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मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

बोध कथा: ईश्वर का निवास -मंजू मिश्रा, अहमदाबाद.

फारस देश का निवासी मलिक अपने पुत्र हुसैन के साथ रहता था। वह नित्य जल्दी उठकर श्रद्धा और भक्ति से मस्जिद जाता और समय पर घर वापिस आ जाता। एक रोज़ की बात है जब वह मस्जिद से घर लौटा तो उसने देखा घर के सभी नौकर अपने-अपने बिस्तरों पर अब अटक गहरी नींद में सो रहे हैं। यह देखकर हुसैन को बड़ा क्रोध आया और वह बोला- 'तुम सभी अधर्मी हो, नास्तिक हो। तुम लोगों के मन में ईश्वर के लिए जरा भी स्थान नहीं है।'


इतने में हुसैन के पिता मलिक उसकी ऊंची आवाज़ सुनकर वहां पहुँच गए और बोले- 'बेटा! तुम इन दीन आत्माओं पर क्यों क्रोध कर रहे हो? ये तो दिन भर के कार्य की थकन के कारण प्रातः शीघ्र उठने में असमर्थ हैं। इन भोले-भले लोगों का कष्ट देखकर और फ़िर भी उन्हें उठने को कहकर अपनी धर्म-निष्ठां और अच्छे कर्मों को मत बिगाडो। मैं यही चाहता हूँ। तुम भी प्रातः देर से उठो और मस्जिद मत जाओ क्योंकि तुम्हें गर्व होने लगा हैकि तुम इन सभीसे अधिक धार्मिक हो और उन्हें दोष देते हो वे अधर्मी हैं जिसके लिए वे जिम्मेदार नहीं हैं।'


अतः, सदैव यह याद रखो कि तुम्हारी जो इच्छा है वह दूसरे की भी हो सकती है। भले ही उसका नाम अलग हो किंतु वह तुम ही हो। जब कोई अच्छा कार्य करते हो तो वह स्वयं के लिए करते हो। यदि किसी को दुःख देते हो तो उससे अधिक दुःख प्राप्त होता है। हुसैन के पिता मलिक ने अपने पुत्र को यह समझाया कि सभी में ईश्वर का निवास है। किसी पर क्रोध करना उचित नहीं है। हर प्राणी के प्रति हर किसी को दयालु व सहिष्णु होना चाहिए।

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