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मंगलवार, 21 जुलाई 2009

विशेष लेख : संगीता पुरी

vishesh

पृथ्‍वी के जड चेतन पर सूर्य या चंद्रग्रहण के प्रभाव का क्‍या है सच ???????


आप दुनिया को जिस रूप में देख पाते हैं, उसी रूप में उसका चित्र उतार पाना मुश्किल होता है, चाहे आप किसी भी साधन से कितनी भी तन्‍मयता से क्यों न कोशिश करें? इसका मुख्‍य कारण यह है कि आप हर वस्‍तु को देखते तो त्रिआयामी हैं, यानि हर वस्‍तु की लंबाई और चौडाई के साथ साथ ऊंचाई या मोटाई भी होती है, पर चित्र द्विआयामी ही ले पाते हैं, जिसमें वस्‍तु की सिर्फ लंबाई और चौडाई होती है। इसके कारण किसी भी वस्‍तु की वास्‍तविक स्थिति दिखाई नहीं देती है।



इसी प्रकार जब हम आकाश दर्शन करते हैं, तो हमें पूरे ब्रह्मांड का त्रिआयामी दर्शन होता है । प्राचीन गणित ज्‍योतिष के सूत्रों में सभी ग्रहों की आसमान में स्थिति का त्रिआयामी आकलण ही किया जाता है, इसी कारण सभी ग्रहों के अपने पथ से विचलन के साथ ही साथ सूर्य के उत्‍तरायण और दक्षिणायण होने की चर्चा भी ज्‍योतिष में की गयी है। पर ऋषि-महर्षियों ने जन्‍मकुंडली निर्माण से लेकर भविष्‍य-कथन तक के सिद्धांतों में कहीं भी आसमान के त्रिआयामी स्थिति को ध्‍यान में नहीं रखा है । इसका अर्थ यह है कि फलित ज्‍योतिष में आसमान के द्विआयामी स्थिति भर का ही महत्‍व है। शायद यही कारण है कि पंचांग में प्रतिदिन के ग्रहों की द्विआयामी स्थिति ही दी होती है। ‘गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष’ भी ग्रहों के पृथ्‍वी के जड चेतन पर पडने वाले प्रभाव में ग्रहों की द्विआयामी स्थिति को ही स्‍वीकार करता है। इस कारण सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण से प्रभावित होने का कोई प्रश्‍न ही नहीं उठता ?



हम सभी जानते हैं कि आसमान में प्रतिमाह पूर्णिमा को सूर्य और चंद्र के मध्‍य पृथ्‍वी होती है, जबकि अमावस्‍या को पृथ्‍वी और सूर्य के मध्‍य चंद्रमा की स्थिति बन जाती है, लेकिन इसके बावजूद प्रतिमाह सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण नहीं होता। इसका कारण भी यही है। आसमान में प्रतिमाह वास्‍तविक तौर पर पूर्णिमा को सूर्य और चंद्र के मध्‍य पृथ्‍वी और हर अमावस्‍या को पृथ्‍वी और सूर्य के मध्‍य चंद्रमा की स्थिति नहीं बनती है । यह तो हमें मात्र उस चित्र में दिखाई देता है, जो द्विआयामी ही लिए जाते हैं। इस कारण एक पिंड की छाया दूसरे पिंड पर नहीं पडती है। जिस माह वास्‍तविक तौर पर ऐसी स्थिति बनती है, एक पिंड की छाया दूसरे पिंड पर पडती है और इसके कारण सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण होते है।



सूर्यग्रहण के दिन चंद्रमा सूर्य को पूरा ढंक लेता है, जिससे उसकी रोशनी पृथ्‍वी तक नहीं पहुंच पाती, तो दूसरी ओर चंद्रग्रहण के दिन पृथ्‍वी सूर्य और चंद्रमा के मध्‍य आकर सूर्य की रोशनी चंद्रमा पर नहीं पडने देती है । सूर्य और चंद्र की तरह ही वास्‍तविक तौर पर समय-समय पर अन्‍य ग्रहों की भी आसमान में ग्रहण सी स्थिति बनती है, जो विभिन्‍न ग्रहों की रोशनी को पृथ्‍वी तक पहुंचने में बाधा उपस्थित करती है। पर चूंकि अन्‍य ग्रहों की रोशनी से जनसामान्‍य प्रभावित नहीं होते हैं, इस कारण वे सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण की तरह उन्‍हें साफ दिखाई नहीं देते। यदि ग्रहणों का प्रभाव पडता, तो सिर्फ सूर्य और चंद्र ग्रहण ही प्रभावी क्यों होता, अन्‍य ग्रहण भी प्रभावी होते और प्राचीन ऋषियों-महर्षियों के द्वारा उनकी भी कुछ तो चर्चा की गयी होती ।



अन्‍य ग्रहों के ग्रहणों का किसी भी ग्रंथ में उल्‍लेख नहीं किए जाने से यह स्‍पष्‍ट है कि किसी भी ग्रहण का कोई ज्‍योतिषीय प्रभाव जनसामान्‍य पर नहीं पडता है। सूर्य के उदय और अस्‍त के अनुरूप ही पशुओं के सारे क्रियाकलाप होते हैं, इसलिए अचानक सूर्य की रोशनी को गायब होते देख उनलोगों का व्‍यवहार असामान्‍य हो जाता है, जिसे हम ग्रहण का प्रभाव मान लेते हैं । लेकिन चिंतन करनेवाली बात तो यह है कि यदि ग्रहण के कारण जानवरों का व्‍यवहार असामान्‍य होता तो वह सिर्फ सूर्यग्रहण में ही क्यों होता? चंद्रग्रहण के दिन भी तो उनका व्‍यवहार असामान्‍य होना चाहिए था । पर चंद्रग्रहण में उन्‍हें कोई अंतर नहीं पडता है, क्योंकि अमावस्‍या के चांद को झेलने की उन्‍हें आदत होती है।



वास्‍तव में ज्‍योतिषीय दृष्टि से अमावस्‍या और पूर्णिमा का दिन ही खास होता है। यदि इन दिनों में किसी एक ग्रह का भी अच्‍छा या बुरा साथ बन जाए तो अच्‍छी या बुरी घटना से जनमानस को संयुक्‍त होना पडता है। यदि कई ग्रहों की साथ में अच्‍छी या बुरी स्थिति बन जाए तो किसी भी हद तक लाभ या हानि की उम्‍मीद रखी जा सकती है। ऐसी स्थिति किसी भी पूर्णिमा या अमावस्‍या को हो सकती है, इसके लिए उन दिनों में ग्रहण का होना मायने नहीं रखता पर पीढी दर पीढी ग्रहों के प्रभाव के ज्ञान की यानि ज्‍योतिष शास्‍त्र की अधकचरी होती चली जानेवाली ज्‍योतिषीय जानकारियों ने कालांतर में ऐसे ही किसी ज्‍योतिषीय योग के प्रभाव से उत्‍पन्‍न हुई किसी अच्‍छी या बुरी घटना को इन्‍हीं ग्रहणों से जोड दिया हो। इसके कारण बाद की पीढी इससे भयभीत रहने लगी हो। इसलिए समय-समय पर पैदा हुए अन्‍य मिथकों की तरह ही सूर्य या चंद्र ग्रहण से जुड़े सभी अंधविश्वासी मिथ गलत माने जा सकते है। यदि किसी ग्रहण के दिन कोई बुरी घटना घट जाए, तो उसे सभी ग्रहों की खास स्थिति का प्रभाव मानना ही उचित होगा, न कि किसी ग्रहण का प्रभाव।

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2 टिप्‍पणियां:

Divya Narmada ने कहा…

संगीता जी!

वन्दे मातरम.

आपकी बात में दम है. अन्धविश्वास उन्मीलन के लिए प्राकृतिक घटनाओं के वैज्ञानिक पक्ष का सही-सही विवेचन होते रहना चाहिए.

आपने गागर में सागर भर दिया है. बधाई.

Pramod Jain ने कहा…

nice one.