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मंगलवार, 28 अप्रैल 2009

शब्द-यात्रा: घास - अजित वडनेरकर

कु छ काम न करने अथवा निरर्थक कामों में जुटे रहने के संदर्भ में अक्सर घास खोदना मुहावरा बोला जाता है। रुखो-सूखे भोजन को भी अक्सर घास-पात की संज्ञा दी जाती है। ये हीन भावार्थ जाहिर करते हैं कि घास चाहे पशु आहार के रूप में अत्यावश्यक हो मगर मनुष्य के स्वार्थी नज़रिये से यह उपेक्षणीय ही है। यूं प्रकृति के लैंडस्केप से अगर घास गायब कर दी जाए तो शायद यह धरती उतनी खूबसूरत नज़र न आए। कभी हरी और कभी पीली चूनर ओढ़े जो धरा हमें नजर आती है वे रंग घास के ही हैं। घास के लिए अंग्रेजी में ग्रास शब्द है जो मूलतः प्रोटो इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार की धातु ghre से उत्पन्न शब्द है। इस धातु में बढ़ने का भाव है। घास की जितनी भी प्रजातियां हैं वे सब तेजी से वृद्धि करती हैं। किसी भी किस्म की भूमि पर बहुत तेज बढ़वार ही घास का प्रकृति प्रदत्त विशिष्ट गुण है। अंग्रेजी में इस धातु से ग्रो grow नामक क्रिया बनी है जिसमें वृद्धि का भाव है। इससे कई शब्द बने हैं जो रोजमर्रा में बोले-सुने जाते हैं जैसे ग्रोथ यानी विकास या तरक्की। बढ़वार के अर्थ में घास के लिए ग्रास के मायने स्पष्ट है। ग्रासकोर्ट, ग्रासरूट जैसे शब्द समाचार माध्यमों के जरिये रोज पढ़ने-सुनने को मिलते हैं जो इसी श्रंखला के हैं। खुशहाली का कोई रंग होता है? प्रकृति हमें खुशहाल तभी नज़र आती है जब चारों तरफ हरियाली हो। साफ है कि हरा रंग समृद्धि और विकास का प्रतीक है। हरितिमा के साथ पीले रंग का मेल भी मांगलिक होता है। जब मन प्रसन्नचित्त होता है तो कहा जाता है कि तबीयत हरीभरी हो गई। हरे रंग को अंग्रेजी में ग्रीन green कहते हैं जो इसी श्रंखला का शब्द है। प्राकृतिक उत्पाद के तौर पर मनुष्य सबसे पहले वनस्पति से ही परिचित हुआ। पेड़-पौधों में उसने स्वतः वद्धि का भाव देखा। वनस्पतियों ने खुद ब खुद वृद्धि कर प्रकृति के खजाने को समृद्ध किया। समृ्द्धि में ही वृद्धि छुपी है यानी सम+वृद्धि=समृद्धि। इंडो-ईरानी परिवार में घास शब्द के कई मिलते जुलते रूप प्रचलित हैं। हिन्दी का घास बना है संस्कृत की घस् धातु से जिसका मतलब है निगलना, खाना। खास बात यह कि भारोपीय धातु ghre का वृद्धि वाला भाव इंडो-ईरानी परिवार में आहार के अर्थ में बदल रहा है। ghre से मिलती जुलती धातु संस्कृत में है ग्रस् जिसका मतलब होता है निगलना। घस् इसका ही अगला रूप है जिसका अर्थ खाना, निगलना है जिससे बने घासः शब्द का अर्थ आहार, चारा, घास आदि है। घस् या ग्रस् धातु में आहार की अर्थवत्ता बाद में स्थापित हुई होगी पशुपालक आर्यों ने निरंतर बढ़नेवाली घास को देखा-परखा तो उसका प्रयोग पशु आहार के लिये भी हुआ। कौर के लिए ग्रास शब्द हिन्दी में भी प्रचलित है। मराठी में तो कौर को घास ही कहते हैं। प्राकृत, खरोष्ठी, अवेस्ता में इसके यही रूप हैं। आर्मीनियाई में इसका खस् रूप प्रचलित है जिसका मतलब घास ही होता है। इसक अलावा इससे गास, गस् जैसे रूप भी हैं। कौर के लिए गस्सा शब्द भी प्रचलित है।घास उगाने में चूंकि मानवश्रम का निवेश नहीं होता है लिहाजा़ उसे काटने का काम भी निम्न श्रेणी का माना जाता है। इसे करने में किसी कौशल की भी ज़रूरत नहीं होती है, क्योंकि यह उत्पादन से जुड़ा श्रम नहीं है। घास काटनेवाले को घसियारा कहा जाता है। यह बना है घास+कारकः से। घसियारा बनने का क्रम यूं रहा-घासकारकः > घस्सआरक > घसियारा। किसी व्यक्ति के द्वारा फूहड़ तरीके से काम करने पर उसे घसियारा कह कर उलाहना दिया जाता है जिसके पीछे आशय यही रहता है कि उसने कुशलता से काम नहीं किया। जल्दी जल्द, टालू अंदाज में, बेमन से काम निपटाने को घास काटना कहा जाता है। भाव यही है कि जिस तरह ...घास काटना बेकार का काम माना जाता है...इसीलिए अकुशल कार्मिक को अक्सर घसियारा कहा जाता है… घास काटी जाती है, उसी तरह से किया गया काम। दुनियाभर में घास के हजारों प्रकार होते हैं। घास की कई किस्में सजावटी होती हैं जो लॉन, मैदान, आंगन, बाग-बागीचों की शोभा बढ़ाती हैं जैसे कारपेट ग्रास। घास की कई किस्में पशुआहार के काम आती हैं और कई किस्मों का प्रयोग औषधि के तौर पर भी होता है जैसे लैमन ग्रास। हिन्दुओं में धार्मिक कर्मकांड में घास की कुछ किस्मों का बड़ा महत्व है जैस कुशा, दूब जिसे दुर्वा या दर्भ भी कहते हैं। घास की कई हानिकारक किस्में हैं हिन्दी में इनके लिए खरपतवार शब्द है जिसमें सभी अपने आप उगनेवाली सभी हानिकारक वनस्पतियां शामिल हैं। गाजर घास ऐसी ही एक खरपतवार है जिसे कांग्रेस ग्रास भी कहा जाता है। आजादी के बाद अमेरिका से आए मैक्सिकन गेहूं के साथ खरपतवार की यह किस्म भारत आई और इसने देश की कृषि को बुरी तरह प्रभावित किया। यह बीमारी कांग्रेस शासन की देन होने की वजह से इसे कांग्रेसग्रास कहा जाने लगा, ऐसा भी कहा जाता है। वैसे समूह में उगने की वजह से भी इसे कांग्रेस ग्रास कहा जाता है। इसकी पत्तियों का रूपाकार गाजर की पत्तियों जैसा होता है इसलिए इसका प्रचलित नाम गाजर घास है।

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