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शनिवार, 20 मार्च 2010

भोजपुरी में हाइकु: संजीव 'सलिल'

(मूलतः जापानी छंद: ३ पद, वर्ण या अक्षर क्रमशः ५, ७, ५. मात्रा या तुक बंधन नहीं.)

१.
श्रम करल
नियमित रहल
आगे बढ़ल..
*
२.
कबोs थाकत
तोहार इयाद ही
होइ ताकत..
*
३.
विलग न होखे
अइसन विश्वास
तोहरा आभास..
*
४.
आगे का होइ
ईश्वर तू ही जानs
आशा न खोई..
*
५.
मन कागज़
इयाद रोशनाई
लिखल गीत.
*
६.
आग-पुअरा
रखल साथ-साथ
बिसर पानी..
*
७.
ज़रा राखल
चराग जिनिगे के
तोहरे लिए.
*
८.
गीत-गाँव में
समाधी बना दिहs
तोर छाँव में..
*
९.
अगोरे रहे
जे जिंदगी खातिर
अकेले मरे.
*
१०.
कउनौ काज
बिना विघिन-बाधा
कब बनल?
*
११.
हरा देलस
तकदीर के गोटी
जीतत दाँव.
*********************

17 टिप्‍पणियां:

Dev ने कहा…

बहुत बढ़िया प्रस्तुति

shashi kumar singh ने कहा…

JAI BHOJPURI

SANJIV JII RAURA I MUSAKIL KAM KE BARA ASANI SE ANGAM DEHANI HA
KHUBE TARIF KE KABIL BAA
RAUAR RACHANA HAMANI KE LEL VARADAN KE SAMAN HOLA
YEHI TARAH SE APAN RACHANA SE HAMANI KE BHIGABAT RAHI
BAHUT BAHUT DHANYWAD

JAI BHOPJPURI

Navin Bhojpuria ने कहा…

सलिल जी प्रणाम आ जय भोजपुरी

अभी तक हम सुनले रहनी एह जापानी कविता के स्टाईल के ( माने हाईकु के ) आ इहो सुनले रहनी हा की हिन्दी मे काफी लोग लिख रहल बा , लेकिन भोजपुरी मे पहिला हाली हम देखत आ पढत बानी ।


खचोलिया धन्यवाद रउवा के जे साहित्य ( बह्ले विदेशी होखे ) एह विधा के हमनी संगे परिचय करवनी आ भोजपुरी मे पढ के दिल गार्डेन गार्डेन हो गईल । आ कहल जाउ त लरुवाईल मन हरियरा गईल ।


जय भोजपुरी

Sudhir Kumar ने कहा…

सलिल जी, कुछ ज्यादा ना कहब - अदभूत, आ लाजबाब...
कवनो भाषा के समृद्धि के पैमाना ओह में जुड रहल नया विधा आ शब्दन के मानल जाला. जब ले भोजपुरी भी एही तरह विदेशी चीजन के, आ विधा के आत्मसात ना करी, तब ले एकर विकास संभव नइखे. एगो नया चीज से हमनी के परिचय कराये खातिर धन्यवाद.

mrs. saroj ने कहा…

सलिल जी प्रणाम ,
आज बहुत अदभुद( हाइकु)विधा के बारे में जानकारी मिलल राउर ई रचना के मार्फ़त ...
बहुत बहुत धन्यवाद् ,
जय भोजपुरी

sanjay kumar singh ने कहा…

सलिल जी , प्रणाम !

आज ले जापानी कविता के एह विधा के जानकारी हमरा ना रहल हा | बहुत बहुत धन्यवाद एह रचना खातिर आ साथ में नवीन जी के भी जे बतवनी कि हाइकू जापानी शैली ह |

जय भोजपुरी

dinesh thakur ने कहा…

salil ji pranam aa jai bhojpuri,

bahut hi adbhut aa lajabab ba yek se badh ke yek

dhnayebad

sanjay pandey. ने कहा…

salil ji parnam a jai bhojpuri |
bahut hi badhiya rachana ba raur hamahu kahi sunale rahi ki japan ke kavita
bada alag hola lekin aaj raua ke madhyam se padh ke bada khushi bhail |
eh kavita khatir jetana bhi dhanyavad dihal jav kam ba ,raur bahut bahut dhanyavad |
agale rachana ke johat...... sanjay pandey
jai bhojpuri

montu singh ने कहा…

हाइकु
aaj pahila baar naam sunali ja highku ke bahut bahut dhanyabad ba rawua ke eh tarah ke jankari deve khatir


Jai Bhojpuri

बेनामी ने कहा…

आप सबका आभार. साहित्य में आदान-प्रदान न हो तो भाषा पोखर के पानी की तरह जड़ हो जाती है. विविध भाषाओँ, शैलियों, विषयों और विधाओं में सृजन ही रचनाकार और पाठक की कसौटी है. हम सब देश-विदेश में प्रचलित अधिक से अधिक भाषा रूपों से परिचित हों तो हमारी अपनी भाषा अपने आप समृद्ध हो सकेगी. भोजपुरी के लोकगीतों के छंद विधान पर लेख दीजिये ना. सोलह संस्कारों और विविध ऋतुओं में जो लोकगीत गए जाते हैं वे तो भोजपुरी जन विशेषकर महिलाएँ ही दे सकती हैं. मैं बटोही गीत का लेखन सीखना चाहता हूँ. सहायता करें

Udan Tashtari ... ने कहा…

वाह जी! अनूठे हाईकु भोजपुरी में...आनन्द आया.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

भोजपुरी हाइकु........बहुत बढ़िया

सुलभ § सतरंगी ... ने कहा…

भोजपुरी हाइकु......!

आचार्य जी ने दिल जीत लिया

vedvyathit ... ने कहा…

yh matra ki ginti haiq shashtr me khan likhi hai jo jbrdsti hindustan me chlai ja rhi hai
dr. ved vyathit

विजयप्रकाश ... ने कहा…

बहुत ही अनूठे हाईकू...बहुत बढ़िया

Sanjiv Verma 'Salil' ने कहा…

आत्मीय वेद व्यथित जी!
वन्दे-मातरम.
भाषा और काव्य शास्त्र सतत परिवर्तित और विकसित होती है. यह जड़ नहीं चेतन है. अनिवार्य नहीं है कि जो छंद पूर्व में नहीं थे वे भविष्य में भी न रचे जाएँ.
'विश्वैक नीड़म' , 'वसुधैव कुटुम्बकम' आदि का उद्घोष करनेवाली भारतीय सभ्यता का साहित्य अन्य भाषाओँ के छंदों को आत्मसात कर अपने रंग में ढाल ले तो किसी को क्या आपत्ति हो सकती है?
'हाइकु' मूलतः जापानी छन्द है. संस्कृत काव्य में वर्णित त्रिपदियों में इस तरह के अनेक छंद वर्णित हैं जिनमें से 'गायत्री' सर्व विदित है. संस्कृत काव्य से अल्प परिचय के कारण सामयिक समय में जापानी हाइकु अंगरेजी, बांगला से हिंदी में आया.
वर्णात्मक छंद हाइकु के ३ पदों (पंक्तियों) में क्रमशः ५-७-५ वर्ण होते हैं. जापान में हाइकु का वर्ण्य विषय प्रकृति है किन्तु हिन्दी हाइकु ने भारतीय रंग में ढलकर हर विषय को अंगीकार किया है. मूलतः हाइकु में तुक-बंधन नहीं होता पर हिंदी हाइकु में तीनों पद सम तुकांत, १-२ सम तुकांत, १-३ सम तुकांत, २-३ सम तुकांत तथा तुकरहित इस तरह ५ तरह के हाइकु रचे जा रहे हैं. अभी हाइकु में मात्र गणना नहीं की जा रही किन्तु भविष्य में कोई समर्थ कवि हाइकु को मात्रात्मक छंद के रूप में भी विकसित कार सकता है. हाइकु को लेकर हिन्दी में एक अभिनव प्रयोग 'हाइकु ग़ज़ल' भी मैंने किया है. पाठक चाहेंगे तो हाइकु ग़ज़ल भी प्रस्तुत होगी.
चिट्ठा जगत में छांदस रचनाओं के अभिनव रूपों को संभवतः पहली बार प्रस्तुत किया जा रहा है और पाठक इन्हें सराह भी रहे हैं.
यहाँ कोई किसी पर जबरदस्ती नहीं करता. रचनाकार रचना कोपाठकों के सम्मुख प्रस्तुत कर देता है, पाठक सराहें या नहीं यह उन पर है. यहाँ ५ में से ४ पाठकों ने इन्हें सराहा है. अन्यत्र भी इन्हें सराहना मिली है. भोजपुरी की साइटों पर तो भोजपुरी हाइकु को विपुल सराहना मिली है. कई रचनाकारों ने हाइकु के शिल्प की जानकारी चाही है. आशा है आपका समाधान होगा.

संजय भास्‍कर ने कहा…

सलिल जी प्रणाम ,