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शनिवार, 6 जून 2009

गजल : कैलाशनाथ तिवारी, इंदौर

गजल :
कैलाशनाथ तिवारी, इंदौर

सबका अपना नसीब होता है।
कौन किसका हबीब होता है?

आपको गुल नसीब होते हैं
पर हमें तो सलीब होता है।

कैसे इंसानों की ये बस्ती है,
दोस्त ही यां रकीब होता है।

जो मिटा देता मर्तबा अपना
वो ही उसके करीब होता है।

जिसका मशरफ है माँगते रहना
इंसां वो ही गरीब होता है।

सब ही दौलत कमाने आये हैं।
अब न कोई तबीब होता है.

सीख ले अपने पैरों पे चलना
कौन किसका जरीब होता है।

प्यार जिसने कभी नहीं जाना।
इंसां वो बदनसीब होता है.

गीतों-गज़लों से जिसको प्यार नहीं
वो न सच्चा अदीब होता है.
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3 टिप्‍पणियां:

महावीर ने कहा…

आपकी ग़ज़ल ख़यालात और हर लिहाज़ से बहुत खूबसूरत है. दाद क़ुबूल कीजिए.
महावीर शर्मा

pramod jain ने कहा…

achchhee gazal.

निशिता ने कहा…

ग़ज़ल पढ़कर सुकून मिला.