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रविवार, 25 अप्रैल 2010

एक घनाक्षरी: फूली-फूली राई...... --पारस मिश्र, शहडोल..

एक घनाक्षरी
पारस मिश्र, शहडोल..
फूली-फूली राई, फिर तीसी गदराई.
बऊराई अमराई रंग फागुन का ले लिया.
मंद-पाटली समीर, संग-संग राँझा-हीर,
ऊँघती चमेली संग फूँकता डहेलिया..
थरथरा रहे पलाश, काँप उठे अमलतास,
धीरे-धीरे बीन सी बजाये कालबेलिया.
आँखिन में हीरकनी, आँचल में नागफनी,
जाने कब रोप गया प्यार का बहेलिया..
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दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम  

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

3 टिप्‍पणियां:

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

अत्यन्त ही सुन्दर।
हार्दिक बधाई।

शार्दुला ने कहा…

इनकी दोनों रचनायें सुन्दर लगीं!
सादर शार्दुला

Amitabh Tripathi ✆ ekavita ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना घनाक्षरी के रूप में| कवि को बधाई एवं आभार|
आचार्य जी को इसके प्रस्तुतीकरण के लिए धन्यवाद|
सादर
अमित