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शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

भजन: कान्हा जी आप आओ ना -गार्गी

कान्हा जी आप आओ ना ......

मेरा मन तुम्हे बुला रहा है !!
अपनी मधुर मुरली सुनाओ ना ....

जो मेरे अन्दर के कोलाहल को मिटा दे !!
अपनी साँवरी छवि दिखा जाओ ना ...

जो मन, आत्मा और शरीर को निर्मल कर दे !!
अपना सुदर्शन चक्र घुमाओ ना ...

जो इस दुनिया की सारी बुराइयों को नष्ट कर दे !!
हर तरफ झूठ ही झूठ है .....

आप सत्या की स्थापना करने आओ ना !
फिर से अपना विराठ रूप दिखाओ ना !!

हे कान्हा ! तुम सारथी बनो .....
जैसे अर्जुन को राह दिखाई थी....
मुझको भी राह दिखाओ ना !!

मेरी हिम्मत टूट रही है .....
मुझको भी गीता का ज्ञान सुनाओ ना !!

जीवन की इस रण भूमि में ....
अपने ही मेरे शत्रु बने है ....
आप ही कोई सच्ची राह दिखाओ ना !!

तड़प रही हूँ इस देह की जंजीरो में ....
मुझको मुक्त कराओ ना !!

भाव सागर में डूब रही हूँ ....
तुम मुझको पार लगओ ना !!

कान्हा जी आप आओ ना ..........

कान्हा जी आप आओ ना ...........

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3 टिप्‍पणियां:

Dr. Ghulam Murtaza Shareef ने कहा…

Atyadhik Sundar Bhajan Hai, Badhai ho.
Kuch spelling mistake hai...Bhaaw Sagar = Bhaw Sagar

Dr. Shareef
Karachi

Divya Narmada ने कहा…

दिव्या नर्मदा परिवार में स्वागत है. भावभरा भक्तिगीत... आगे भी रचनाएँ भेजते रहिये

tuhina ने कहा…

nice