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गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

सौ. कां. शिल्पी एवं चि. पंकज के परिणय-पर्व पर शुभकामनाएँ


श्री चित्रगुप्ताय नमः

सौ. कां. शिल्पी एवं चि. पंकज के परिणय-पर्व पर शुभकामनाएँ

. श्री गणेश विघ्नेश्वर, ऋद्धि-सिद्धि के साथ .
.. विश्वनाथ जगदंबिका, रखें शीश पर हाथ ..



. चित्रगुप्त प्रभु शत नमन, जग-'शिल्पी' कर्मेश .
.. इरावती-नंदिनी माँ, रहिये सदय हमेश ..

. शतदल 'पंकज' सम खिले, मिले ह्रदय शत आज .
.. माई महामाया विनय, सफल करो शुभ काज ..

. आये अरपा-तीर से, गंगा-तट ले आस .
.. बने बनारस में सरस, श्वास-आस मधुमास ..

. काया में स्थित हुआ, परमब्रम्ह कायस्थ .
.. काया-काया से मिले, 'शोभा' काया स्वस्थ ..

. प्रकृति-पुरुष का सम्मिलन, रीति सनातन सत्य .
.. दो अपूर्ण मिल पूर्ण हों, नीर-क्षीर सम नित्य ..

. अनुगुंजन शहनाई की, 'रामाडा' में मीत .
.. स्वागत करती आपका, दिल हारें दिल जीत ..

. 'देवनारायण' दे रहे, सुरपुर से आशीष.
.. 'ज्वालाप्रसाद' मना रहे, शुभ करना हे ईश ..

. 'महावीर' स्वागत करें. भुज-भर 'राधेश्याम' .
.. 'प्रभावती' आशीष दें, 'प्रतिमा-प्रीती' ललाम ..

. शुभ-'प्रभात' कह 'आरती', 'संध्या' लिए 'विनीत' .
.. 'आशा-सत्य सहाय' से, पाई मंगल रीत ..

. 'प्यारेमोहन जी' नमन, 'रविप्रकाश-संदीप' .
.. खुश 'प्रशांत-संभ्रांत हों, शत स्वागत 'हरदीप' ..

. स्वागतरत हैं 'मुदित' मन, 'सागर, किरण, गजेन्द्र' .
.. 'आशा, मधु, तनया, तनय, सुरभि, प्रसन्न, नरेंद्र' ..

. 'दीप्ति, निर्मला, रेवती, ज्योति, अंशिका' झूम .
.. अरुण, अजय, पल्लवी' संग, 'नीरज' लें नभ चूम..

. 'अनुपम, शुचि, अनमोल' हैं, श्वास-आस संबंध .
.. 'पंकज, अंशुल, मोहिनी', नवल युगल अनुबंध ..

. 'मुकुल, वन्दना, प्रार्थना, निशा, साधना,-नाथ .
.. 'सलिल, अशोक, अनूप' हैं, 'हर्षित' जोड़े हाथ ..

. 'आभा' रमा-'रमेश' सी, 'मन्वंतर' तक दिव्य .
.. 'अनुश्री-तुहिना' मनायें, 'हों 'पृथीश' ये नव्य..

. अचकन पर बेंदा हुआ, हुलस-पुलक बलिहार .
.. कलगी नथनी पर गयी, निज अंतर्मन हार ..

. कंगन-चूड़ी की खनक, सुन पटका बेचैन .
.. लड़े झुके उठ मिल झुके, चार हुए जब नैन ..

. चुटकी भर सिन्दूर से, सात जन्म का संग .
.. सप्तपदी पर चल युगल, नहा रहा है गंग ..

. बन्ना-बन्नी गारियाँ, विदा-बधाई गीत .
.. ढोलक की हर थाप में, है 'सरोज' की प्रीत ..

. हुलसित हैं 'राजुल-अतुल', नर्तित हैं 'पीयूष' .
.. 'शिल्पी-पंकज' उम्र भर, पायें सुख प्रत्यूष ..

. चिर जीवहु जोरी जिए, पाए 'कीर्ति' सुनाम .
.. दस-दिश-छाये 'मंजुला', 'शिल्पी-पंकज' नाम ..

. 'खरे'-खरे व्यवहार कर, 'श्री वास्तव' में जीत .
.. नवल-युगल में नित बढे, 'सलिल' परस्पर प्रीत ..

*** शब्दसुमन: संजीव वर्मा 'सलिल' ***

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1 टिप्पणी:

निर्मला कपिला ने कहा…

रचना पर तो निस्गब्द ही हूँ मेरे पास इस रचना के समतुल शब्द ही नहीं मगर पंकज जी को बहुत बहुत बधाई