कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 4 जून 2009

बाल-गीत: पेन्सिल -संजीव 'सलिल'

पेंसिल


पेन्सिल बच्चों को भाती है.

काम कई उनके आती है.

अक्षर-मोती से लिखवाती.

नित्य ज्ञान की बात बताती.

रंग-बिरंगी, पतली-मोटी.



लम्बी-ठिगनी, ऊँची-छोटी.



लिखती कविता, गणित करे.

हँस भाषा-भूगोल पढ़े.

चित्र बनाती बेहद सुंदर.

पाती है शाबासी अक्सर.

बहिना इसकी नर्म रबर.

मिटा-सुधारे गलती हर.

घिसती जाती,कटती जाती.

फ़िर भी आँसू नहीं बहाती.

'सलिल' जलाती दीप ज्ञान का.

जीवन सार्थक नाम-मान का.

*****

8 टिप्‍पणियां:

महावीर ने कहा…

आचार्य जी, दिव्य नर्मदा पर आज पहली बार आया हूँ. ज्ञान का भंडार है. यह बाल-गीत बहुत ही सुन्दर लगा. गीत की अंतिम पंक्तियों में तो पूरी कविता का सार मिल जाता है. सुन्दर रचना के लिए धन्यवाद.
महावीर शर्मा

ravendra kumar 'ravi' ने कहा…

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

एक सफल और सार्थक बालकविता!
अंतिम दो पंक्तियाँ बच्चों के हिसाब से
कठिन लग रही हैं!

yuva ने कहा…

badhiya kavita hai. bachchon ko ekdam bhaane wali

sadalikhana ने कहा…

sadalikhna ने कहा…
बहुत ही प्‍यारी कविता रंग बिरंगी पेंसिल की . . .

आभार ।

seema sachdev ने कहा…

सीमा सचदेव ने कहा…

is KALAM ko SALAAM

aur

AACHAARAYA ji ki lekhani ko bhi

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा…

रंग-बिरंगी पेंसिलें, बच्चों को बहुत लुभाती है।
वो इनसे क,ख,ग, ए,बी,सी,डी भी लिखवाती हैं।।
रेखाचित्र बनाना, इसके बिना असम्भव होता है।
कला बनाना, केवल इससे ही सम्भव होता है।।
गल्ती हो जाये तो, लेकर रबड़ तुरन्त मिटा डालो।
गुणा-भाग यदि करना चाहो, झटपट इसे निकालो।।
छोटी हो या बड़ी क्लास हो, काम सभी में आती है।
इसे छीलते रहो कटर से, यह चलती ही जाती है।।
तख्ती,कलम,स्लेट का,बिल्कुल इसने किया सफाया है।
समय पुराना बीत गया, अब नया जमाना आया है।।

परमजीत बाली… ने कहा…

बहुत सुन्दर!!

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने कहा…

धन्यवाद है सभी को, कद्रदान है आप.

'सलिल' कीर्ति औदार्य की, सके जगत में व्याप..