पर ऋतुराज नहीं आया है देखो अब तक।


नहीं सुता है इस मन को कुछ भी तब तक।


पर हम हैं अनभिज्ञ रुधिर क्यों स्थिर रहता?


कब समाधि मिल जाए कामना करता रहता।


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