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सोमवार, 25 जनवरी 2010

आज की रचना: होता था घर एक -संजीव 'सलिल'

आज की रचना:

संजीव 'सलिल'

शायद बच्चे पढेंगे

'होता था घर एक.'

शब्द चित्र अंकित किया

मित्र कार्य यह नेक.

अब नगरों में फ्लैट हैं,

बंगले औ' डुप्लेक्स.

फार्म हाउस का समय है

मिलते मल्टीप्लेक्स.

बेघर खुद को कर रहे

तोड़-तोड़ घर आज.

इसीलिये गायब खुशी

हर कोई नाराज़.

घर न इमारत-भवन है

घर होता सम्बन्ध.

नाते निभाते हैं जहाँ

बिना किसी अनुबंध.

'ई-कविता' घर की बना

अद्भुत 'सलिल' मिसाल.

नाते नव नित बन रहे

देखें आप कमाल.

बिना मिले भी मन मिले,

होती जब तकरार.

दूजे पल ही बिखरता

निर्मल-निश्छल प्यार.

मतभेदों को हम नहीं

बना रहे मन-भेद.

लगे किसी को ठेस तो

सबको होता खेद.

नेह नर्मदा निरंतर

रहे प्रवाहित मित्र.

'ई-कविता' घर का बने

'सलिल' सनातन चित्र..

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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

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